दैनिक जीवन में विज्ञान के मूलभूत तत्त्व

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दैनिक जीवन में विज्ञान के मूलभूत तत्त्व  (Fundamentals of Science in Everyday life)

महत्त्वपूर्ण तथ्य :—

✧ प्रकृति के क्रमबद्ध अध्ययन से अर्जित एवं प्रयोगों द्वारा प्रमाणित वर्गीकृत ज्ञान को विज्ञान कहते है।

✧ विज्ञान की वह शाखा, जो जीव, जीवन के प्रक्रियाओं के अध्ययन से संबंधित है, जीव विज्ञान कहलाती है।

✧ विज्ञान की ऐसी शाखा है, जिसमें पदार्थों के संघटन, संरचना गुणों और रसायनिक प्रक्रिया के समय पदार्थ में हुए परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है, रसायन विज्ञान कहलाती है।

✧ भौतिक विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत प्राकृतिक ओर ब्रह्माण्ड में होने वाली घटनाओं का अध्ययन किया जाता है एवं इसमें ऊर्जा के विभिन्न स्वरूपों, द्रव्य यांत्रिकी, प्रकाश, ध्वनि, नाभिक की संरचना, जड़त्व, गुरूत्वाकर्षण, वेग, त्वरण, चाल, दूरी, समय बल, कार्य, शक्ति, ऊर्जा आदि का अध्ययन करते है।

वैज्ञानिक खोजें :—

विभिन्न यंत्रों व उपकरणों के आविष्कारक

उपकरण — आविष्कार — देश

बैरोमीटर — ई.टॉरसेली — इटली

विद्युत बैटरी व विद्युत धारा — अलेक्जेण्ड्रो वोल्टा — इटली

बाइसिकल — के.मेकमिलन — स्कॉटलैण्ड

टायर — जॉन डनलप — ब्रिटेन

कार(वाष्प) — निकोलस कुग्नार — फ्रांस

कार(पेट्रोल) — कार्ल बेन्ज — जर्मनी

कताई मशीन — सेमुअल क्रॉम्पटन — ब्रिटेन

घड़ी(पेण्डूलम) — किश्चयन हयूगेंस — नीदरलैण्ड्स

डीजल इन्जन — रूडोल्फ डीजल — जर्मनी

डायनेमो — हाइपोलाइट पिक्सी — फ्रांस

ए.सी.मोटर — निकोला टेसला — अमेरिका

डी.सी.मोटर — जेनोबे ग्रामे — बेल्जियम

मूक चलचित्र — जे.मुसौली व हैन्स बागर — जर्मनी

वाक् चलचित्र(संगीत युक्त) — ली.डी. फॉरेस्ट — अमेरिका

मूवी(टाकिंग) — वार्नर ब्रदर — अमेरिका

फाउण्टेन पेन — लेविस वाटरमैन — अमेरिका

ग्रामोफोन — थॉमस अल्वा एडीसन — अमेरिका

लाउडस्पीकर — होरेश शार्ट — ब्रिटेन

सैफ्टी पिन — वाल्टर हन्ट — अमेरिका

सिलाई मशीन — बर्थलेमी थिमोनियर — फ्रांस

स्टील — हेनरी बेसेमर — ब्रिटेन

स्टीम इन्जन(कंडेंसर) — जेम्स वॉट — स्कॉटलैण्ड

स्टीम इन्जन(पिस्टन) — थॉमस न्यूकोमेन — ब्रिटेन

सेफ्टी मैच — जान वाकर — ब्रिटेन

सीमेन्ट(पोर्टलेन्ड) — जोसफ एस्पीडीन — ब्रिटेन

टैंक  — सर अर्नेस्ट स्विटन — ब्रिटेन

टेलीग्राफ(यान्त्रिक) — एम.लैमाण्ड — फ्रांस

टेलीग्राफ कोड — सेमुअल मोर्स — अमेरिका

टेलीफोन — ग्राहम बेल — अमेरिका

टेलीविजन — जे.एल.बेयर्ड — ब्रिटेन

थर्मामीटर(गैस) — गैलिलियों गैलीली — इटली

थर्मामीटर(मर्करी) — फॉरेनहाइट — जर्मनी

टेलिस्कोप — गेलिलियो — इटली

ट्रान्सफार्मर व डायनेमो — माइकल फेराडे — ब्रिटेन

पनडुब्बी — डेविड बुसनेल — अमेरिका

हेलिकॉप्टर — एटीन ओहमिसेन — फ्रांस

माइक्रोस्कोप — जेड.जानेसन — नीदरलैण्ड

मोटर साइकिल — जी.डेमलर — जर्मनी

माइक्रोफोन — ग्राहम बैल — अमेरिका

पेपर(कागज) — मुलबेरी — चीन

प्लास्टिक — अलेजेन्डर पार्कस — ब्रिटेन

प्रिटिंग प्रेस — जॉन गुटेनबर्ग — जर्मनी

पास्चुरीकरण — लुई पास्चर — फ्रांस

रडार — डॉ.अल्बर्ट टेलर, लियो यंग — अमेरिका

रेजर(विद्युत) — जैकव शिक — अमेरिका

सैफ्टी रेजर — किंग जिलेट — अमेरिका

रेफ्रीजरेटर — जेम्स हैरीसन व अलेक्जेण्डर के.टिनिंग

रिवाल्वर — सैमुअल कोल्ट — अमेरिका

लेसर — डॉ चाल्र्स टाउन्स — अमेरिका

थर्मस फ्लास्क — डेवार — अमेरिका

ट्रेक — रार्वर्ट फॉरमिच — अमेरिका

जेट इन्जन — फ्रेंक व्हीटल — ब्रिटेन

सौर मण्डल — कॉपर निकस — पोलेण्ड

हवाई  जहाज — राइट बन्धु(Wright Brothers) — अमेरिका

वातानुकुलन — डब्ल्यू.एच.केरियर — अमेरिका

कैल्कुलेटर — पास्कल — फ्रांस

कम्प्यूटर — हावर्ड आरफिन — अमेरिका

डाइनामाइट — अल्फ्रेड नोबेल — स्वीडन

बल्ब — एडीसन — अमेरिका

इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप — नॉल व रस्का — जर्मनी

रेडियो ब्रॉडकास्टिंग — मारकोनी — इटली

जीव विज्ञान की खोजें :—

खोज — वैज्ञानिक — देश

आनुवांशिकता के नियम — जॉर्ज ग्रेगर मेण्डल — ऑस्ट्रिया

प्राकृतिक चयन का सिद्धान्त — चालर्स डार्विन — इंग्लैण्ड

उपार्जित लक्षणों की वंशानुगति — लैमार्क — फ्रांस

कोशिका(मृत) — राबर्ट हुक — इंग्लैण्ड

कोशिका(जीवित) — ल्यूवेन हॉक — नीदरलैण्ड

रक्त परिसंचरण — विलियम हार्वे — इंग्लैण्ड

टीका(Vaccine) — एडवर्ड जेनर — इंग्लैण्ड

रेबीज का टीका — लुई पास्चर — फ्रांस

पोलियो का ओरल टीका — एल्बर्ट साबीन — अमेरिका

पोलियो टीका(इन्जेक्शन) — जोनास साल्क — अमेरिका

चेचक का टीका — एडवर्ड जेनर — अमेरिका

हेजे का टीका — राबर्ट कॉच — जर्मनी

बी.सी.जी — यूरीन काल्मेट — जर्मनी

एस्प्रीन — ड्रेसर — जर्मनी

मनोविज्ञान — फ्रायड — ऑस्ट्रिया

विटामिन — फंक — इग्लैण्ड

ब्लड ग्रुप/ आर.एच.फेक्टर/ एण्टीजन —     कार्ल लैण्डस्टीनर — अमेरिका

इन्सुलिन — बेंटिंग व बेस्ट — कनाडा

पेनिसिलिन(प्रथम प्रतिजैविक) — एलेक्जेण्डर फ्लेमिंग — इंग्लैण्ड

ह्वदय प्रत्यारोपण — क्रिश्चन बनार्ड — द. अफ्रीका

जेनेटिक कोड — हरगोविन्द खुराना — भारत

होम्योपेथी — हेनीमेन — जर्मनी

C.T. स्केन(Compurterized Axial Tomography) — जैफरी हाउन्सफील्ड

एड्स वायरस — डॉ.रॉबर्ट गालो एवं ल्यूक मोटेग्नीर — अमेरिका

विटामिन—A — मैकुल, एल. मेंडल — अमेरिका

विटामिन—C — होल्कर

विटामिन—D — हॉपकिन्स

पास्चुरीकरण — लुई पास्चर — फ्रांस

माइक्रोबैक्टिरिअम ट्यबरकुलाई — रॉबर्ट कॉच — जर्मनी

विषाणु — डी.जे.इवेनोव्सकी — डच

होमियोस्टैसिस — वॉल्टर कैनन

भौतिकी संबंधी महत्त्वपूर्ण खोजें :—

खोज — वैज्ञानिक — वर्ष

परमाणु — जॉन डाल्टन(इंग्लैण्ड) — 1808

इलेक्ट्रॉन — जे.जे.थामसन(इंग्लैण्ड) — 1897

प्रोटोन — रदरफोर्ड(इंगलैण्ड) — 1919

न्यूट्रॉन — जेम्स चेडविक(इंग्लैण्ड) — 1932

परमाणु बम — आटो हॉन(जर्मनी) — 1941

गति के नियम — न्यूटन(इंग्लैण्ड) — 1687

रेडियो एक्टिवता — हेनरी बेक्वेरल(फ्रांस) — 1896

सापेक्षता का सिद्धान्त — आइन्सटीन(जर्मनी) — 1905

प्रकाश विद्युत प्रभाव — आइन्सटीन(जर्मनी) — 1905

रमन प्रभाव — सी.वी.रमन(भारत) — 1928

एक्स—रे — रोन्टजन(जर्मनी) — 1895

आर्वत सारणी — डी.मैण्डलीफ(रूस) — 1869

विद्युत प्रतिरोध के नियम — जी.एस.ओम(जर्मनी) — 1827

उत्प्लावन का सिद्धान्त — आर्कमिडीज(इटली) — 200 बी.सी.

नाभिकीय रिएक्टर — फर्मी(इटली) — 1942

परमाणु विखण्डन- आहनेक — आटोहॉन(जर्मनी)

बेतार का तार — मार्कोनी(इटली) — 1901

ग्रहों की गति के नियम — केप्लर(जर्मनी) — 1601

प्रमुख वैज्ञानिक यन्त्र व उनके उपयोग :—

उपकरण — प्रयोग/मापन

आडियोफोन — कम सुनाई देने वाले व्यक्ति

अमीटर — विद्युत धारा मापन

अल्टीमीटर — समुद्र तल से विमान की ऊंचाई नापना

एनीमोमीटर — वायु की गति व दिशा ज्ञात का ज्ञान

आडियोमीटर — ध्वनि की तीव्रता का मापन

एस्ट्रोमीटर — तारों के प्रकाश की तीव्रता का मापन

बेरोमीटर — वायुदाब मापन

बाइनोकुलर्स — दूरदर्शी

कैलारी मीटर — उष्मा की मात्रा का कैलोरी में मापन

कैलीपर्स — वस्तु का व्यास, लम्बाई आदि छोटी दूरियों का मापन

कारबुरेटर — इन्जन में पेट्रोल के साथ वायु को मिलाना

कार्डियोमीटर — ह्वदय की धड़कनों को ग्राफ रूप में व्यक्त करने में(ECG)

केस्कोग्राफ — पौधों की वृद्धि नापने में

कम्पास — दिशा ज्ञात करने में

कैमरा — प्रकाशीय बिम्बों का फोटोग्राफिक प्लेट पर प्रतिबिम्ब बनाने में

डायनेमो — यान्त्रिक ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में परिवर्तन

इपीडियोस्कोप — पर्दे पर स्लाइड प्रदर्शन में

एपिकायस्कोप — अपारदर्शी चित्रों को पर्दे पर दिखाने में

फेदोमीटर — समुद्री गहराई का मापन

गीगर काउण्टर — रेडियोधर्मी विकिरणों की उपस्थिति ज्ञान करने में

हिप्सोमीटर — पर्वतों की समुद्र तल से ऊंचाई का ज्ञान

लेक्टोमीटर — दूध आदि द्रवों का घनत्व/ दूध की शुद्धता का मापन

मेनोमीटर — गैसों का दाब ज्ञात करने में

माइक्रोस्कोप — सूक्ष्म आकार की वस्तुओं को बड़ा करके देखने में

पेरिस्कोप — पनडुब्बी से जन सतह का अवलोकन करने में

पायरोमीटर — उच्च ताप का मापन करने में

फोटोमीटर — प्रकाश स्त्रोतों की ज्योति तीव्रता मापने में

राडार — वायुयान की स्थिति ज्ञात करने में

रेनेगेज — वर्षा की मात्रा का मापन

रेडियेटर — वाहनों के इंजन को ठण्डा करने में

सीस्मोग्राफ — भूकम्प का तीव्रता का मापन

स्पीडोमीटर — वाहन की गति का ज्ञान

स्टॉप वॉच — छोटे समयान्तराल मापने में

स्टेथेस्कोप — शारीरिक ध्वनि से शरीर के अंगों की जॉंच करने में

स्फेग्नोमेनोमीटर — शरीर का रक्त दाब(B.P.) नापन में।

सेफ्टीलेम्प — खानों में दुर्घटना रोकने में

टेलीस्कोप — दूरस्थ आकाशीय पिण्डों व वस्तुओं को देखने में

थर्मामीटर — माप मापने में

थर्मोस्टेट — ताप स्थरीकरण में

ट्रान्सफॉरमर — ए.सी. की वोल्टता कम करने या बढ़ाने में

वोल्टामीटर — विभवान्तर मापने में

भारतीय वैज्ञानिक व उनका योगदान :—

✧ कणाद: वैशेषिक दर्शन के रचयिता जिन्होंने सर्वप्रथम परमाणु के बारे में बताया। परमाणु को अविभाज्य बताया।

✧ चरक: ‘चरक सहिंता’ के लेखक/ कनिष्क के राजवैद्य एवं महान चिकित्सक।

✧ धनवन्तरी: महान आयुर्वेदाचार्य

✧ नागार्जुन: गुप्तकालीन महान रसायनज्ञ/ उन्होंने रसचिकित्सा प्रस्तुत की।

✧ सुश्रुत: ‘सुश्रुत सहिंता’ के रचयिता/ आयुर्वेदाचार्य, शल्य चिकित्सा के जनक।

✧ भास्कराचार्य: सिद्धान्त शिरोमणी नामक पुस्तक में गणित व नक्षत्र शास्त्र की विवेचना।

✧ भास्कर—1 : खगोल शास्त्री

✧ भास्कर—2 : गणितज्ञ

✧ पतंजलि : ई.पू. दूसरी शताब्दी में योग सूत्रों व महाभाष्य नामक व्याकरण ग्रंथ की रचना की।

✧ आर्यभट्ट: महान गणितज्ञ व खगोलशास्त्री। प्रथम बार पृथ्वी को गोल बताया तथा कहा कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। उन्होंने π का मान 3.1416 बताया। प्रथम भारतीय उपग्रह का नाम आर्यभट्ट इन्हीं के नाम पर रखा गया। दशमलव प्रणाली एवं शून्य इन्हीं की देन है।

✧ सर सी.वी. रमन: रमन प्रभाव की खोज। इसके लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया। जन्म दिवस 28 फरवरी को विज्ञान दिवस मनाया जाता है।

✧ डॉ. होमी जहॉंगीर भाभा : भारत में परमाणु कार्यक्रमों के जनक। भारत की प्रथम परमाणु  भट्टी इनके निर्देशन में बनी।

✧ डॉ. विक्रम साराभाई: भारत में अन्तरिक्ष कार्यक्रम के जनक। इसरो की स्थापना।

✧ जगदीश चन्द्र बोस: बेतार के तार का आविष्कार मार्कोनी से पहले किया। क्रेस्कोग्राफ का आविष्कार। इन्होंने सर्वप्रथम बताया कि पौधों में भी संवेदनाएं है।

✧ सत्येन्द्र नाथ बोस: आइन्सटीन के साथ मिलकर काम किया। ‘बोस—आइन्सटीन सांख्यिकी’ का प्रतिपादन। एक नये मूल कण ‘बोसोन’ की खोज।

✧ डॉ. मेघनाद साहा: ‘इन्स्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स’ की कलकत्ता में स्थापना जिसे अब ‘साहा इन्स्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स’ कहते हैं।

✧ बीरबल साहनी: भारतीय पुरावनस्पति विज्ञान के जनक।

✧ डॉ.एच.एन.सेठना: प्रथम भारतीय परमाणु परीक्षक के प्रणेता।

✧ डॉ. हरगोविन्द खुराना: जेनेटिक कोड की खोज, कृत्रिम जीन का निर्माण।

✧ डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन: भारत में हरित क्रान्ति के प्रणेता।

✧ डॉ.एस. चन्द्रशेखर: तारों की गति व सामान्य आपेक्षिकता व ब्लैक होल्स पर कार्य किया ‘चन्द्रशेखर लिमिट’ प्रतिपादित की।

✧ श्रीनिवासन रामानुजन: प्रसिद्ध गणितज्ञ।

✧ डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम: ‘मिसाइल मेन’ के नाम से प्रसिद्ध, भारतीय रक्षा अनुसन्धान केन्द्र में कार्य करते हुए मिसाइलों का विकास। इनके मार्गदर्शन में वर्ष 1998 में पोकरण में द्वितीय परमाणु परीक्षण किया गया था।

जीव विज्ञान से संबंधित शोध संस्थान :—

केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान — लखनऊ

केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान — मैसूर(कर्नाटक)

केन्द्रीय चिकित्सकीय और सुर्गान्धत वनस्पति संस्थान — लखनऊ

राष्ट्रीय वनस्पति विज्ञान संस्थान —  लखनऊ

भारतीय स्थित अन्तरिक्ष अनुसंधान केन्द्र

विक्रम साराभाई अन्तरिक्ष केन्द्र — त्रिवेन्द्रम(केरल)

स्पेस एप्लीकेशन संस्थान — अहमदाबाद

भारतीय वैज्ञानिक उपग्रह केन्द्र — पीन्या(बैंगलोर)

सेटेलाइट ट्रेकिंग और रेगिंग स्टेशन — कावालुर(तमिलनाडु)

श्रीहरिकोटा हाई एल्टीट्युड रेंज — श्रहरिकोटा(आन्ध्र प्रदेश)

सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र — श्रीहरिकोटा(आन्ध्र प्रदेश)

फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी — अहमदाबाद

भारत में परमाणु विकास से संबंधित संस्थान :—

परमाणु ऊर्जा विभाग(DAE)  — दिल्ली

परमाणु ऊर्जा आयोग(AEC) — दिल्ली

भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र(B.A.R.C.) — मुंबई

एटॉमिक मिनरल डिविजन(AMD) — हैदराबाद

इण्डियन रेयर अर्थ लिमिटेड(IREL)  — हैदराबाद

युनेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया — जादूगुड़ा(बिहार)

टाटा इन्स्टीयूट ऑफ फण्डामेण्टल रिसर्च(TIFR) — मुम्बई

साहा इन्स्टीटयूट ऑफ न्युक्लियर फिजिक्स — कलकत्ता

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जीव विज्ञान (Biology)  –    

❖ जीव विज्ञान(Biology)

✧ Biology  का अर्थ है— ‘जीवन का अध्ययन(Study of life)’। जीव विज्ञान को दो शाखाओं(branches) में विभाजित किया गया है—

— वनस्पति विज्ञान(Botany) : इस शाखा में समस्त पादपों का अध्ययन(study of plants) किया जाता है।

— प्राणी विज्ञान(Zoology) : इस शाखा में समस्त प्राणियों का अध्ययन(study of animals) किया जाता है।

✧ अरस्तु(Aristotle) को जीव विज्ञान का जनक(Father of biology) कहते हैं।

✧ ‘जॉन रे'(John Ray) ने सबसे पहले जाति(species) को परिभाषित किया था।

✧ ”जाति”वर्गीकरण की सबसे छोटी एवं मूल इकाई(smallest and basic unit of classification) होती है।

सजीव व निर्जीव (Living and Non-Living)

❖ सजीव व निर्जीव(Living and Non living): पृथ्वी विभिन्न प्रकार की वस्तुओं से मिलकर बनी है जैसे— पेड़, नदी भूमि, पत्थर, पहाड़, पक्षी, जंतु आदि। इन वस्तुओं को मुख्यत: दो भागों में बॉंटा गया  है—

✧ वे सभी वस्तुएं जिनमें जीवन है, सजीव कहलाती हैं तथा वे वस्तुएं जिनमें जीवन नहीं हैं, निर्जीव कहलाती हैं।

✧ सजीव विभिन्न सूक्ष्म संरचनाओं से बने होते है, जिन्हें कोशिकाएं(Cells) कहते है।

❖ सजीवता के लक्षण — गति, श्वसन, संवेदनशीलता, वृद्धि एवं विकास, जनन, उत्सर्जन, पोषण, पाचन, उपापचय, समस्थिति, तथा अनुकूलन।

✧ सजीव श्वसन की क्रिया में ऑक्सीजन ग्रहण करने तथा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करके विभिन्न शारीरिक क्रियाओं हेतु पोषक पदार्थों का विघटन करते हैं जिससे जैविक क्रियाओं हेतु ऊर्जा प्राप्त होती है।

✧ पादपों में वृद्धि असीमित व जन्तु में सीमित होती है।

✧ जन्तु अपना पोषण मुंह से ग्रहण करते हैं जबकि पादप मूल(Root) द्वारा मृदा(Soil) से घुलित अवस्था में तथा प्रकाश संश्लेषण(Photo Synthesis) द्वारा अपने पोषण की क्रिया करते हैं।

✧ सभी जीवों की कोशिकाओं में जैव रासायनिक अभिक्रियाएं होती हैं जिन्हें उपापचय कहते हैं।

✧ जीवधारियों में वातावरण एवं भौतिक रासायनिक दशाओं में निरंतर होने वाले परिवर्तनों के अनुसार स्वयं को नियमित दशा(Steady State) में बनाए रखने की प्राकृतिक या जन्मजात क्षमता होती है। जीवधारियों की इसी क्षमता को समस्थैतिकता या समस्थापन(Homeostasis) कहते हैं।

✧ किसी जीव या जाति में स्वत: नियमन, आत्मपरिरक्षण एवं जाति की रक्षा के लिए संरचनात्मक एवं शरीर क्रियात्मक विशेषताएं पाई जाती हैं, उन्हें अनुकूलन(Adaptation) कहते हैं। उदाहरण— जलीय जीवों में तैरने के लिए शरीर नौकाकार तथा सुप्रवाही(Stream lined) हो जाता है।

— हवा में उड़ने वाले जन्तुओं का शरीर हल्का होता है तथा पंख होते हैं।

— मरूस्थल(Desert) में रहने वाले प्राणियों में जल का परिरक्षण करने की क्षमता होती है।

❖ विषाणु(Virus) — सजीवों वं निर्जीवों के बीच की योजक कड़ी

✧ विषाणु अकोशिकीय अतिसूक्ष्म कण हैं जो केवल परपोषी कोशिका अथवा मेजबान जीव में ही जनन कर वंश वृद्धि कर सकते हैं क्योंकि ये रासायनिक दृष्टि से प्रोटीन के आवरण से घिरे न्यूक्लिक अम्ल के खण्ड होते हैं, अत: वायरस न सजीव हैं और न ही निर्जीव।

जीवों का वर्गीकरण(Classification of Living beings)

✧ पादपों व जन्तुओं का उनकी पहचान तथा पारस्परिक संबंधों व वर्गिकी समूहों के आधार पर वैज्ञानिक व्यवस्थापन वर्गीकरण कहलाता है।

✧ जीवों के वर्गीकरण की वैज्ञानिक पद्धति वर्गिकी(Taxonomy) अथवा वर्गीकरण विज्ञान(Systematic) कहलाती है।

✧ वर्गिकी के पिता(Father of Taxonomy) — कैरोलस लीनियस(Carolus Linnaeus)

❖ जीवों का वैज्ञानिक नामकरण(Scientific nomenclature of species)

✧ जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्धति स्वीडन के जीव विज्ञानी कैरोलस लीनियस ने प्रस्तुत की। इस पद्धति के अनुसार, प्रत्येक जीव के नाम के भाग होते हैं। नाम के पहले भाग में वंश(Genus) का नाम तथा दूसरे भाग में जाति(Species) का नाम होता है। उदाहरणत: मानव—होमो सेपियन्स(Homo Sapiens)।

❖ वर्गिकी की विभिन्न पद्धतियां(Different system of classification) :—

पद्धति — प्रतिपादक

दो जगत वर्गीकरण पद्धति — कैरोलस लिनीयस(18वीं शताब्दी)

त्रिजगत पद्धति — हैकेल(1866)

चतुर्जगत पद्धति — एच.एफ. कोपलेण्ड(1938)

पंचजगत पद्धति — आर.एच. व्हिटेकर(1969)

पंचजगत(Five kingdom)

मोनेरा, प्रोटिस्टा, फंजाई, प्लाण्टी व एनिमैलिया। इस पद्धति में जीवों की कोशिका संरचना, थैलस संरचना, पोषण प्रक्रिया, जनन एवं जातिवुत्तीय संबंध वर्गीकरण के प्रमुख मापदण्ड थे।

❖ जीवाणु(Bacteria)

✧ वैज्ञानिक एंटोनी वॉन ल्यूवेनहॉक — जीवाणु विज्ञान का जनक

✧ जीवाणु एककोशिक प्रौकेरियोटिक व सर्वव्यापी सूक्ष्मजीव हैं।

✧ दलहनी फसलों की जड़ों में पाये जाने वाले राइजोबियम जीवाणु वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को ग्रहण करके मृदा की उर्वरता में वृद्धि करते हैं।

✧ लैक्टोबैसिलस नामक जीवाणु दूध में उपस्थित लैक्टोज शर्करा को लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित करके दूध को दही में परिवर्तित कर देता है। यह प्रक्रिया किण्वन(Fermentation) के माध्यम से होती है।

❖ माइकोप्लाज्मा :—

✧ माइकोप्लाज्मा सबसे सूक्ष्म, सबसे सरल तथा आत्म—प्रतिलिपिकरण(Self-replication) करने वाले जीवाणु हैं।

✧ इनमें कोशिका भित्ति नहीं होने के कारण माइकोप्लाज्मा को सामान्य रूप से मॉलीक्यूट्स अर्थात कोमल त्वचा वाले जीव कहा जाता है।

✧ माइकोप्लाज्मा को ”जीव जगत का जोकर” कहा जाता है।

✧ प्रारंभ में नौकार्ड एवं रस्का ने इनका नामकरण प्लूरोन्यूमोनिया जैसे जीवधारियों(Pleuropneumonia like organism या PPLO) के रूप में किया।

❖ प्रोटिस्टा जगत(Kingdom protista) : सभी एककोशिक यूकैरियोटिक जीवों को प्रोटिस्टा में रखा गया है।

❖ प्रोटोजोआ(Protozoa) : ये परपोषी जीव होते हैं जो परभक्षी अथवा परजीवी के रूप में रहते हैं। उदाहरण: अमीबा, पेरामिसियम, ट्रिप्नोसोमा, प्लाज्मोडियम आदि।

❖ जगत—कवक(Kingdom – Fungi) : कवक(Fungi) यूकैरियोटिक जीव हैं जिनमें संवहनी ऊतक(Vascular tissue) तथा हरितलवक(Chloroplast) नहीं पाए जाते हैं। उदाहरण — म्यूकर, यीस्ट, कैन्डिडा, पेनीसिलियम, मशरूम, राइजोपस, एस्पर्जिलस आदि।

❖ लाइकेन(Lichen) : लाइकेन शैवाल एवं कवकों का सहजीवन होता है।

✧ प्रदूषण सूचक(Pollution Indicator) — लाइकेन वातावरणीय प्रदूषकों के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं। ये प्रदूषणयुक्त स्थानों जैसे— शहरों, कस्बों, औद्योगिक क्षेत्रों आदि में नहीं उग सकते हैं। 

❖ पादप जगत(Kingdom – Plantae) : पादप जगत को बहुकोशिक उत्पादकों का जगत(Kingdom of Multicellular Producers) कहते हैं क्योंकि इसके अंतर्गत बहुकोशिक, प्रकाशसंश्लेषी, यूकैरियोटिक पादपों को सम्मिलित किया जाता है।

✧ जगत प्लांटी के अंतर्गत निम्नांकित पादप समूहों के लक्षणों, वर्गीकरण तथा आर्थिक महत्वों का अध्ययन किया जाता है—

शैवाल, ब्रायोफाइटा, टेरिडोफायटा, जिम्नोस्पर्मस, या अनावृतबीजी व एन्जियोस्पर्मस या आवृतबीजी।

❖ शैवाल(Algae) : एल्गी का शाब्दिक अर्थ है ‘समुद्री खरपतवार’।

✧ सामान्य रूप से शैवालों को ‘काई’, ‘कांजी’ तथा अंग्रेजी भाषा में “Pond scums, water mosses” व “Frog spittle” कहते है।

✧ शैवाल पर्णहरित युक्त अर्थात स्वपोषी थैलसी पादप(पादप शरीर मूल, स्तम्भ तथा पर्णों में विभाजित नहीं) हैं।  जिनमें कोशिकीय विभेदन तथा संहवन ऊतकों का अभाव होता है।

✧ शैवालों के अध्ययन को शैवाल विज्ञान(Algology) अथवा फाइकोलोजी(Phycology) कहते हैं।

✧ शैवालों से एगार—एगार(Agar – Agar) नामक पदार्थ प्राप्त होता है जो जल के साथ जेल(Gel) बनाता है।

शैवाल(Algae)  — सामान्य नाम(Common name)

क्लोरोफाइसी(Chlorophyceae — हरित शैवाल(Green Algae)

जैन्थोफाइसी(Xanthophyceae) — पीले—हरे शैवाल(Yellow-Green Algae)

फियोफाइसी(Phaeophyceae) — भूरी शैवाल(Brown Algae)

रोडोफाइसी(Rhodophyceae) — लाल शैवाल(Red Algae)

मिक्सोफाइसी(Myxophyceae) — नील हरित शैवाल(Blue Green Algae) या सायनोफाइसी(Cyanophyceae)

❖ जल उफान या प्रस्फुटन या शैवाल प्रस्फुटन: जलशयों में हरे शैवालों(जैसे माइक्रोसिस्टिस, ऑसिलेटोरिया आदि) की संख्या में तीव्र वृद्धि तथा जल निकाय को हरा रंग प्रदान करती है, जो शैवाल प्रस्फुटन कहलाती है। इससे जैविक ऑक्सीजन की मांग (बीओडी) में वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप मछलियों और अन्य जलीय जानवरों की मृत्यु हो जाती है। 

❖ ब्रायोफाइटा(Bryophytes): ब्रायोफाइटा को पादप जगत का उभयचर(Amphibians of plant kingdom) कहा जाता है।

✧ ब्रायोफाइटा के अध्ययन(Study of bryophyta) को ब्रायोलोजी(Bryology) कहते है।

✧ ब्रायोफाइटा वर्ग में सम्मिलित भिन्न—भिन्न पादपों को सामान्य रूप में लिवरवर्टस(Liverworts), हॉर्नवर्टस(Hornworts) तथा मॉसेज(Mosses) कहते हैं।

❖ टेरिडोफाइटा((Pteridophyta) : टेरिडोफाइट संवहनी ऊतकों(जाइलम, फ्लोएम) युक्त{containing vascular tissues(xylem, phloem)} अपुष्पोद्भिद(cryptogams)हैं अत: इन्हें संवहिनी अपुष्पोद्भिद(Vascular cryptogams) कहा जाता है।

✧ उदाहरण — सिलेजिनेला(Selaginella), टेरिस(Pteris) आदि।

❖ अनावृत्त्बीजी या नग्नबीजी या जिम्नोस्पर्मस(GYMNOSPERMS) : ‘Gymnosperm’ पद का गठन यूनानी(Greek) भाषा के Gymnos=naked= नग्न तथा Sperma = Seed =  बीज शब्दों से हुआ है।

✧ जिम्नोस्पर्मों को फलरहित बीज वाले पादप(Freitless seeded Plants) अथवा फलरहित पुष्पी पादप (Phanerogams Without fruits) भी कहते हैं।

❖ आवृतबीजी(Angiosperms): ये पुष्पीय पादप समूह है जिसमें अण्डाशय पाया जाता है, जो निषेचन के पश्चात फल में परिवर्तित हो जाता है। इस समूह के पादपों में बीज फलभित्ति(Pericarp) से आवरित रहते हैं। अत: फलभिति से परिबद्ध बीजों युक्त पादपों को आवृतबीजी पादप या एन्जियोस्पर्म कहते हैं।

उदाहरण :— नीम, बरगद, आम आदि।

जन्तु जगत(Animal kingdom)

❖ अकशेरूकी या अपृष्ठवंशी(Invertebrates) : इस समूह के जन्तुओं में रीढ़ की हड्डी नहीं पाई जाती है, इसलिए ये अकशेरूकी(अपृष्ठवंशी) कहलाते हैं। 

✧ पोरीफेरा(Porifera): ये बहुकोशिकीय व अंगरहित जीव हैं, जो जलीय आवास में रहते हैं। उदाहरण — स्पंज।

✧ सीलेन्ट्रेटा(Coelenterata) : बहुकोशिकीय, जलीय, ऊतक स्तर।

उदाहरण — हाइड्रा(Hydra), मूंगा(Coral)।

✧ ऐनेलिडा(Annelida): इनमें बंद प्रकार का परिसंचरण तंत्र होता है। 

उदाहरण — जोंक, केंचुआ।

— केंचुआ(Earthworm): केंचुए का मल पदार्थ ‘जैव—खाद’ की तरह उपयोग में लाया जाता है क्योंकि इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटैशियम पाया जाता हैं। यह मिट्टी को पोषक बनाता है जिससे मिट्टी उपजाऊ बनती है। इसलिए केंचुए को किसानों का मित्र कहा जाता है।

✧ आर्थोपोडा(Arthropoda): इनमें श्वसन के लिए ट्रेकिया(Trachea) पाये जाते हैं। उत्सर्जन के लिए मैलपीजी नलियां पायी जाती हैं। गति के लिए टांगे होती हैं। उदाहरण — मक्खी, मच्छर, बिच्छू, खटमल, तितली, मकड़ी आदि।

✧ मौलस्का(Mollusca) : इनमें शरीर लिफाफेनुमा मेन्टल(Mantle) से घिरा रहता है, जो अधिकांश सदस्यों में कैल्सियम युक्त कवच(Shell) का स्त्रावण करता है। इनका रक्त नीला होता है। श्वसन क्रिया गिल्स द्वारा होती है। उदाहरण — कौड़ी, सीपी, घोंघा।

✧ इकाइनोडर्मेटा(Echinodermata): Echinos = spiny + Derma = Skin (कांटेदार त्वचा)। इसमें उत्सर्जी अंगो का अभाव होता है।

❖ हैमीकोर्डटा(Hemichordata): संघ हैमीकॉर्डेटा को अकेशेरूकी में पृथक संघ के रूप में रखा गया है। पूर्व में ये प्रोटोकोर्डेटा उपसंघ में रखा जाता था। इस संघ में सम्मिलित कुछ जीव निम्न हैं— बैलेनोग्लॉसस, प्रोटोग्लॉसस, सैकोग्लॉसस, टाइकोडेरा तथा सेफोलोडिस्कम।

❖ कशेरूकी या पृष्ठवंशी(Vertebrates): इन जीवों में रीढ़ की हड्डी(Spinal cord) पायी जाती है। ये जन्तु द्विपाथ समनित(bilateral symmetric) होते हैं। इसमें निम्न समूह आते हैं—

✧ पिसीज(Pisces): ये जल में रहते हैं। शरीर नावाकार होता है, शरीर पर श्ल्कों का आवरण तथा गति के लिए फिन्स पाये जाते हैं। श्वसन के लिए गिल्स होते हैं। ये अनियततापी होते हैं। उदाहरण — मछलियां।

✧ एम्फीबिया(Amphibia) : ये जन्तु स्थल एवं जल दोनों जगह आवास करते हैं। श्वसन के लिए फेफड़े होते हैं। ह्दय तीन कोष्ठीय होता है। ये अनियततापी होते हैं। उदाहरण — मेंढ़क, सेलामैण्ड्रर, हाइला।।

✧ रेप्टीलिया/ सरीसृप(Reptilia): इन जन्तुओं की त्वचा शुष्क एवं अस्थिल शल्क युक्त होती है। ये जीव रेंगकर गति करते हैं। इनका हदय अपूर्ण चार कोष्ठीय होता है। ये जन्तु अनियततापी होते हैं एवं सर्दियों में शरीर के तापक्रम को सामान्य बनाये रखने हेतु अक्रियाशील हो जाते हैं, जिसे हायबरनेशन(Hibernation) कहते हैं।

उदाहरण — छिपकली, सांप, मगरमच्छ।

नोट — मगरमच्छ/ घड़ियाल में पूर्ण चार कोष्ठीय ह्दय पाया जाता है।

✧ एवीज या पक्षी वर्ग(Aves) : इनका शरीर नावाकार, शरीर पर पंखों को आवरण, चार कोष्ठीय ह्दय, मुख के स्थान पर चोंच व उड़ने के लिए पंख होते हैं। ये नियततापी होते हैं। अस्थियां खोखली एवं हल्की होती हैं। 

उदाहरण — चिड़िया, कबूतर, मोर, उल्लू।

✧ स्तनपायी या मैमेलिया(Mammalia): इस वर्ग में सभी स्तनधारियों को सम्मिलित किया गया है। स्तनधारी मादाओं में विकसित स्तन ग्रन्थियां पायी जाती हैं। ये जन्तु नियततापी होते हैं इनमें ह्दय चार कोष्ठीय, श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है।

उदाहरण — मनुष्य, गाय, शेर, चूहा, हाथी, व्हेल, चमगादड़।

❖ कोशिका (Cell) – कोशिका जीवन की इकाई (Cell : The Unit of life)

✧ कोशिका सभी जीवों की संरचनात्मक व कार्यात्मक इकाई है।

✧ कोशिका की खोज(Discovery of cell) — रॉबर्ट हुक(Robert Hooke), 1665 (मृत पादप कोशिका की)

✧ एन्टोनी वान ल्यूवेनहॉक(Antonie Van Leeuwenhoek) ने सर्वप्रथम जीवित कोशिका देखी।

✧ सबसे छोटी कोशिका माइक्रोप्लाज्मा(Mycoplasma) है।

✧ सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग(Ostrich) का अण्डा है।

✧ मनुष्य की तंत्रिका कोशिका सबसे लम्बी कोशिका है।

❖ कोशिकावाद(Cell theory)

✧ जर्मन वैज्ञानिक शर्लाइडेन(schleiden – 1838) एवं श्वान(Schwann – 1839) ने, कोशिकावाद(Cell theory) का प्रतिपादन किया।

❖ आधुनिक कोशिकावाद(Modern cell theory)

✧ रूडोल्फ विर्चो(Rudolf Virchow) ने बताया की ओमनिस सेलुला—इ—सेलुला(Omnis Cellula-e-Cellula) अर्थात कोशिका विभाजित होती है, और नई कोशिकाओं की उत्पति पूर्ववर्ती(Pre-exiting) कोशिकाओं के विभाजन से होती है।

❖ कोशिका के प्रकार (Types of cells)

✧ कोशिका की संख्या के आधार पर —

— एककोशिकीय जीव(Unicellular Organism): जिनका शरीर केवल एक ही कोशिका का बना होता है।

 उदाहरण — अमीबा(Amoeba)

— बहुकोशिकीय जीव(Multicellular Organism): जिनका शरीर अनेक कोशिकाओं का संगठन है।

उदाहरण — मनुष्य(Human)

✧ केन्द्रक की उपस्थित के आधार पर—

— प्रोकैरियोटिक कोशिकाऐं(Prokaryotic Cells): ये प्राथमिक या अविकसित कोशिकाएं होती हैं। इनमें केन्द्र के चारों केन्द्रक कला का अभाव होता है अत: केन्द्रक(Nucleus) नाम का कोई विकसित कोशिकांग इसमें नहीं होता है। उदाहरण— जीवाणु(Bacteria) व नील — हरित शैवाल(Blue – green algae)

— यूकैरियोटिक कोशिकाऐ(Eukaryotic Cells): इन कोशिकाओं में दोहरी झिल्ली के आवरण(Nuclear envelope), केन्द्रक आवरण से घिरा सुस्पष्ट केन्द्रक(Mucleus) पाया जाता है। 

उदाहरण — पादप व जंतु कोशिका।

पादप तथा जन्तु कोशिका में अन्तर(Difference between Plant & Animal Cells) :—

पादप कोशिका(Plant Cell)

— कोशिका कला(Plasma Membrane) चारों ओर से एक भित्ति द्वारा घिरी रहती है जिसे कोशिका भित्ति(Cell Wall) कहते हैं जो प्राय: सेलुलोज(Cellulose) नामक पदार्थ की बनी होती हैं।

— बड़ी—बड़ी रसधानियां(Vacuoles) होती हैं जो कि कोशिका का काफी बड़ा भाग घेरे रहती हैं।

— लवक(Plastids) पाए जाते हैं — हरे (क्लोरोप्लास्ट), रंगहीन(ल्यूकोप्लास्ट), व रंगीन(क्रोमोप्लास्ट)।

— अधिकांश पौधों की कोशिकाओं में सेण्ट्रोसोम नहीं पाए जाते है।

— अधिकांश पौधों की कोशिकाओं में लाइसोसोम नहीं मिलते।

जन्तु कोशिका(Animal Cell)

— कोशिका कला(Plasma Membrane) के बाहर कोई भित्ति नहीं होती।

— रसधानियां(Vacuoles) या तो होती ही नहीं, यदि होती भी है तो बहुत छोटी। अत: कोशिका — द्रव्य कोशिका में समान रूप से वितरित रहता है।

— लवक(Plastids) नहीं पाए जाते है।

— सेण्ट्रोसोम पाए जाते है।

— लाइसोसोम पाए जाते है।

❖ कोशिका भित्ति(Cell Wall) : कवक, पादप तथा जीवाणु कोशिकाओं में कोशिका के चारों ओर एक निर्जीव परत पाई जाती है, जिसे कोशिका भित्ति(Cell Wall) कहते हैं।

✧ पादपों में कोशिका भित्ति सेल्यूलोज, हेमील्यूलोज, पेक्टिन तथा पॉलिसैकेराइडस की बनी होती है।

✧ कवकों में काइटिन की बनी कोशिका भित्ति पाई जाती है।

✧ शैवाल में सेल्यूलोज, गैलेकटेस व मैनान्स की बनी कोशिका भित्ति पाई जाती है।

❖ कोशिकांग(Cell Organelles)

✧ माइटोकान्ड्रिया को कोशिका का ऊर्जा घर(Power House) कहते हैं।

इसे ‘श्वसन’ का केन्द्र भी कहते हैं।(Respiratary Center of cell)

✧ गॉल्जीकाय(Golgi body): ये स्त्रावण का केन्द्र है(Center of secretion)। पादपों में इन्हें ‘डिक्टियोसोम'(Dictiosome) कहते हैं।

✧ राइबोसोम(Ribosome): यह सबसे छोटा कोशिकांग है। इसके बाहर कोई आवरण नहीं पाया जाता है(झिल्ली रहित कोशिकांग)। इसे कोशिका का इंजन अथवा ‘प्रोटीन संश्लेषण का केन्द्र’ या प्रोटीन की फैक्ट्री कहते हैं।

नोट :— राइबोसोम की फैक्ट्री — केन्द्रिका(Nucleoid)

✧ अन्त: द्रव्यी जालिका — एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम(Endoplasmic Reticulum – ER): इसे कोशिका का कंकाल तंत्र(Cytoskeleton of cell) भी कहते है। ये दो प्रकार की होती है—

1. खुदरी अन्त: द्रव्यी जालिका(Rough ER – RER)

— राइबोसोम — उपस्थित (सतह पर)

— कार्य — यह प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होते हैं।

2. चिकनी अन्त: द्रव्यी जालिका(Smooth ER – SER)

— राइबोसोम अनुपस्थित होते हैं।

— कार्य—वसा के संश्लेषण में सहायक, औषधियों का पाचन व विषाक्त पदार्थों को नष्ट करना।

✧ लाइसोसोम(लयनकाल) — इसको ‘पाचन का केन्द्र कहते हैं।’ इसको कोशिका की ”आत्मघाती थैलिया” “Sucidal Bags” भी कहते है। क्योंकि लाइसोसोम अंत: कोशिकीय पाचन के साथ ही क्षतिग्रस्त एवम् मृत कोशिकाओं के अपघटन का कार्य करता है।

✧ रिक्तिका(Vacuoles): पादपों में सबसे बड़ा कोशिकांग होता है। इसमें ”जल और खनिज लवण” पाये जाते है। इन्हें कोशिका रस(Cell Sap) कहते हैं।

✧ तारककाय(सेन्ट्रोसोम) – Centrosome: यह कोशिका विभाजन में सहायक होते हैं। यह पादपों में अनुपस्थित होते हैं।

✧ हरित लवक(Chloroplast): पादपों का ”रसोई घर” कहते हैं। इसे ” प्रकाश संश्लेषण” (Photosynthesis) का केन्द्र भी कहते हैं। इसमें हरा वर्णक ‘क्लोरोफिल'(Chorophy11) पाया जाता है। क्लोरोफिल में ‘मैग्निशियम’ (Mg)धातु पायी जाती है।

✧ केन्द्रक — 

— खोज — रॉबर्ट ब्राउन(1831)।

— केन्द्रक के अध्ययन को ‘केरियोलॉजी'(Karyology) कहते है।

— जन्तु कोशिका में सबसे बड़ा कोशिकांग होता है।

— इसे कोशिका का ‘प्रबन्धक’ तथा ‘नियन्त्रक'(CPU – Central Processing Unit) कहते है।

कोशिकांग — खोज  

अन्त: प्रद्रवयी जालिका — पोर्टर तथा थॉमसन(1945)

माइटोकॉन्ड्रिया — कॉलिकर(1857)

राइबोसोम — रोबिन्सन एवं ब्राउन(पादप कोशिका में — 1953) तथा पैलाडे (जन्तु कोशिका में — 1955)

लाइसोसोम — डी.डुवे(1955)

लवक — हैकल(1886)

केन्द्रक — राबर्ट ब्राउन(1831)

गॉल्जीकाय — केमिलोगॉल्जी(1898)

शरीर के विभिन्न अंग — तंत्र (Various organ – System of body) 

पाचन तंत्र(Digestive System)

❖ पोषण — प्रत्येक जीवधारी को विभिन्न जैव  प्रक्रमों के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो पोषक तत्वों के अंर्तग्रहण से प्राप्त होती है तथा इस ऊर्जा के स्त्रोत को शरीर के अंदर लेने और उपयोग के प्रक्रम को पोषण कहते हैं।

पोषण के प्रकार —

✧ स्वपोषी — सजीव जो अपना भोजन स्वयं बनाते है।

उदाहरण:— हरे पादपों में यह प्रक्रिया प्रकाश संश्लेषण द्वारा होती है।

✧ विषमपोषी — सजीव जो भोजन के लिए अन्य पर आश्रित होते है। उदाहरण :— गाय, मनुष्य आदि।

❖ आहार के आधार पर जीवों के भेद :

✧ शाकाहारी — ये अपना भोजन वनस्पति से प्राप्त करते हैं उदाहरण — गाय, बकरी, भैंस आदि।

✧ मांसाहारी — ये अपने भोजन के लिए अन्य जीवों का भक्षण करते हैं। उदाहरण — शेर, चीता आदि।

✧ सर्वाहारी — ये जन्तु अपना भोजन वनस्पति एवं अन्य जीवों का भक्षण कर प्राप्त करते हैं। उदाहरण — चूहा, कुत्ता, मनुष्य।

✧ कीटाहारी — ये जीव अपने भोजन के लिए कीटों का भक्षण करते हैं। उदाहरण — छिपकली, मेंढ़क आदि।

✧ रूधिरहारी — ये अन्य जीवों के रूधिर से अपना पोषण प्राप्त करते हैं। उदाहरण — जोंक, खटमल, मच्छर आदि।

✧ मृतजीवी(Saprophytic) — ये जीव सड़े—गले कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे — फफूंदी, बैक्टीरिया आदि।

✧ परजीवी(Parasites) — जो सजीव दूसरे सजीव के ऊपर या उसके अंदर रहकर उससे अपना भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे — फीताकृमि, अमरबेल(पादप), प्लाज्मोडियम आदि। 

✧ अपमार्जक या मृतहारी(Scavangers) — जो मृत जीवों या उनके जीवांशो को खाते हैं।

✧ कीटभक्षी पादप — ऐसे पादप जो कीटों को भक्षण करते हैं। जैसे — वीनस फ्लाई ट्रेप, सनडयू, घटपर्णी(पिचर पादप) आदि।

❖ प्रकाश संश्लेषण(Photo-Synthesis) :

✧ प्रकाश संश्लेषण सिर्फ हरे पौधों एवं कुछ जीवाणुओं में घटित होने वाली वह क्रिया है जिसमें पौधे के हरे भाग सौर ऊर्जा को ग्रहण कर वायुमण्डल से ली गई कार्बन डाइऑक्साइड(CO2) तथा भूमि से अवशोषित जल(H2O) के द्वारा कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते है तथा ऑक्सीजन(O2) को गैस के रूप में निष्कासित करते हैं। पौधों में होने वाली यह क्रिया हरितलवक या पर्णहरित(Chlorophy11) की उपस्थिति में होती है।

✧ प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम के दौरान निम्नलिखित घटनाएं होती हैं—

✧ क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना।

✧ प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करना तथा जल अणुओं का हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटन करना।

✧ कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन।

❖ मनुष्य में पोषण तंत्र या पाचन तंत्र(Digestive System in Human) :

✧ ठोस, जटिल, बड़े—बड़े अघुलनशील भोजन अणुओं का विभिन्न एन्जाइमों की सहायता से तथा विभिन्न रासायनिक क्रियाओं द्वारा सरल और छोटे—छोटे घुलनशील अणुओं में निम्नीकरण को पाचन(Digestion) कहते हैं। पाचन क्रिया में भाग लेने वाले तंत्र को पाचन तंत्र(Digestive System) कहते हैं। पाचन की क्रिया निम्न हैं—

अंतर्ग्रहण(Ingestion) — मुख द्वारा भोजन ग्रहण

पाचन(Digestion) — भोजन में उपस्थित जटिल यौगिकों का  सरल यौगिकों में परिवर्तन।

अवशोषण(Absorption) — भोजन का आंत द्वारा अवशोषण 

स्वांगीकरण(Assimilation) — अवशोषित भोजन से पोषक तत्वों का रक्त के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचना।

परित्याग(Egestion) — अपशिष्ट पदार्थ का शरीर से बाहर निकलना।

✧ मनुष्य के पाचन तंत्र को प्रमुख रूप से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है—

क. आहार नाल(alimentory Canal) — इसके प्रमुख भाग निम्न हैं :— मुख(Mouth), मुखीय गुहा(buccal cavity), ग्रसनी(Pharynx), ग्रासनाल(Oesophagus), अमाशय(Stomach), छोटी आंत्र(Small Intestine), बड़ी आंत्र(Large Intestine), मलाशय(Rectum) तथा गुदा(Anus)।

ख. सहायक ग्रन्थियां(Accessory Glands) — मनुष्य में लार ग्रन्थियां(Salivary Glands), यकृत(Liver) एवं अग्नाश्य(Pancreas) प्रमुख सहायक ग्रन्थियां है।

❖ मुख तथा मुखगुहा(Mouth and Buccal cavity) :

✧ दांत(Teeth) : मनुष्य में दो बार दांत आते है।

अ. अस्थायी(दूध के दांत) — 20(छोटे बच्चों में)

ब. स्थायी — 32(वयस्कों में)

✧ लार ग्रन्थियां(Salivary Glands) — ये ग्रन्थियां भोजन को निगलने हेतु चिकनाई प्रदान करती है।

✧ स्टार्च के पाचन हेतु एमाइलेज(Amylase) नामक पाचक रस(Enzymes) का स्त्रावण(Secretion) करती है।

✧ लाइसोजाइम का स्त्रावण

✧ मुखगुहा में पाचन —

स्टार्च — माल्टोज शर्करा

   एमाइलेज

✧ मुखगुहा से लार मिश्रित भोजन — बोलस(Bolus)

❖ ग्रसनी(Pharynx) : इसमें भोजन निगलने तथा श्वास लेने के लिए दो समान मार्ग या छिद्र होते हैं।

❖ आमाशय —

✧ यह ‘J’ आकार की थैलीनुमा संरचना है।

✧ आमाशय में मुख्यत: प्रोटीन का पाचन होता है।

✧ इसमें पाचन कार्य अमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रंन्थियों के द्वारा संपन्न होता हैं।

✧ ये हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, भोजन को अम्लीय बनाता है तथा कीटाणुओं को नष्ट करता है।

✧ ये प्रोटीन पाचक एंजाइम पेप्सिन तथा श्लेष्मा(आमाशय के आंतरिक आस्तर की अम्ल से रक्षा) का स्त्रावण करते हैं।

✧ अमाशय में पचा हुआ भोजन काइम(Chyme) कहलाता है।

❖ छोटी आंत(Small Intestine)

✧ छोटी आंत आहारनाल का सबसे लम्बा भाग होता है। आहारनाल के इसी भाग से पाचन की क्रिया पूर्ण होती है।

इसके प्रमुख रूप से तीन भाग होते है—

अ. ग्रहणी(Duodenem)

ब. मध्यांत्र(Jejunum)

स. शोषान्त्र(ileum)

✧ आमाशय से आने वाला भोजन अम्लीय होता है छोटी आंत में उसे पाचन पूर्ण करने के लिए क्षारीय बनाया जाता है।

✧ इलियन की दीवारों पर अनेक अंगुलियों के समान संरचना पायी जाती हैं जिन्हें आंत्र रसांकुर(Intestinal Villi) कहते हैं। ये रसाकुर आंत की अवशोषण सतह में वृद्धि करते हैं तथा पचे हुए पोषक पदार्थों को अवशोषित करके इन्हें रूधिर एवं लसीका में मिश्रित करती है।

❖ यकृत(Liver) — यह शरीर की सबसे बड़ी(भार 1.2 — 1.5 किग्रा) ग्रन्थि है। यकृत द्वारा प्रमुख रूप से पित्त(bile) रस का स्त्रावण किया जाता है।

❖ अग्नाश्य(Pancreas) — ये विभिन्न प्रकार के पाचक रसों का निर्माण करता है जो कि भोजन के पाचन में सहायक होते हैं। अग्नाश्य से लाइपेज, एमाइलेज तथा ट्रिप्सिन जैसे पाचन एंजाइम स्त्रावत होते हैं।

❖ बड़ी आंत (Large Intestine)

✧ छोटी आंत की तुलना में बड़ी आंत अधिक चौड़ी परंतु लम्बाई में छोटी होती है।

✧ बड़ी आंत मुख्यत: दो कार्य सम्पन्न करती है—

— जल का अवशोषण

— अपचित भोजन को शरीर से बाहर निकालना।

❖ मलाशय (Rectum) : बड़ी आंत के अंतिम भाग को मलाशय कहते हैं।

❖ गुदा (Anus)

✧ यह मलाशय के अंतिम भाग के रूप में लगभग 1 इंच लम्बी नलिका होती है, जो अपशिष्ट मल को शरीर से बाहर निकालने का कार्य करती है।

❖ भोजन के पाचन में सहायक विभिन्न एंजाइम:

मानव शरीर में सक्रिय विभिन्न एन्जाइम्स भोजन को पचाने में सहायक होते हैं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है—

✧ टाइलिन: लार में उपस्थित यह एन्जाइम चबाने के दौरान भोजन की मांड(Starch) को शर्करा(माल्टोज) में बदल देता है, जो बाद में ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाती है।

✧ लाइसोजाइम: लार में उपस्थित यह एन्जाइम भोजन के हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है।

✧ पेप्सिन: आमाशय के जठर रस में व्याप्त यह एन्जाइम भोजन के प्रोटीन को पेप्टोन में बदलता है।

✧ रेनिन: यह भी जठर रस में होता है जो दूध में घुलनशील प्रोटीन कैसीन को कैल्सियम पैराकैसीनेट में बदलकर दूध को दही में परिवर्तित कर देता है।

✧ म्यूसिन: जठर रस में उपस्थित यह एन्जाइम जठर रस के अम्लीय प्रभाव को कम करता है।

✧ ट्रिप्सिन: ग्रहणी(duodenum) में भोजन में मिलने वाले अग्नाशयी रस में उपस्थित यह एन्जाइम प्रोटीन एवं पेप्टोन को पॉली पेप्टाइडस एवं अमीनों अम्ल में बदल देता है।

✧ एमाइलेज: यह भी अग्नशयी रस में उपस्थित  रहता है जो मांड को घुलनशील शर्करा में परिवर्तित करता है।

✧ लाइपेज: अग्नाशयी रस का यह एन्जाइम आंत में भोजन के इमल्सीफाइड वसा को ग्लिसरीन एवं फैटी एसिड्स में परिवर्तित कर देता है।

✧ इरोप्सिन, माल्टेस, सुक्रेस एवं लैक्टेस:  ये सभी एन्जाइम आन्त्र रस में उपस्थित रहते हैं जो इलियम(छोटी आंत का एक भाग) में भोजन में मिलते हैं। इरेप्सिन भोजन के प्रोटीन व पेप्टोन को अमीनों अम्ल में बदलता है जबकि माल्टेस माल्टोज शर्करा को ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है। सुक्रेस भोजन की सुक्रोज शर्करा को ग्लूकोज एवं फ्रक्टोज में बदल कर पाचन में सहायता करता है तो लैक्टेस को लैक्टोज में एवं ग्लूकोज को गैलेक्टोज में परिवर्तित कर उनका पाचन करता है। यहां  आन्त्ररस में उपस्थित लाइपेज एन्जाइम इमल्सीफाइड वसाओं को ग्लिसरीन एवं फैटी एसिड्स में बदल देता है।

श्वसन तंत्र (Respiratory System)

❖ श्वसन(Respiration)

✧ श्वसन सजीवों में होने वाली एक महत्त्वपूर्ण क्रिया है।

✧ जीवों में कोशिकीय(Cellular) स्तर पर ऑक्सीजन की उपस्थिति में भोजन के जैविक ऑक्सीकरण(Oxidation) की क्रिया श्वसन कहलाती है, जिसके फलस्वरूप ऊर्जा की प्राप्ति होती है और शरीर में जैविक क्रियाओं के संचालन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

✧ श्वसन की प्रक्रिया में ऊर्जा का रासायनिक रूप ATP(एडिनोसिन ट्राइफास्फेट) के रूप में संग्रहित कर लिया जाता है।

❖ जीवों में श्वसन अंग(Respiratory Organs in various Organism)

जीव — श्वसन अंग

मनुष्य — फेफड़े

मछलियां — गिल्स/ गलफड़े

केंचुआ — त्वचा

तिलचट्टे — वातिकाएं/ ट्रैकिया

मेंढ़क — त्वचा व फेफड़ो

सरीसृप — फेफड़ो

पक्षी — फेफड़ो

स्तनधारी — फेफड़ो

❖ मानव श्वसन तंत्र(Human Respiration System)

✧ मनुष्य का श्वसन तंत्र कई अंगों(नाक, नासागुहा, ग्रसनी, स्वरतंत्र, श्वासनली, श्वसनिकां, फेफड़ा, डायाफ्राम) का सम्मिलित रूप है, इनके माध्यम से ही शरीर में वायु का आदान—प्रदान होता है। इस अंगों में सबसे महत्वपूर्ण अंग फेफड़ा(Lungs) होता है।

❖ फेफड़े या फुफ्फुस(Lungs)

✧  मनुष्य में फेफड़े कूपिकीय(alveoral) प्रकार के होते हैं, जिसमें करोड़ों कूपिकाऐं(Alveoli) पाई जाती हैं। इन कूपिकाओं के कारण गैंसो के आदान—प्रदान हेतु एक विस्तृत सतह उपलब्ध हो जाती है।

✧ एक स्वस्थ मनुष्य द्वारा 14—18 बार प्रति मिनट श्वसन क्रिया की जाती है, जिसमें भोजन के ऑक्सीकरण (Oxidation) हेतु O2 का अंतग्रहण एवं का CO2 निष्कासन होता है।

परिसंचरण तंत्र(Circulatory System) 

✧ मानव एवं अन्य प्राणियों के शरीर में विभिन्न पोषक पदार्थों, गैंसों, एवं उत्सर्जी पदार्थों के परिवहन हेतु एवं सुविकसित अंग समूह पाया जाता है जिसे परिसंचरण तंत्र(Circulatory System)  कहते है।

❖ परिसंचरण तंत्र के प्रकार (Types of Circulatory System)

✧ खुला परिसंचरण तंत्र

उदाहरण — झींगा, कीट आदि।

✧ बन्द परिसंचरण तंत्र

उदाहरण — स्तनधारी, मेंढ़क, पक्षी आदि।

✧ पादपों में परिसंचरण तंत्र

— पादपों में परिवहन संवहनी ऊतक द्वारा होता है।

— ये दो प्रकार के होते है—

जाइलम(Xylem): जल व खनिज लवणों का परिवहन

फ्लोएम(Phloem): खाद्य पदार्थो का परिवहन।

❖ मानव परिसंचरण तंत्र (Human Circulatory System) 

✧ मानव शरीर में रूधिर परिसंचरण तंत्र की खोज ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हार्वे (William Harvey) ने वर्ष 1628 में की थी।

✧ मानव शरीर में बद एवं दोहरा परिसंचरण होता है।

❖ रूधिर (Blood)

✧ रूधिर एक विशेष प्रकार का तरल संयोजी ऊतक है, जिसमें द्रव्य आधात्री प्लाज्मा तथा अन्य संगठित संरचना पाई जाती है।

✧ रूधिर लाल रंग का होता है, जिसका लाल रंग उसमें उपस्थित हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन के कारण होता है, जिसमें लौह तत्व पाया जाता है।

✧ रूधिर की pH का मान 7.3 — 7.4 होता हैं।

✧ एक स्वस्थ मनुष्य के शरीर में लगभग 5 — 6 लीटर रक्त पाया जाता है।

रूधिर के घटक(Components of Blood) :—

RBC :— 

अन्य नाम — इरिथ्रोसाइट

कार्य —O2 व CO2 का परिवहन

केन्द्रक — अनुपस्थित

जीवन काल — 120

संख्या — 4—5 मिलियन/ मिमी3

आकृति — ‘Biconcavedisc’ या ‘Kidney’ की आकृति

WBC :—

अन्य नाम — ल्यूकोसाइट

कार्य — प्रतिरक्षा

केन्द्रक — उपस्थित

जीवन काल — 10—15 दिन 8000—11000/ मिमी3

आकृति — अनिश्चित या ‘Round’ आकृति

प्लेटलेटस :—

अन्य नाम — थ्रोम्बोसाइट

कार्य — रूधिर का थक्का जमाने में सहायक हैं।

केन्द्रक — अनुपस्थित

जीवन काल — 5—10 दिन

संख्या — WBC से ज्यादा परन्तु RBC से कम

आकृति — अनिश्चित आकृति

नोट :— WBC का जीवनकाल 4—5 दिन(RBSE पाठयपुस्तक के अनुसार) और 10—15 दिन(विगत वर्षो में आये प्रश्नों के अनुसार)

नोट :— RBC का कब्रिस्तान या शरीर का रक्त भण्डारण अंग — प्लीहा (Spleen)  

❖ रूधिर वर्ग (Blood Group)

✧ खोज—कार्ल लैन्डस्टीनर, 1901 (Karl Landsteiner)

✧ रूधिर वर्ग का वर्गीकरण एंटीजन (Antigen) व एंटीबॉडी (Antibody) के आधार पर किया गया है।

रक्त समूह(Blood Group) — एंटीजन(Antigen) — एंटीबॉडी(Antibody)

A   — A   —  b

B   — B   —  a

AB  — A और B — अनुपस्थित

O   — अनुपस्थित  — a और b

रक्त समूह — किससे दे सकते है। — किससे ले सकते है।

A   —    A व AB को   —   A व O से

B   —    B व AB को    —   B व O से

AB  —    केवल AB को   —    सभी से

O   —     सभी को     —    केवल O से

✧ AB तथा AB+ रक्त समूह सर्वग्राही (Universal Receptor) होता है।

✧ O तथा O —  रक्त समूह सर्वदाता (Universal donor) होता है।

RH कारक (RH Factor)

✧ RH कारक की खोज मकाका रीसस नामक बंदर में कार्ल लैन्डस्टीनर व वीनर ने की।

❖ रक्त वाहिकां (Blood Vessels)

✧ धमनियां(Arteries) : ऐसी रूधिर वाहिनियां जो हदय के शुद्ध रूधिर को शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती हैं, उन्हें धमनियां कहा जाता है। पल्मोनरी धमनी के अतिरिक्त शेष सभी धमनियों में शुद्ध ऑक्सीजन युक्त रूधिर पाया जाता है।

✧ शिराएं(Veins) : ऐसी रूधिर वाहिनियां जो शरीर के विभिन्न अंगों से अशुद्ध रूधिर को ह्दय तक ले जाती है, उन्हे शिराएं कहा जाता है। पल्मोनरी शिरा के अतिरिक्त शेष सभी शिराओं में अशुद्ध रक्त (ऑक्सीजन रहित) पाया जाता है।

✧ कोशिकाएं (Capillaries) : ये धमनियों को शिराओं से जोड़ती हैं।

❖ मानव ह्दय

✧ मानव ह्दय पेशीय (Muscular) अंग है यह परिसंचरण तंत्र का केन्द्रीय पम्पिंग अंग है, जो रूधिर वाहिनियों के माध्यम से रक्त को शरीर के सभी अंगों तक पहुंचाता है।

✧ यह वक्षगुहा में कुछ बांयी ओर दोनों फेफड़ों के मध्य में स्थित रहता है।

✧ मानव ह्दय में चार कक्ष होते है। दो आलिन्द व दो निलय।

✧ ह्दय में SA Node पाया जाता है जिसे हदय का पैसमेकर कहते हैं।

✧ एक स्वस्थ व्यक्ति का हदय एक मिनट में 72 बार धड़कता है।

✧ ह्दय धड़कन को सुनने के लिए ‘स्टेथेस्कोप'(Stethoscope) का उपयोग करते हैं।

✧ ह्दय की ध्वनि(Heart Sound) दो प्रकार की होती है—

1. प्रथम ध्वनि — लम्ब(Lubb)

2. द्वितीय ध्वनि (Dubb)

❖ ह्दय का स्पन्दन(Heart beat)

✧ हदय के क्रमिक या नियमित संकुचन को ह्दय स्पन्दन कहते है।

✧ मनुष्य में ह्दय सामान्यत: 72 बार प्रति मिनट स्पन्दन करता है जिसमें लगभग 5 लीटर रूधिर का स्पन्दन होता है।

❖ रूधिरदाब या रक्तचाप(Blood Pressure)

✧ रूधिर वाहिकाओं की भित्ति के विरूद्ध जो दाब लगता है उसे रक्तदाब कहते हैं।

सामान्यत रक्तचाप = प्रकुंचन दाब(Systole) / अनुशिथिलन दाब(diastole)

120mm hg / 80mm hg

रक्तदाब मापी = स्फाईग्मोमैनोमीटर

✧ उच्च रक्त दाब को अतितनाव(Hypertension) भी कहते है।

❖ जीवों में परिसंचरण तंत्र (Circulatory System in Various Organisms)

वर्ग — ह्दय

मत्स्य — द्विकक्षीय हदय तथा एक तंत्रीय परिसंचरण

उभयचर — त्रिकक्षीय हदय तथा द्वितंत्रीय परिसंचरण

रेप्टाइल — अपूर्ण 4 कक्षीय हदय तथा द्वितंत्रीय परिसंचरण(अपवाद — पूर्ण 4 कक्षीय हदय — मगरमच्छ व घड़ियाल में)

एवीज — पूर्ण 4 कक्षीय हदय तथा द्वितंत्रीय परिसंचरण

मैमलस — पूर्ण 4 कक्षीय हदय तथा द्वितंत्रीय परिसंचरण

उत्सर्जन तंत्र (Excretory System)

❖ परिचय(Introduction) 

✧ भोजन(Food) के उपापचय के फलस्वरूप ऊर्जा(Energy) एवं कुछ हानिकारक पदार्थों(Harmful substances) का निर्माण होता है, इन हानिकारक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना उत्सर्जन(Excretion) कहलाता है।

✧ भोज्य पदार्थों में नाइट्रोजन होने के कारण यूरिया, यूरिक अम्ल व अमोनिया का निर्माण होता है।

❖ उत्सर्जी पदार्थों के आधार पर जन्तुओं के प्रकार :—

✧ अमोनिया उत्सर्जन(Ammonotelic) : अमोनिया का उत्सर्जन करने वाले जीव ‘अमोनोटेलिक’ कहलाते हैं। उदाहरण — मछलियां, प्रोटोजोआ, केकड़ा आदि।

✧ यूरिया उत्सर्जन(Ureotelic) : यूरिया का उत्सर्जन करने वाले जीव ‘यूरिओटेलिक’ कहलाते है। उदाहरण — उभयचर(मेढ़क) व स्तनधारी जीव(मनुष्य)।

✧ यूरिक अम्ल उत्सर्जन(Uricotelic) : यूरिक अम्ल का उत्सर्जन करने वाले जीव ‘यूरिकोटेलिक’ कहलाते हैं। उदाहरण — पक्षी, सरीसृप, कीट—पतंगे आदि।

❖ अकशेरूकियों में उत्सर्जन(Excretion in Non Vertebrates) 

 जन्तु  —  उत्सर्जी अंग

✧ एक कोशिकीय जन्तु — कोशिका झिल्ली(Cell Membrane)

✧ स्पंज व सीलेन्ट्रेटा — अधिचर्म (Epidermis)

✧ प्लैटिहैल्मिन्थीज — ज्वाला कोशिकाएं(Flame Cells)

✧ ऐनेलिड — नैफ्रिडिया(Nephridia)

✧ कीट — मैलपीजी नलिकाएं(Malpighian tubules)

✧ मोलस्का — मेटानैफ्रिडिया(Metanephridia)

✧ इकाईनोर्डम — उत्सर्जी अंग अनुपस्थित(Absent)

❖ कशेरूकियों में उत्सर्जन(Excretion in Vertebrates)

 जन्तु — उत्सर्जी अंग

✧ स्तनधारी — त्वचा(Skin)

         — फेफड़े(Lungs)

         — यकृत(Liver)

         — आहारनाल(Alimentary canal) 

         — वृक्क(Kidney

✧ मछलियां — वृक्क(Kidney)

 जन्तु — उत्सर्जी अंग

✧ पक्षी — वृक्क(Kidney)

✧ अधिकांश कशेरूकी जन्तु — वृक्क(Kidney)

❖ मानव में उत्सर्जन —

✧ त्वचा — इसके द्वारा जल, लवण व CO2 का उत्सर्जन किया जाता है।

✧ फेफड़ें — CO2 का उत्सर्जन

✧ यकृत — पित वर्णकों(Bile Pigments) को बाहर निकालता है।

✧ आहारनाल — अपचित भोजन का उत्सर्जन

✧ वृक्क — जल, नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थ व लवण पदार्थ आदि का मूत्र के साथ उत्सर्जन।

❖ मनुष्य में उत्सर्जी तंत्र(Excretory System in Human)

✧ मनुष्य में मुख्य उत्सर्जी अंग के रूप में एक जोड़ी वृक्क(Kidney) एवं मूत्र नलिका(Ureters), मूत्राशय(Urinary Bladder) तथा मूत्र मार्ग(Urethra) होते हैं।

✧ वृक्क की सबसे छोटी इकाई नेफ्रोन होती है।

✧ मनुष्य के प्रत्येक वृक्क में लगभग 10—12 लाख नेफ्रोन पाये जाते हैं।

✧ नेफ्रोन में ही मूत्र का निर्माण होता है।

❖ रूधिर अपोहन(Haemodialysis)

✧ जब मनुष्य के वृक्क के ठीक तरह से कार्य नहीं कर पाते है, ऐसी स्थिति में व्यक्ति के रूधिर में यूरिया की मात्रा बढ़ जाती है। इस अवस्था को यूरेमिया(Uremia) कहते हैं।

✧ यूरेमिया की अवस्था में यूरिया को रूधिर में बाहर निकालने के लिए कृत्रिम मशीनीय वृक्क द्वारा रूधिर के शुद्धिकरण की क्रिया को रूधिर अपोहन कहते हैं।

❖ गॉउट(Gout) — इस रोग में रक्त में यूरिक अम्ल की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे जोड़ों में दर्द की समस्या(मुख्यत: घुटनों में) उत्पन्न होती है।

कंकाल तंत्र 

✧ ओस्टियोलॉजी(Osteology) — विज्ञान की वह शाखा, जो कंकाल प्रणाली के अध्ययन, उनकी संरचना और कार्यों से संबंधित होती है।

❖ कंकाल तंत्र के प्रकार(Types of Skeleton System) :—

✧ बाह्य कंकाल(Exo-Skeleton) : बाह्य कंकाल का मुख्य कार्य आंतरिक अंगों की रक्षा करना है तथा यह मृत होता है। उदाहरण — कीट, मोलस्क, पाइला आदि।

✧ अन्त: कंकाल(Endo-skeleton) : अंत कंकाल जन्तुओं के शरीर के भीतर स्थित होता है यह आंतरिक अंगों को सुरक्षा एवं सहारा प्रदान करने के साथ—साथ सम्पूर्ण शरी को एक निश्चित आकार एवं आकृति प्रदान करता है तथा इनमें जीवित ऊतक पाए जाते है।

उदाहरण :— मानव में अस्थि।

❖ कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दु(Some Important Point)

✧ मानव शरीर में कुल हड्डियां — 206

✧ शरीर की सबसे लम्बी अस्थि — फीमर(Femur)(जांघ की)

✧ शरीर की सबसे छोटी हड्डी — स्टेपीज(Stapes)(कान की)

✧ मानव शरीर का सबसे कठोर भाग दांत का इनेमल होता है।

✧ लिगामेण्ट(Ligament) अस्थि को अस्थि से जोड़ता है।

✧ टेण्डन(Tendon) अस्थि को पेशी से जोड़ता है।

तंत्रिका तंत्र (Nervous System) –

❖ मानव शरीर का वह तंत्र जो सोचने, समझने तथा किसी वस्तु को याद रखने के साथ ही शरीर के विभिन्न अंगों के कार्यों में सामंजस्य तथा संतुलन स्थापित करने का कार्य करता  है, तंत्रिका तंत्र कहलाता है।

❖ तंत्रिका तंत्र के विभिन्न अंग

❒ तंत्रिका(Nerves)

❒ मस्तिष्क(Brain)

❒ मेरूरज्जू(Spinal Cord)

❒ तंत्रिका कोशिका(Neuron)

❖ मानव तंत्रिका तंत्र का वर्गीकरण

❒ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र(Central Nervous System): मानव शरीर में केंद्रीय तंत्रिका तंत्र शरीर की सभी क्रियाओं के लिए सूचनाओं एवं निर्देशों को प्रेरित करता है। इसी कारण , इसे शरीर की केन्द्रीय प्रसंस्करण इकाई(Central Processing Unit – CPU) कहा जाता है।

• केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के प्रमुख अंग—

1. मस्तिष्क(Brain)

2. मेरूरज्जू(Spinal Cord)

1. मस्तिष्क(Brain)

• मस्तिष्क शरीर एवं तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण एवं निर्देश केन्द्र(Control and Command Centre) है।

• मस्तिष्क अस्थ्यिों के खोल क्रेनियम(Cranium) में बंद रहता है। क्रेनियम मस्तिष्क की बाहरी आघातों से रक्षा करता है।

❖ मस्तिष्क के कुछ प्रमुख भाग व उनके कार्य

❒ प्रमस्तिष्क(Cerebrum) — ऐच्छिक पेशियों पर नियंत्रण, दृश्य संवेदना, सर्दी, गर्मी, स्पर्श व पीड़ा के प्रति अनुक्रियाओं को प्रेरित करता है।

❒ डाइएनसिफेलॉन(Diencephalon) — नींद, जनन क्रियाओं एवं उपापचयी क्रियाओं पर नियंत्रण।

❒ हाइपाथैलेमस(Hypothalamus) — भूख, प्यास, ताप नियंत्रण एवं वसा तथा कार्बोहाइड्रेट उपापचय पर नियंत्रण।

❒ मध्यमस्तिष्क का कार्पोरा क्वाड्रिजेमिना(Corpora quadrigemina) — दृष्टि ज्ञान।

❒ अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम(Cerebellum) — कंकाल पेशियों के संकुचन एवं शिथिलन(Relaxation) का नियमन तथा शरीरिक संतुलन एवं साम्यावस्था रखता है।

❒ मेडुला आब्लांगेटा(Medulla Oblongata) — शरीर की अनैच्छिक क्रियाओं का केन्द्र, हदय की धड़कन(Heart Beat), रक्त दाब(Blood Pressure), उपापचयी क्रियाओं(Metabolism) एवं आहारनाल की क्रमाकुंचन गति(Peristaltic Movement) का नियंत्रण।

2. मेरूरज्जू(Spinal Cord)

• यह मेडुला ऑब्लांगेटा के महारन्ध्र(Foramen Magnum) से निकलती  है।

• यह मस्तिष्क से आने एवं जाने वाले उछीपनों का संवहन करती है।

❒ परिधीय तंत्रिका तंत्र(Peripheral Nervous System)

• केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र को शरीर के विभिन्न संवेदी एवं क्रियात्मक भागों से जोड़ने वाला धागेनुमा तंत्रिका तंत्र है, जो मस्तिष्क व मेरूरज्जू से निकलने वाली क्रियाओं से बना होती है।

इसमें निम्न तंत्रिकाएं आती हैं—

• कपालीय तंत्रिकाएं(Cranial Nerves) — 12 जोड़ी

• मेरू तंत्रिकाएं(Spinal Nerves) — 31 जोड़ी

❒ स्वायत्त तंत्रिका तन्त्र(Autonomic Nervous System): इस तंत्र की तंत्रिकाएं उन अंगो के कार्यों पर नियंत्रण करती हैं, जो हमारी इच्छा के अधीन कार्य नहीं करते हैं। उदाहरण — श्वसन, ह्वदय की धड़कन, पाचन क्रिया।

❖ तंत्रिका कोशिका(neuron)

❒ तंत्रिका तंत्र की रचनात्मक व कार्यात्मक इकाई तंत्रिका कोशिका अर्थात न्यूरॉन(Neuron) होती है।

❒ मानव शरीर में तंत्रिका कोशिकाओं की संख्या लगभग 10 अरब होती है।

❒ इनकी अधिकांश संख्या मस्तिष्क में पायी जाती है।

❒ तंत्रिका कोशिकाएं रचना और कार्यिकी में शरीर की सबसे जटिल कोशिकाएं होती हैं।

❒ जन्तुओं में सबसे लम्बी कोशिका तंत्रिका कोशिका होती है।

❖ तंत्रिका कोशिका(Neuron) के तीन भाग होते हैं—

❒ कोशिकाय(cell Body)

❒ द्रुमिका(Dendrites)

❒ तंत्रिकाक्ष(Axon)

अंत: स्त्रावी तंत्र (Endocrine System)

❒ शरीर में विशेष प्रकार की ग्रंथियां पायी जाती है, जो विभिन्न हार्मोन, पसीना, एंजाइम आदि का स्त्राव करती हैं। ये ग्रंथियां निम्न है—

ग्रन्थियां(Glands) :— 

अन्त: स्त्रावी ग्रंथि(Endocrine gland)(पीयूष ग्रंथि पैराथाइरॉइड ग्रंथि थायरॉइड ग्रंथि)

बहि: स्त्रावी ग्रंथि(Exocrine gland)(लार ग्रंथियां संवेदी ग्रंथि यकृत)

मिश्रित ग्रंथि(Mixed gland)(अग्नाश्य)

❖ अन्त: स्त्रावी ग्रंथियां — हार्मोनों का स्त्राव शरीर में स्थित विशिष्ट कोशिकाओं अथवा ग्रंथियों द्वारा होता है, उन्हें अंत: स्त्रावी ग्रंथियां कहा जाता है।

❒ अन्त: स्त्रावी ग्रंथियां अपने स्त्राव को सीधे रूधिर में मुक्त करती है। नलिका विहीन होने के कारण इन्हें नलिका विहीन(Ductless) ग्रंथियां कहते हैं।

— मनुष्य में अंत: स्त्रावी ग्रंथियां एवं उनके कार्य(Endocrine Glands in Human and Their Function)

❖ हाइपोथैलिमस(Hypothalamus) — इसे सर्वोच्च कमाण्डर(Supreme Commander), अथवा प्रधान ग्रन्थि का भी नियंत्रक(Master of Master) कहा जाता है। इसके द्वारा निम्न प्रकार के हार्मोनों का स्त्रावण किया जाता है—

1. हार्मोन — मोचक हॉर्मोन

2. हॉर्मोन — निरोधी हॉर्मोन

❖ पीयूष ग्रंथि(Pituitary Gland) — पीयूष ग्रंथि जिसे पीयूषिका(हाइपोफिसिस) या मास्टर ग्रंथि(Master Gland) भी कहते हैं। ये मानव शरीर की सबसे छोटी(मटर के दाने के समान) ग्रंथि होती है।

❒ पीयूष ग्रंथि से स्त्रावित होने वाले कुछ प्रमुख हॉर्मोन्स

— वैसोप्रेसिन — इसके अल्प स्त्रावण से डायबिटिज इन्सिपिड्स नामक या न्यूरोहाइपोफिसिस बीमारी होती है। इसलिए यह एंटीडाइयूरेटिक हॉर्मोन भी है।

— ऑक्सीटोसीन — यह स्तनधारियों में दुग्ध स्त्राव को उत्तेजित करता है।

❖ पिनियल ग्रंथि(Pineal Gland)

❒ स्त्रावित हार्मोन—मेलेटोनिन(Melatonin)

❒ मेलेटोनिन हमारे शरीर की दैनिक लय(24 घंटे) के नियमन का कार्य करता है इसलिए इसे जैविक घड़ी(Biological Clock) कहा जाता है। 

❒ मेलेटोनिन हार्मोन का तेज प्रकाश में स्त्राव कम तथा मंद प्रकाश या अंधकार में स्त्राव अधिक होता है।

❒ इस ग्रंथि को मानव की तीसरी आंख भी कहा जाता है।

❖ थाइमस ग्रंथि (Thymus Gland)

❒ थाइमस ग्रंथि प्रतिरक्षा तंत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

❒ स्त्रावित हार्मोन — थाइमोसिन(पेप्टाइड हार्मोन)

❒ यह हार्मोन T — लिम्फोसाइट्स के परिपक्वन से संबंधित होते हैं।

❒ बढ़ती उम्र के साथ थाइमस का अपघटन होने लगता है, फलस्वरूप थाइमोसिन का उत्पादन घट जाता है। इसी के परिणामस्वरूप वृद्धों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कमजोर पड़ जाती है।

❖ थायरॉइड ग्रंथि (thyroid Gland)

❒ अन्य नाम — अवटु ग्रंथि

❒ स्त्रावित हार्मोन — थायरॉक्सिन और कैल्सिटोनिन।

❒ थाइरॉक्सिन(Thyroxin) के संश्लेषण के लिए आयोडीन आवश्यक होता है। यह ह्वदय स्पंदन तथा श्वसन दर को बढ़ाता है एवं शरीर के उपापचय को नियंत्रित करता है।

— मेढ़के के टेडपोल के वयस्क में कायान्तरित करने में थायरॉक्सिन की आवश्यक भूमिका होती है।

❒ कैल्सिटोनिन(Calcitonin) — यह हार्मोन रूधिर के कैल्सियन और फॉस्फेट के स्तरों पर नियमन करता है। यदि रूधिर में कैल्सियम का स्तर अधिक है तो अधिक मात्रा में कैल्सिटोनिन का स्त्राव किया जाता है और तब कैल्सियम रूधिर में से निकलकर अस्थियों में चला जाता है और उन्हें अपेक्षाकृत कठोर बना देता है।

❖ पैराथॉयरॉयड(Perathyroid)

❒ अन्य नाम — परावटु

❒ ये दो जोड़ी छोटी—छोटी ग्रंथियां होती हैं जो थायरॉइड ग्रंथि में पूर्णत: अथवा अंशत: अंत: स्थापित होती है।

❒ स्त्रावित हार्मोन — पैराथोर्मोन

❒ ये हार्मोन अस्थियों में से कैल्सियम के मोचन को उछीपित करके रूधिर में कैल्सियम के स्तर को बढ़ा देता है।

❖ अग्न्याशय(Pancreas)

❒ इसमें कोशिकाओं के विशिष्ट समूह होते हैं, जिन्हें लैंगरहेन्स के द्वीप(Islets of langerhans) कहते हैं, जिसमें तीन प्रकार की कोशिकाएं होती है—

लैंगरहेन्स की द्वीप कोशिकाएं

ऐल्फा कोशिकाएं द्वारा ग्लूकैगॉन

बीटा कोशिकाएं द्वारा इंसुलिन

गामा कोशिकाएं द्वारा सोमैटोस्टेटिन

❒ इन्सुलिन — यह शरीर की कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोज के उपयोग को बढ़ावा देता है।

❒ डायबीटीज मेलिटस(मधुमेह) — इन्सुलिन के स्त्रावित न होने पर अथवा अल्प स्त्रावित होने पर डायबीटीज मेलिटस नामक रोग हो जाता है।

❖ अधिवृक्क(ऐड्रीनल) ग्रंथियां(Adrenal gland)

❒ ऐड्रिनल एक जोड़ी ग्रंथियां होती हैं, जो प्रत्येक वृक्क के ऊपर टोपियों के रूप में स्थित होती है।

एंड्रीनल ग्रंथि के भाग तथा उनसे स्त्रावित हार्मोन

परिधीय — मिनरैलोकॉर्टिकॉयड्स — ऐलडोस्टेरोन हार्मोन

भाग — ग्लकोकॉर्टिकॉयड्स — कॉर्टिसोल एवं कॉर्टिसोन हॉर्मोन

    — लिंग हॉर्मोन्स — एन्ड्रोजन, एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टरोन का स्त्रावण

केन्द्रीय एड्रीनलिन — संकटकालीन

भाग — नॉर—एड्रीनलिन — परिस्थितियों में स्त्रावित 

❒ ऐड्रीनल मैड्यूला के हॉर्मोन् विपत्ति तथा संकट काल का सामना करने हेतु व्यक्ति में तीन प्रकार की अनुक्रिया उत्पन्न कर सकते हैं— भय(Fear), संघर्ष(Fight) तथा पलायन(Flight) अत: ऐड्रीनल मैड्यूला को ‘3F’ ग्रंथि भी कहा जाता है।

❒ ऐड्रीनल ग्रंथि विपत्ति प्रतिक्रिया(Stress), शर्करा(Sugar), लवण(Salt) व लैंगिक विकास संबंधी क्रियाओं(Process related to Sexual development) का नियंत्रण करती है। अत: यह ग्रंथि ‘4S’ ग्रंथि कहलाती है।

❖ वृषण (Testis)

❒ वृषण की लेइडिग कोशिकाएं(Leydig cells) या अंतराली कोशिकाएं(Interstitial Cells) एंड्रोजन(एंड्रोस्टेरॉन तथा टेस्टोस्टेरॉन) नामक प्रमुख हार्मोन का स्त्राव करती है।

❖ अंडाशय (Ovary)

❒ यह स्त्रियों में पाई जाती है तथा दो प्रकार के हार्मोन उत्पन्न करती है—

एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टरॉन

❖ अपरा(Placenta)

❒ अपरा एक संयोजन अथवा सेतु होता है जो कि आंशिक रूप से मातृक(Maternal) तथा आंशिक रूप से भ्रूणीय(Embryonic) ऊतकों द्वारा बना होता है।

मानव अपरा के हॉर्मोन(Hormones of Human Placentra) :—

1. स्टेरॉइड हॉर्मोन(Steroid Hormone)

a. एस्ट्रैडाइऑल(Estradiol)

b. प्रोजेस्टेरॉन(Progesterone)

2. प्रोटीन हॉर्मोन(Protein Hormone)

a. मानव कोरिऑनिक गोनैडोट्रोपिन(Human Chorionic Gonadotropin-HCG)

b. मानव अपरा सोमैटोमैमोट्रोपिन(Human Placental Somatomammotropin-HCS)

❖ अमाशय द्वारा स्त्रावित होने वाला हार्मोन — ग्रैस्ट्रिन

❖ छोटी आंत से स्त्रावित होने वाले हॉर्मोन

1. सेक्रेटिन(Secretin) — सेक्रेटिन का स्त्राव ग्रहणी(Duodenum) के अस्तर द्वारा होता है। यह अग्न्याशय के उत्पादन को उछीपित करता है।

2.कॉलेसिस्टोकाइनिन(Cholecystokinin) — ये पित्ताशय से पित्त के निर्मोचन को उछीपित करता है।

❖ ह्वदय — ह्वदय की आलिंद भित्ति द्वारा एक पेण्टाईड हार्मोन का एट्रियल नेट्रियुरेटिक कारक(ANF) का स्त्राव होता है, जो रक्त दाब को नियंत्रित करता है।

❖ फेरोमोन(Pheromone) — सामाजिक स्तर पर रासायनिक दूत — फेरोमोन एक व्यष्टि द्वारा पर्यावरण में छोड़े जाने वाले वे स्त्राव होते हैं जो उसी स्पीशीज के अन्य सदस्यों में एक विशिष्ट प्रकार की अनुक्रिया पैदा कर देते हैं।

जनन तंत्र (Reproductive System)

❒ जनन सभी जीवधारियों में पाए जाने वाली अति महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें एक जीव अपने जैसी संतान उत्पन्न करता है जिससे जीव अपने वंश एवं प्रजाति की निरंतरता बनाए रखता है।

❖ जनन की विधियां(Methods of Reproduction)

❒ अलैंगिक जनन(Asexual Reproduction) — जब संतति की उत्पत्ति नर एवं मादा युग्मकों के संयोग के बिना होती है तो उसे अलैंगिक जनन कहा जाता है।

❒ अलैंगिक जनन मुख्यत: एक कोशिकीय जीवों तथा निम्नस्तरीय पादपों तथा जन्तुओं में पाया जाता है।

❖ लैंगिक जनन(Sexual Reproduction) — नर युग्मक एवं मादा युग्मक के संलयन द्वारा जनन को लैंगिक जनन कहते हैं। उदाहरण:— उच्च स्तरीय जन्तु एवं पादप।

❖ पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन(Sexual Reproduction in Flowering Plants) — आवृतबीजी(एंजियोस्पर्म) के जननांग पुष्प में अवस्थित होते हैं तथा पुष्प के विभिन्न भाग— बाह्यदल, दल, पुंकेसर(नर जनन अंग) तथा स्त्रीकेसर(मादा जनन अंग) पुष्प के जनन भाग हैं।

❖ मानव में लैंगिक जनन(Sexual Reproduction on Human) — मानव एक स्तनधारी(Mammal) , एवं एकलिंगी(Unisexual) प्राणी है। इनमें नर(पुरूष) एवं मादा(स्त्री) का स्पष्ट विभाजन होता है और मादा गर्भ में विकसित शिशु को जन्म देती है।

❖ महत्वपूर्ण तथ्य :

❒ अण्डज(Oviparous) — अण्डज प्रकार के जीवों में जीव शरीर के बाहर अंडे देकर संतान उत्पन्न करते है।

❒ जरायुज(Viviparous) — जरायुज प्रकार के जीवों के भ्रुण का विकास मां के शरीर के अन्दर होता है तथा मादा जीवित संतान को जन्म देती है।

❒ अण्ड—जययुज(Ovo-Viviparous) — इस प्रकार के जीव अंडे तो उत्पन्न करते है, परन्तु अण्डे मां के शरीर के अंदर विकसित होते है तथा मादा जीवित संतान को जन्म देती है।

❒ विखण्डनशील(Fissiparous) — विखण्डन विधि द्वारा संतान उत्पन्न करने वाले जैसे — अमीबा।

❒ फीनोटाइप(Phenotype) — किसी व्यक्ति की दिखाई देने वाली आकरिकी।

❒ जीनोटाइप(Genotype) — किसी व्यक्ति का पूर्ण जीनीय संगठन।

❒ जीनGene) — यह शब्द जोहॉनसन(Johanson) ने वर्ष 1909 में दिया था। जिसके अनुसार ‘किसी भी लखण विशेष की आनुवांशिकी को निर्धारित करने वाली इकाई को जीन कहते हैं।’

❒ एक्स किरण — खोज कर्ता  डब्ल्यू.के. रोन्टजन। एक्स किरणों द्वारा शरीर के आन्तरिक अस्थियों के चित्र खींचे जाते हैं।

❒ सी.टी.स्केन — इसका आविष्कार जैफरी हाउन्डस फील्ड ने किया था। इसके द्वारा अंग के बहुआयामी चित्र एक्सरे फिल्म पर बनाये जाते है। इस उपकरण में विद्युत चुम्बकीय किरणों का प्रयोग किया जाता है।

❒अल्ट्रासोनोग्राफी — इस उपकरण में पराश्रव्यी तरंगों(Ultrasonic Waves) का उपयोग किया जाता है। इस उपकरण का उपयोग शरीर में गांठें, सूजन, रोग एवं शिशु लिंग का पता लगाने के लिए किया जाता है।

❒ लेसर(LASER) — इसका पूरा नाम ‘लाईस एम्प्लीफिकेशन बाई स्टीम्यूलेटेड इमीशन ऑफ रेडियेशन’ है। इसकी खोज थियोडोर मेमेन ने की थी। लेसर का उपयोग — कैन्सर, धमनियों में रक्त थक्का अवरोध हटाने, नेत्र दृष्टि सुधार में, पथरी रोग निवारण में, मोतियाबिन्द उपचार में, त्वचा के दाग धब्बों को दूर करने में किया जाता है।

❒ इलेक्ट्रोकॉर्डियोग्राफी(ECG) — यह उपकरण ह्वदय चक्र के पेशीय विद्युत परिवर्तनों को रिकॉर्ड करता है। इससे ह्वदय की पेशियों में क्षति का ज्ञान हो जाता है।

❒ स्टेथेस्कोप — इससे ह्वदय धड़कन को सुना जाता है। 

❒ स्फरमोमेनोमीटर — इससे रक्त चाप को मापा जाता है।

❒ ऑटोक्लेव — उपचार में काम आने वाले उपकरणों को इसमें रख कर रोगाणु रहित बनाया जाता है।

❒ परखनली शिशु — इस तकनीक में अण्डाणु एवं शुक्राणु को कृत्रिम माध्यम(परख नली) में रखकर  निषेचित कराया जाता है। परिवर्धन प्रक्रिया में भ्रूण जब 32 कोशिकाओं का बन जाता है, तब इसे स्त्री के गर्भाशय में स्थापित कर देते हैं। उत्पन्न होने वाली सन्तान परखनली शिशु कहलाती है।

क्लोन निर्माण

जीव — क्लोन का नाम — वर्ष

मेंढ़क — — 1951

भेड़ — डॉली — 1996

रिसस बंदर — — 2000

बिल्ली — कापी केट — 2001

चूहा — — 2002

घोड़ा — — 2003

विश्व की प्रथम परखनली शिशु — लुइस जॉय ब्रॉउन है तथा भारत की प्रथम परखनली शिशु — दुर्गा अग्रवाल है।

❒ ट्रान्सजेनिक पादप/ जन्तु — ऐसे पादप/ जन्तु जिनके आनुवंशिकी पदार्थ में दूसरे पादपों का जीन स्थानान्तरित किया जाता है उन्हें ट्रान्सजैनिक पादप जन्तु कहते हैं।

❒ क्लोनिंग — किसी भी जन्तु के शरीर की कायिक कोशिका से उसी जन्तु के समान जन्तु के विकास की तकनीक क्लोनिंग कहलाती है। उत्पन्न सन्तति क्लोन कहलाती है।

❒ व्हेल जन्तु मछली नहीं स्तन धारी है।

❒ अजगर विषहीन होता है।

❒ कान सुनने के अलावा शरीर सन्तुलन का कार्य भी करता है।

❒ समुद्री धोड़ा एक मछली है।

❒ सबसे तेज तैरने वाला पक्षी पेंग्विन होता है।

❒ ‘पक्षियों का राजा’ बाज को कहते है।

❒ संसार में सबसे तेज दौड़ने वाला जन्तु चीता है।

❒ सबसे बड़ा पुष्प रैफ्लेक्सिसा है।

❒ सांप, सूघने के लिए नाक नहीं बल्कि जीभ का प्रयोग करता है।

❒ मूंगफली जड़ नहीं एक फल है।

❒ शलजम फल नहीं जड़ है।

❒ लहसुन फल नहीं तना है।

❒ लोंग फल नहीं पुष्प है।

❒ बोम्बेक्स मोराई को रेशम का कीट कहते हैं। इससे रेशम प्राप्त होता है।

❒ सीताफल फलों का पुंज होता है।

❒ रात्रि में घने पेड़ों के नीचे नहीं सोना चाहिए क्योंकि वृक्षों के कार्बन डाई आक्साइड छोड़ने से मृत्यु तक हो जाती है।

❒ रोम का ऊपरी भाग मृत होता है।

❒ ल्यूसीफर लक्का लाख का कीट है, इससे लाख प्राप्त होती है।

❒ सीप में मोती बनते हैं।

❒ औषधियों(Medicine) के जनक हिप्पोक्रेटस है।

❒ हीमोग्लोबिन में लाल रंग लौह युक्त पारफायरिन वर्णक के कारण होता है।

❒ मक्का व अण्डे के पीतक का पीला रंग व गाजर का लाल रंग कैरोटिनॉइड वर्णक के कारण होता है।

❒ मनुष्य के शरीर में पाये जाने वाले अवशेषी अंग — 

— नेत्र की निमेषक पटल

— कान में कर्ण पल्लव पेशियां

— एपेण्डिक्स

— पुच्छदण्ड

— अक्ल दाढ़

❒ पौधे के वायरस से संक्रमित होने पर भी पौधे का मेरिस्टम वाला भाग(शीर्षस्थ तथा एक्सिलरी) वायरस से मुक्त होता है। इसलिए पादप मेरिस्टेम(या विभज्योतक) के संवर्धन से वायरस(या विषाणु) मुक्त पादप प्राप्त किये जा सकते है।

❒ दलहनी या लेग्युमिनॉस फसलों की जड़ों में पाये जाने वाले राइजोबियम जीवाणु वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को ग्रहण करके मृदा की उर्वरता में वृद्धि करते है।

❒ रेप्टीलिया वर्ग के प्राणियों के अध्ययन को हरपेटोलॉजी कहते हैं।

❒ नियोपाइलिना(एनेलिडा व मोलस्का के मध्य की संयोजक कड़ी) विषाणु(सजीव एवं निर्जीव के मध्य की संयोजक कड़ी) पेरिपेटस(एनेलिडा एवं ऑर्थोपोड़ा के मध्य की संयोजक कड़ी)।

❒ रक्त हिम या वाटरमेलॉन हिम — रक्त हिम पहाड़ों की बर्फ की सतह पर उपस्थित लाल वर्णक की शैवाल क्लैमाइडोमोनास निवालिस के कारण होता है, जिसे ‘वॉटरमेलॉन हिम’ भी कहते हैं तथा इस शैवाल में लाल रंग का वर्णक कैरॉटिनॉइड पाया जाता है।

❒ पूर्णशक्तता(Totipotency) — संजीवों की प्रत्येक कोशिका में उस जीव के सभी लक्षणों को उत्पन्न करने की क्षमता ही पूर्णशक्तता कहलाती है।

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