आंख

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आंख

— मनुष्य में एक जोड़ी नेत्र पाए जाते हैं जो सिरे के पष्ठ पाश्र्व सतहों पर नेत्र कोटरों (Eye orbits) में स्थित रहते हैं।

— प्रत्येक नेत्र चलायमान अवस्था में 6 नेत्र पेशियों की सहायता से लगा रहता है।

— मनुष्य के नेत्र गोलक का 2/3 भाग नेत्र कोटर में तथा 1/3 भाग बाहर स्थित रहात है। नेत्र गोलक का यही बाहरी भाग रूपान्तरित होकर एक त्वचा का आवरण बनाता है जिसको कन्जिक्टिवा (Conjunctiva) कहते हैं। यह आवरण पारदर्शक होता है।

— कन्जक्टिवाइटिस — यह एक नेत्र रोग है जो सामान्यतया वाइरस संक्रमण के कारण होता है। इसमें नेत्र लाल हो जाते हैं तथा इनमें जलन व दर्द होता है।

— नेत्र का बाहरी भाग एक जोड़ी पलकों के द्वारा सुरक्षित होता है जिनमें ऊपरी पलक (Upper lid) तथा निचली पलक (Lower lid) होती है।

— पलकों के किनारों पर रोम लगे रहते हैं जिनको बिरौनियां कहते हैं।

— मनुष्यों के प्रत्येक नेत्र के अन्दर के किनारे में एक अवशेषी तीसरी पलक पायी जाती है।

❒ आंसू (Tears)

— मनुष्यों के प्रत्येक नेत्र में तीन आंसू ग्रन्थियां पायी जाती हैं। जिनको लेक्राइमल ग्रन्थियां भी कहते हैं।

— इन ग्रंथियों से जल के समान तरल निकलता हैं जिसको आंसू (Tears) कहते हैं।

— आंसुओं में लाइसोजाइम (बैक्टीरिया नाशक पदार्थ )  पाया जाता है।

— स्वाद में अश्रु नमकीन होते हैं।

— मनुष्य में चार महीनें में ही अश्रु ग्रन्थियां सक्रिय हो जाती हैं।

— ये आंसू कन्जिक्टिवा को नम बनाए रखते हैं तथा इसकी सफाई करते हैं।

— प्रत्येक नेत्र से आंसू, तीन बारीक नेसो—लेक्राइमल (Naso-lacrymal duct) नलिकाओं के द्वारा नासा गुहाओं में आते रहते हैं। इनके अधिक स्त्रावण पर ये आंसूओं के रूप में बाहर निकलते हैं।

❒ नेत्र की संरचना :—

1. नेल गोलक की भित्ति (Wall of Eye ball) — इसमें तीन परतें पायी जाती हैं—

i.दृढ़ पटल या स्क्लेरोटिक (Selerotic)

ii. रक्तक पटल या कोरॉएड (Choroid)

iii. दृष्टि पटल या रेटिना (Retina)

i. दृढ़ पटल या स्क्लेरोटिक (Selerotic) :—

— यह नेत्र की सबसे बाहरी परत है जो नेत्र को आकृति प्रदान करती है तथा इसकी सुरक्षा करती है।

— इसका बाहरी भाग रूपान्तरित होकर पादर्शक कॉर्निया (Cornea) का निर्माण करता है। यह कॉर्निया रोशनी की किरणों को लैन्स पर केन्द्रित करता हैं।

— नेत्र प्रत्यारोपण मे केवल कार्निया भाग का ही प्रत्यारोपण किया जा सकता है।

ii. रक्तक पटल या वर्णक (Choroid) :—

— यह नेत्र गोलक का मध्य परत है जो रक्त कोशिकाओं से बनी होती है। जो वर्णक युक्त् होती है।

— इस स्तर में काली, भूरी, नीली, हरी कोशिकाएं पायी जाती हैं जो शाखित होती हैं।

— इसका 1/3 बाहरी भाग रूपान्तिरित होकर परदे—नुमा (Diaphragm-like) उपतारा या आइरिस का निर्माण करता है। आइरिस के मध्य में तारा या पुतली या प्यूपिल (Pupil) नामक छिद्र पाया जाता है।

— आइरिस में पुतली के चारों तरफ अरेखित पेशी से निर्मित अवरोधनी (Sphinctor) पायी जाती है जो पुतली के व्यास को कम करती है। आइरिस में अरीय पेशियां भी पायी जाती हैं जो पुतली के व्यास को बढ़ाने का कार्य करती हैं।

— प्यूपिल का व्यास परिवर्तनशील होता है। तेज प्रकाश में इसका व्यास कम हो जाता है तथा कम प्रकाश में व्यास बढ़ जाता है।

— प्यूपिल के ठीक पीछे एक द्विउत्तक लैन्स लगा रहता है जो लैन्स कैप्सूल के अंदर रहता है। यह लैन्स रोशनी की किरणों को दृष्टि पटल पर केन्द्रित करता है।

— आइरिस का कार्य कैमरे के डायफ्राम के समान होता है।

— मानव नेत्र  में प्रकाश किरणों का दो बार अपवर्तन होता है—

1. कार्निया भाग द्वारा 2. लैन्स द्वारा

— मानव नेत्र में विभिन्न दूरियों की वस्तु देखने की क्षमता भिन्न — भिन्न होती है— नजदीक की वस्तु देखने में लैन्स की उत्तलता बढ़ जाती है तथा दूर की वस्तु देखने में उत्तलता कम हो जाती है। नेत्र के इस गुण को नेत्र समायोजन कहते हैं।

iii. दृष्टि पटल या रेटिना (Retina) :—

— यह नेत्र गोलक के सबसे अन्दर का स्तर है जो प्रकाश के प्रति संवेदनशील होता है तथा इस पर वस्तु प्रतिबिम्ब का निर्माण होता है।

— इस परत में शंकु तथा शलाकाएं (Rods) पायी जाती हैं, जिनकी संख्या अलग—अलग जातियों में अलग—अलग होती हैं तथा ये प्रकाशग्राही होते हैं।

— शलाकाएं लम्बी व बेलनाकार कोशिकाएं हैं जो कम प्रकाश में भी क्रियाशील होती हैं अर्थात् ये रात्रि या मंद प्रकाश में देखने में सहायक होती हैं। इसमें रोडोप्सिन नामक दृष्टि नामक वर्णक पाया जाता है जिसको विजुवल पर्पल भी कहते हैं। जो प्रतिबिम्ब निर्माण में भाग लेता है।

— शंकु छोटी कोशिकाएं हैं जो तेज प्रकाश में देखने में सहायक होते हैं तथा रंगों का ज्ञान कराती है।

— शंकु तीन प्रकार के होते हैं जिनको लाल शंकु (Red Cones) , हरे शंकु (Green Cones) तथा नीले शंकु (Blue Cones) कहते है।

— दृष्टि अक्ष पर स्थित रेटिना के भाग को पीत बिन्दु (Yellow Spot) या मैकुला लूटिया (Macula Lutea) कहते हैं। पीत बिन्दु में केवल शंकु (Cones) पाए जाते हैं तथा इस पर सर्वाधिक स्पष्ट प्रतिबिम्ब का निर्माण होता है।

— रेटिना से दृक तन्त्रिका (Optic Nerve) के निकलने के स्थान को अन्ध बिन्दु (Blind Spot) कहते हैं। यहां पर शंकु तथा शलाकाओं का पूर्ण अभाव होता है।

2. लैन्स (Lens) :—

— यह एक उभयोत्तल (Biconvex) तथा पारदर्शक रचना है जो पुतली के ठीक पीछे स्थित रहती है।

— लैन्स एक झिल्ली नुमा पारदर्शक कैप्सूल (Capsule) में स्थित रहता है।

— लैन्स की आकृति परिवर्तनशील होती है तथा इसमें परिवर्तन सिलिएरी कॉय के कारण होते हैं।

— लैन्स रोशनी की किरणों को रेटिना पर केन्द्रित करता है।

3. अंत: नेत्रीय गुहा (Intraoccular cavity) :—

— नेत्र गोलक में अंत: नेत्रीय गुहा पायी जाती है जो अग्र जलीय कक्ष (Aqueous Chamber ) तथा पश्च कांचाभ कक्ष (Vitreous Chamber) में विभाजित रहती है।

— जलीय कक्ष कॉर्निया तथा लैन्स के मध्य पाया जाता है, जिसमें तेजो या जलीय द्रव (Aqueous Humour) भरा रहता है। इसका स्त्रावण सिलियरी काय के द्वारा होता है।

— जलीय द्रव में जल, O2CO2 का ग्लुकोस तथा दूसरे पोषक पदार्थ जाते हैं। इस द्रव से नेत्र को पोषण प्राप्त होता है।

— कांचाभ कक्ष, कांचाभ या काचर जल (Vitreous Humour) से भरा रहता है। इसका स्त्रावण भी सिलियरी कॉय से होता है। कांचाभ द्रव से करीब 90 प्रतिशत जल, विट्रीन नामक म्यूकोप्रोटीन (Vitrein Mucoprotein), हायलूरोनिक अम्ल (Hyaluronic Acid) तथा कुछ लवण पाए जाते हैं। काचाभ द्रव में छोटे व महीन व कोलेजन तन्तुकों के साथ—साथ हायलोसाइट्स (Hyalocytes) भी पाए जाते हैं।

— जलीय द्रव का अपवर्तनांक (Refractive Index) कॉर्निया के समान तथा कांचाभ द्रव का अपर्तनांक लैन्स के समान होता है।

❒ नेत्र की कार्य विधि (Physiology of Eye) :—

— शलाकें सामान्य दृष्टि के लिए आवश्यक होती हैं। इनमें रोडोप्सिन (Rhodopsin) नामक दृष्टि वर्णक पाया जाता है जिसको दृष्टि परपल (Visual Purple) भी कहते हैं।

— रोडोप्सिन का निर्माण रेटिनिन (Retinine) या विटामिन A तथा ऑप्सिन  (Opsin) या स्कोटोप्सिन (Scotopsin) रंगहीन प्रोटीन से होता है।

— प्रकाश की उपस्थिति में रोडोप्सिन विघटित होकर ऑप्सिन तथा रेटिनिन का निर्माण करता है, जिसको ब्लीचिंग (Bleaching) कहते हैं। कम प्रकाश में रोडोप्सिन का पुन: निर्माण हो जाता है।

— शंकु, रंगों को पहचानने का कार्य करती है।

— मनुष्य के नेत्र में वस्तु के प्रतिबिम्ब का निर्माण उल्टा व वास्तविक होता है।

— नेत्र की कार्यविधि कैमरे (Camera) के समान होती है। नेत्र की आइरिस कैमरे के डायफ्राम के समान, नेत्र लैन्स कैमरे के लैन्स के समान तथा नेत्र रेटिना कैमरे में प्रकाश किरणों का अपवर्तन लैन्स ही करता है जिससे फोटो फिल्म (Photo film) पर उल्टी प्रतिमूर्ति बनती है।

❒ आंख की समंजन क्षमता :—

— जब आंख सामान्य अवस्था में होती है तब अनन्त दूरी पर रखी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब रेटिना पर स्पष्ट बनता है। यह तभी संभव है जब लेंस और रेटिना के बीच की दूरी नेत्र लेंस की फोकस दूरी के बराबर हो। लेंस की फोकस दूरी में स्वत: ही परिवर्तन होने की क्षमता को समंजन क्षमता कहते हैं।

— दूर बिन्दु — नेत्र से वह अधिकतम दूरस्थ बिन्दु जहां तक वस्तु को स्पष्ट देखा जा सकता है उसे दूर बिन्दु कहते हैं। स्वस्थ मनुष्य की आंख के लिए यह बिन्दु अनन्त पर होता है।

— निकट बिन्दु — वस्तु की आंख से वह न्यूनतम दूरी की स्थिति जहां पर वस्तु को स्पष्ट देखा जा सकता है निकट बिन्दु कहलाता है। स्वस्थ मनुष्य के लिए इसका मान 25 सेमी. होता है।

— दृष्टि परास — निकट बिन्दु (25 सेमी.) तथा दूर बिन्दु के बीच की दूरी को दृष्टि परास कहते हैं।

— दोष युक्त नेत्र किसी नेत्र की दृष्टि परास 25 सेमी. से अनन्त तक नहीं होती है उस नेत्र को दोष युक्त नेत्र कहते हैं।

— दृष्टि दोष एवं उसका निवारण —

1. निकट दृष्टि दोष (Myopia) — इसमें निकट स्थित वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती है परन्तु दूर स्थित वस्तुएं स्पष्ट नहीं दिखाई देती है। इस दोष से पीड़ित नेत्र में प्रतिबिम्ब रेटिना के पूर्व ही बन जाता है।

— निकट दृष्टि दोष का निवारण — निकट दृष्टि दोष के निवारण के लिए उपयुक्त् फोकस दूरी के अवतल लेंस का प्रयोग किया जाता है।

2. दूरदृष्टि दोष — इनमें निकट स्थित वस्तुएं स्पष्ट नहीं दिखाई देती है, दूर की वस्तुएं स्पष्ट दिखायी देती है। इस दोष से पीड़ित नेत्र में प्रतिबिम्ब रेटिना के पीछे बनता है।

— दूर दृष्टि दोष का निवारण — इस दोष के निवारण के लिए उपयुक्त फोकस दूरी के उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है।

3. जरादृष्टि दोष — प्रत्येक व्यक्ति की आयु बढ़ने के साथ आंख की समंजन क्षमता भी कम हो जाती है। वृद्धावस्था में न तो पास की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई देती हैं और न दूर की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई देती है। इस दोष को जरा दृष्टि दोष कहते हैं। इसके निवारण हेतु द्वि — फोकसी लेंस प्रयुक्त किये जाते हैं जिनमें नीचे का भाग उत्तल लेंस तथा ऊपर का भाग अवतल लेंस होता है।

4. दृष्टि वैषम्य दोष — आंख में यह दोष कॉर्निया की गोलाई में अनियमितता के कारण उत्पन्न होता है। इस दोष से युक्त नेत्र मे समान दूरी पर स्थित क्षैतिज एवं ऊध्र्वाधर रेखाओं का एक साथ स्पष्ट प्रतिबिम्ब दृष्टिगोचर नहीं होता है।

— इसके निवारण हेतु बेलनाकार लेंस (Cylindrical Lens) का प्रयोग किया जाता है।

❒ मोतियाबिन्द — आंख में पुतली के पीछे नेत्र लेंस पारदर्शक होता है व्यक्ति की आयु बढ़ने पर यह लेंस अपारदर्शक हो जाता है और यह प्रकाश का परावर्तन करने लगता है, जिससे वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती है, इस दोष को मोतियाबिन्द कहते है। दूर करने की विधियां—

— पहली विधि — शल्य चिकित्सा द्वारा मोतियाबिन्द निकाल देना तथा मरीज को मोटा चश्मा लगाना।

— दूसरी विधि — यह आधुनिक विधि है जिससे वस्तुएं बड़ी नजर आती है और दृष्टि क्षेत्र कम हो जाता है इसमें मरीज की आंख में एक कृत्रिम लेंस लगाया जाता है जिसे इन्ट्रा ऑक्यूलर लेंस कहते हैं। इस विधि में मोतियाबिन्द को हटाकर पीछे वाली पतली झिल्ली के आगे कृत्रिम लेंस प्रत्यारोपित किया जाता है। इस विधि में आंख में चीरा कम लगता है तथा मोटे चश्में की आवश्यकता नहीं होती है तथा दृष्टि क्षेत्र बढ़ जाता है।

❒ रंतौधी (आंख का सूखापन) — इसमें रोगी को रात को दिखायी नहीं देता।

❒ ग्लूकोमा — आंख के लैंस में द्रव्य का प्रवाह रूकना, आंख में सूजन आना, प्रकाशीय तंत्रिका का नष्ट होना इस रोग के लक्षण है। इस रोग में व्यक्ति के अंधा होने का डर रहता है।

❒ वर्ण अन्धता (Colourblindness) —

यह दो प्रकार का होता है:—

1. लाल—हरी वर्ण अन्धता (Red-green Colourblindness)

2. नील वर्ण अन्धता (Blue Colourblindness)

— इनमें से लाल—हरी वर्ण अन्धता सबसे सामान्य है जिसको प्रोटोन दोष (Proton defect) भी कहते हैं।

— लाल—हरी वर्ण अन्धता लाल अथवा हरे शंकुओं के अभाव में होती है। इसमें लाल, हरे पीले तथा नारंगी रंगों मे अन्तर नहीं कर पाते है। लाल शंकुओं के अभाव में उपरोक्त रंग हरे तथा हरे शंकुओं के अभाव में लाल दिखाई देते है।

— यह एक लिंग सहलग्न (Sex-linked) आनुवंशिकी रोग है जो X- गुणसूत्र में स्थित अप्रभावी जीन से होता है।

— इस रोग में माता वाहक (Carrier) का कार्य करती है।

— वर्णान्ध पुत्री का पिता हमेशा वर्णान्ध होता है।

— वर्णान्ध पिता तथा सामान्य माता की F1 संतति में सभी लड़कियां वाहक तथा सभी लड़के सामान्य होते हैं।

— सामान्य पिता तथा माता की F1 संतति में से 50 प्रतिशत लड़कियां वाहक व 50 प्रतिशत लड़कियां सामान्य, 50 प्रतिशत लड़के सामान्य व 50 प्रतिशत लड़के वर्णान्ध होते है।

— वर्णान्ध पिता तथा वाहक माता की F1 संतति में से 50 प्रतिशत लड़कियां वर्णान्ध व 50 प्रतिशत लड़कियां वाहक तथा 50 प्रतिशत लड़के सामान्य व 50 प्रतिशत लड़के वर्णान्ध होते हैं।

— सामान्य पिता तथा वर्णान्ध माता के सभी लड़के वर्णान्ध तथा सभी लड़कियां वाहक होती है।

❒ सूक्ष्मदर्शी यंत्र — प्रकाशीय यंत्र जो छोटी वस्तुओं का बड़ा प्रतिबिम्ब बना देता है उसे सूक्ष्मदर्शी यंत्र कहते हैं। इस यंत्र द्वारा वस्तु का बड़ा व आभासी प्रतिबिम्ब प्राप्त होता है। सूक्ष्मदर्शी यंत्र दो प्रकार के होते हैं—

1. सरल सूक्ष्मदर्शी — इसमें एक कम फोकस दूरी का उत्तल लेंस होता है जिसे पकड़ने के लिए एक हेंडल होता है। किसी छोटी वस्तु को इस यंत्र से देखने के लिये इस लेंस को वस्तु को तब तक नजदीक ले जाते हैं जब तक वस्तु उस लेंस के प्रकाश केन्द्र व फोकस वस्तु का आभासी सीधा तथा वस्तु से बड़ा प्रतिबिम्ब बन जाता है। यही सरल सूक्ष्मदर्शी यंत्र का सिद्धान्त है।

— इसका उपयोग सामान्यतया घड़ीसाज द्वारा एवं चश्मे में किया जाता है।

— आवर्धन क्षमता — प्रतिबिम्ब व बिम्ब के आकार का अनुपात आवर्धन क्षमता कहलाती है। आवर्धन क्षमता सूत्र —

जहां D — स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी (25 सेमी.)

f — उत्तल लेंस की फोकस दूरी।

2. संयुक्त सूक्ष्मदर्शी — यह एक ऐसी प्रकाशीय यंत्र है जिसकी सहायता से अत्यधिक छोटी वस्तुएं जैसे जीवाणुओं की संरचना को बड़ा करके देखा जाता है।

— संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता निम्न सूत्र से ज्ञात की जाती है।

V0 अभिदृश्यक लेंस में प्रतिबिम्ब की दूरी

U0 अभिदृश्यक लेंस से वस्तु की दूरी

D स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी

Fe अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी

❒ दूरदर्शी — दूर स्थित वस्तुएं आकार में बड़े होते हुए भी दूर होने के कारण हमें छोटे व अस्पष्ट दिखाई देते हैं। इन वस्तुओं को बड़ा व स्पष्ट देखने के लिए जिस प्रकाशी यंत्र का उपयोग करते हैं, उसे दूरदर्शी यंत्र कहते हैं ये दो प्रकार के होते हैं—

1. खगोलीय अपवर्तक दूरदर्शी

2. न्यूटन का परावर्तक दूरदर्शी

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