पोषण

❒ पोषण

  • संतुलित भोजन वह है जिसमें सभी आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध हो तथा किसी भी पोषक की लम्बे समय तक कमी या अनुपलब्धता से भोजन असंतुलित होता है।
  • लम्बे समय तक जब भोजन में किसी एक या अधिक पोषक तत्व की कमी हो तो उसे कुपोषण (malnutrition) कहतें हैं।
  • शरीर को ऊर्जा देने का कार्य कार्बोहाइड्रेट व वसा करती है।
  • शरीर निर्माण व मरम्मत का कार्य प्रोटीन करती है।
  • उपापचयी (मेटाबोलिक) क्रियायों को पूर्ण करने में सहायता विटामिन, खनिज लवण व जल करता है।
  • विटामिन तथा खनिज लवण को संरक्षात्मक खाद्य पदार्थ कहा जाता है क्योंकि ये शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र के लिए आवश्यक होते है।

✦ पोषण के लिए आवश्यक पदार्थों को निम्न भागों में बांटा गया है-

(A) ऊर्जा उत्पादक (Energy Producers) — इनके ऑक्सीकरण से जैव क्रियाओं के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है। जैसे — कार्बोहाइड्रेट व वसा।

(B) निर्माण पदार्थ (Building Substance) — शरीर की रचना एवं मरम्मत के लिए आवश्यक पदार्थ। जैसे प्रोटीन्स।

(C) उपापचयी नियंत्रक (Metabolic Regulators) — जैव एवं उपापचय क्रियाओं का नियंत्रण करने वाले। जैसे- विटामिन, जल एवं खनिज लवण।

(D) आनुवांशिक पदार्थ (Hereditary Substances)- आनुवांशिक लक्षणों को अगली पीढ़ी में ले जाने वाले पदार्थ। जैसे- डी.एन.ए.व आर.एन.ए. (वायरस में)

✦ भोजन के अवयव —

☞ दीर्घ पोषक तत्व — 1. कार्बोहाइड्रेट, 2. प्रोटीन, 3. वसा

☞ सूक्ष्म पोषक तत्व — 4. विटामिन, 5. खनिज लवण (Ca, Na, Cl, P, Mg, S, Fe) 6. जल, 7. न्यूक्लिक अम्ल (DNA, RNA)

  • 12 वर्ष की उम्र वाले बालक का भोजन एक युवक के बराबर होता है और 14 से 18 साल की लड़की के लिये 2,800 — 3,000 कैलोरी का आहार पोषण के लिये ठीक है।
  • इसी अवस्था के बालक के पोषण के लिये 3,000 – 3,400 कैलोरी का आहार मिलना चाहिए।
  • प्रतिदिन के आहार के भिन्न भिन्न तत्वों का अनुपात यह है: प्रोटीन 100 ग्राम (41 कैलरी), वसा 100 ग्राम (930 कैलरी) और कार्बोहाइड्रेट 400 ग्राम (1640 कैलरी), कुल कैलोरी लगभग 3000।
  • जो पुरुष हल्का काम करते हैं उसको 3,000 कैलोरी वाला आहार प्रतिदिन चाहिए। जो स्त्री पुरुष के बराबर काम करती है, उसे भी उतना ही कैलोरी का आहार चाहिए।
  • जो पुरुष कठिन काम करते हैं, उनको 4,000 कैलोरी वाले आहार की आवश्यकता है।
  • किसी भोजन में 100 ग्राम से जितनी ऊर्जा मिलती है/निकलती है, उसे ‘कैलोरी मान’ कहते हैं।

(i) मानसिक कार्य/श्रम करने वाले व्यक्ति (जैसे वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर) को 3000 से 3200 कैलोरी

(ii) मशीन चलाने वालों (टर्नर, मोटर ड्राइवर, वस्त्र उद्योग के मजदूर) को-3500 कैलोरी

(iii) आंशिक मशीनीकृत शारीरिक कार्य में लगे व्यक्ति (जैसे यन्त्र बनाने वाले, कृषि मजदूर, फिटर) को 4000 कैलोरी

(iv) कठिन शारीरिक परिश्रम करने वाले (जैसे कुली, गोदी मजदूर, आदि) को 4500 से 5000 कैलोरी

(v) गर्भवती महिला को 2800 कैलोरी ऊर्जा आवश्यक होती है।

  • दूध को एक संतुलित या पूर्ण आहार माना जाता है लेकिन इसमें विटामिन-सी तथा आयरन नहीं पाये जाते , जबकि व अन्य सभी अवयव एवं तत्व पाये जाते हैं।
  • केवल दूध का लगातार सेवन करते रहने से ‘एनीमिया’ (रक्त हीनता- लोहा की कमी के कारण) रोग हो जाता है।

❒ कार्बोहाइड्रेट् (Carbohydrate) —

  • कार्बोहाइड्रेट कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से मिलकर बने होते है इनका अनुपात 1:2:1 होता है।
  • कार्बोहाइड्रेट का सूत्र (C,H₂O), होता है।
  • कार्बोहाइड्रेट्स शरीर को तीव्र गति से ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  • कार्बोहाइड्रेट्स के स्त्रोत चावल (सर्वाधिक मात्रा 80 से 85 प्रतिशत) गेहूं, मक्का, बाजरा, आलू, शकरकंद, गन्ना दूध, अंगूर, फल व शलजम आदि।
  • सबसे अधिक कार्बोहाइड्रेट्स चावल में (28 mg/100 grams), केले में (23 mg/100 grams) व आलू में (21 mg/100 grams), मटर (15.6 mg/100 grams), मक्का (74.3 mg/100 grams) होती है।
  • 1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स से 4.2 किलो कैलोरी उर्जा प्राप्त होती है।
  • कार्बोहायड्रेट मानव शरीर में ग्लूकोज के रूप में टूटता है।
  • शर्करा या ग्लूकोज को यकृत या लीवर ग्लाइकोजन में बदल देता है।
  • हमारे शरीर में ग्लूकोज का संचय ग्लाइकोजन रूप शरीर में किया जाता ग्लूकोज में किया जाता है।
  • ATP का ADP में जैव रूपांतरण मानव शरीर को अधिकतम ऊर्जा प्रदान करता है।
  • •ATP का पूरा नाम Adenosine triphosphate (ATP) होता है।
  • यकृत आवश्यकता से अधिक ग्लूकोज शर्करा को ग्लाइकोजन में बदलकर इसका संग्रह कर लेता है, इस प्रक्रिया को ग्लाइकोजेनेसिस कहते हैं।
  • रक्त में ग्लूकोज शर्करा की कमी होने पर संग्रहीत ग्लाइकोजन को वापस ग्लूकोज में बदलकर रक्त में मुक्त कर देता है, इस प्रक्रिया को ग्लाइकोजिनोलिसिस कहते है।

❒ शर्करा —

✦ मोनोसैकराइड्स शर्करा (CH₂O)x या x का मान 6 रखने पर ग्लूकोज(C₆H₁₂O₆) —

  • इसे सरल या साधारण शर्करा भी कहा जाता है। यह जल में घुलनशील होती है।
  • चीनी के सबसे सरल रूप और सबसे बुनियादी इकाइयां ( मोनोमर ) हैं जिनसे सभी कार्बोहाइड्रेट बनाए जाते हैं।
  • सीधे शब्दों में कहें तो यह कार्बोहाइड्रेट की संरचनात्मक इकाई है।
  • ये आमतौर पर रंगहीन, पानी में घुलनशील और क्रिस्टलीय कार्बनिक ठोस होते हैं।
  • उनके नाम (शर्करा) के विपरीत, केवल कुछ मोनोसेकेराइड का ही स्वाद मीठा होता है ।
  • अधिकांश मोनोसैकेराइड का सूत्र (CH₂O)x होता है (हालाँकि इस सूत्र वाले सभी अणु मोनोसैकेराइड नहीं होते हैं)। यहां x का मान 3 या 3 से अधिक होता है।
  • यह फल व शहद से प्राप्त होती है।
    ❒ मोनोसैकेराइड को उनमें मौजूद कार्बन परमाणुओं की संख्या x के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है —
    ☞ ट्रायोज़ (3), टेट्रोज़ (4), पेन्टोज़ (5), हेक्सोज़ (6), हेप्टोज़ (7), इत्यादि।
  • ट्रायोस (Triose) — ग्लिसरैल्डिहाइड (Glyceraldehyde)
  • टेट्रोस (Tetrose) — इरेथ्रोस (Erthrose)
  • पेन्टोज (Pentose) — राईबोज (Ribose)
  • हेक्सोज (Hexose) — ग्लूकोज (Glucose), फ्रक्टोज (Fructose) व ग्लेक्टीन (Galactose)

☞ Ex. ग्लूकोज (Grapes sugar blood sugar), फ्रक्टोज (Fruit or Honey sugar) व ग्लेक्टोज (Brain Sugar या मस्तिष्क शर्करा), मैनोज शर्करा इत्यादि।

  • ग्लूकोज़ (Glucose) या द्राक्ष शर्करा (द्राक्षधु) सबसे सरल कार्बोहाइड्रेट है। यह जल में घुलनशील होता है
  • ग्लूकोस / ग्लूकोज एक सरल कार्बोहाइड्रेट यौगिक है जो कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन परमाणुओं से मिलकर बना है।
  • ग्लूकोज सर्वाधिक मात्रा में पायी जाने वाली शर्करा होती है।
  • ग्लूकोज का रासायनिक सूत्र (C₆H₁₂O₆) है। यह स्वाद में मीठा होता है तथा सजीवों की कोशिकाओं के लिए ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।
  • यह पौधों के फलों जैसे काजू, अंगूर व अन्य फलों में, जड़ों जैसे चुकुन्दर की जड़ों में, तनों में जैसे ईख के रूप में सामान्य रूप से संग्रहित भोज्य पदार्थों के रूप में पायी जाती है।
  • ग्लूकोज एक अणु के टूटने पर 38 ATP (एडिनोसिन ट्राई फास्फेट) ऊर्जा का निर्माण होता है।
  • 1 ATP = 7.3 Kcal/ mole (किलोकैलोरी/मोल) 1769 Cal. (कैलोरी)
  • ग्लूकोज, रक्त में (80-100 mg/100ml) सर्वाधिक मात्रा में पायी जाने वाली शर्करा होती है।
  • फ्रक्टोज प्राकृतिक रूप से सबसे अधिक मीठी तथा सैकरीन कृत्रिम रूप से सबसे अधिक मीठी शर्करा होती है जिसका उपयोग मधुमेह के रोगी करते हैं।
  • ग्लेक्टोज सबसे कम मीठी मोनो सेकेराइड शर्करा होती है।
  • फ्रक्टोज फलों से व गलेक्टोज दूध से प्राप्त की जाती है जबकि माल्टोज अनाज से प्राप्त की जाती है।
  • मैनोज अंडे व लकड़ी में पाई जाने वाली शर्करा है।
  • ग्लूकोज रक्त में सबसे अधिक मात्रा में पाई जाने वाली शर्करा होती है।
  • मोनोसैकराइड कार्बोहाइड्रेट का सबसे सरल रूप है, जिसका अर्थ है कि उन्हें हाइड्रोलाइज्ड नहीं किया जा सकता है या छोटे कार्बोहाइड्रेट में विभाजित नहीं किया जा सकता है।
  • मोनोसैकेराइड महत्वपूर्ण अणु होते हैं जिनमें ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए जटिल कार्बोहाइड्रेट टूट जाते हैं। वे न्यूक्लिक एसिड के निर्माण के लिए भी आवश्यक हैं।

✦ डाई सेकेराइड शर्करा (C₁₂H₂₂O₁₁) –

  • दो मोनोसैकेराइड मिलकर डाई सेकेराइड शर्करा का निर्माण करते हैं।
  • डिसैकराइड शर्करा (कार्बोहाइड्रेट अणु) होते हैं जो तब बनते हैं जब 2 सरल शर्करा यानी मोनोसैकेराइड एकजुट होकर एक डिसैकराइड बनाते हैं। मोनोसैकराइड कार्बोहाइड्रेट का सबसे सरल रूप या प्रकार है, इसलिए इन्हें कार्बोहाइड्रेट की सबसे बुनियादी इकाई के रूप में जाना जाता है।
  • ओलिगोसेकेराइड में शर्करा के अणुओं की संख्या 2 से 10 के बीच जबकि डाई सेकेराइड में शर्करा के अणुओं की संख्या 2 होती है।

☞ माल्टोज = ग्लूकोज + ग्लूकोज
☞ लेक्टोज = ग्लूकोज + ग्लेक्टोज
☞ सुक्रोज = ग्लूकोज + फ्रक्टोज

  • मधुमक्खियां पुष्प का पराग (अर्थात् सुक्रोज) चूस कर इसे शहद (अर्थात् फ्रक्टोज) में रूपान्तरित कर देती है।
  • डिसैकराइड एक प्रकार के चीनी अणु हैं जो ग्लाइकोसिडिक लिंकेज के माध्यम से दो मोनोसैकेराइड के संयोजन से बनते हैं। उदाहरण के लिए, माल्टोज़ दो ग्लूकोज अणुओं को जोड़कर बनाया जाता है और इसका व्यापक रूप से ब्रूइंग बियर के उत्पादन में उपयोग किया जाता है। अधिकांश डिसैकराइड का उपयोग टेबल शुगर के रूप में किया जाता है।
  • यौगिक शर्करा, जिसे डाईसेकेराइड या दोहरी शर्करा भी कहा जाता है, एक ग्लाइकोसिडिक बंधन से जुड़ने वाले दो मोनोसेकेराइड से बने अणु होते हैं। उदाहरण सुक्रोज़, लैक्टोज़ और माल्टोज़ हैं। ये तीनों कमरे के तापमान पर सफेद क्रिस्टलीय ठोस हैं और पानी में घुलनशील हैं।
  • डिसैकेराइड में दो मोनोसैकेराइड इकाइयाँ होती हैं, जो α या β अभिविन्यास में ग्लाइकोसिडिक बंधों से जुड़ी होती हैं ।
  • उनमें से सबसे महत्वपूर्ण सुक्रोज , लैक्टोज और माल्टोज हैं ।
  • सुक्रोज सबसे प्रचुर मात्रा में होता है और इसमें α- ग्लूकोज और β- फ्रुक्टोज का एक अणु एक साथ जुड़ा होता है।
  • लैक्टोज दूध और डेयरी उत्पादों में पाया जाता है और इसमें β -1,4-ग्लाइकोसिडिक बंधन से जुड़े गैलेक्टोज और ग्लूकोज होते हैं।
  • माल्टोज़ मुख्य रूप से स्टार्च के आंशिक हाइड्रोलिसिस द्वारा निर्मित होता है और इसमें α -1,4-ग्लाइकोसिडिक बंधन से जुड़ी दो ग्लूकोज इकाइयाँ होती हैं।
  • फ्रुक्टोज़ प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली दुनिया की सबसे मीठी चीनी है, जो सुक्रोज़ से दोगुनी मीठी मानी जाती है। फ्रुक्टोज भी सुक्रोज के पाचन से प्राप्त होता है, एक डिसैकराइड जिसमें ग्लूकोज और फ्रुक्टोज होता है जो पाचन के दौरान ग्लाइकोसाइड हाइड्रॉलेज़ एंजाइम द्वारा टूट जाता है।

✦ पॉली सेकेराइड शर्करा Cx(H₂O)y अथवा (C₆H₁₀O₅)n —

  • पॉलीसैक्कराइड जटिल कार्बोहाइड्रेट हैं।
  • इनका निर्माण कई छोटे एकलशर्करा के अणुओं से मिलकर होता है।
  • ये विशाल आकार के अणु हैं।
  • अन्य कार्बोहाइड्रेट की तरह न तो ये जल में घुलनशील हैं न ही इनका स्वाद मीठा होता है।
  • दो से अधिक मोनो सेकेराइड की इकाइयाँ आपस में ग्लाइकोसिडिक बंध द्वारा जुड़‌कर पॉली सेकेराइड शर्करा का निर्माण करती है।
  • पॉली सेकेराइड शर्करा में शर्करा के अणुओं की संख्या 10 से अधिक होती है।
  • यह जल में अविलेय है।
    ☞ Ex. सेल्युलोज, स्टार्च (मंड), ग्लाइकोजन, काईटिन (chitin)
  • पॉली सेकेराइड शर्करा मलूकोज के 10 से 10,000 अणुओं का संयुक्त रूप होता है।
  • सेल्युलोज को लकड़ी से, कागज से, पत्तियों से प्राप्त किया जाता है जबकि स्टार्च को आलू, गन्ने व चावल से प्राप्त किया जाता है।
  • गलाइकोजन को जीव-जंतुओं का संचित भोजन तथा स्टार्च (मंड) को पेड़—पौधों का संचित भोजन कहा जाता है।
  • सेल्युलोज प्रकृति में सर्वाधिक मात्रा में पाई जाने वाली पॉली सेकेराइड शर्करा है।
  • पादप कोशिकाओं की कोशिका भित्ति सेल्युलोज की बनी होती है।
  • यह कवक की कोशिका भित्ति, जलीय संधिपादों (उदाहरण के लिए,केकड़ा, झींगा और चिराट) और कीटों के बाह्यकंकालों (बाहरी आवरण), घोंघे के घर्षित्रों तथा समुद्रफेनी व ऑक्टोपस सहित शीर्षपादों की चोंचों का मुख्य घटक है।
  • स्टार्च (मंड) व सेल्युलोज दोनों प्राकृतिक बहुलक होते हैं।
  • स्टार्च में आयोडीन डालने पर उसका रंग नीला पड़ जाता है जबकि सेल्युलोज इस घोल में रंग प्रदान नहीं करता है।
  • पॉलीकार्बोहाइड्रेट, भोजन में पाए जाने वाले सबसे प्रचुर कार्बोहाइड्रेट हैं।
  • ये लंबी श्रृंखला वाले पॉलिमरिक कार्बोहाइड्रेट हैं जो ग्लाइकोसिडिक लिंकेज द्वारा एक साथ बंधे मोनोसैकेराइड इकाइयों से बने होते हैं।
  • पॉलीसेकेराइड प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक पॉलिमर हैं जो पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों में असाधारण गुणों और जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक भूमिकाओं के साथ पाए जाते हैं।
  • ये अपने उच्च पोषक मूल्य और हमारी प्रतिरक्षा और पाचन कार्यों और विषहरण प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव के लिए जाने जाते हैं।
  • सामान्यत: पॉलीसेकेराइड में दस से अधिक मोनोसैकेराइड इकाइयाँ होती हैं, जबकि ऑलिगोसेकेराइड में तीन से दस मोनोसैकेराइड इकाइयाँ होती हैं।
  • पॉलीसेकेराइड का एक सामान्य सूत्र Cx(H₂O)y होता है, जहां x और y आमतौर पर 200 और 2500 के बीच बड़ी संख्या में होते हैं।
  • स्टार्च जैसे पॉलीसेकेराइड की पाचन प्रक्रिया मुंह में शुरू होगी जहां यह लार एमाइलेज [ लार में एक एंजाइम जो स्टार्च को तोड़ने में मदद करता है] द्वारा टूट जाता है या ‘हाइड्रोलाइज्ड’ हो जाता है।
  • कार्बोहाइड्रेट जो बड़ी संख्या में मोनोसैकेराइड इकाइयों के जल-अपघटन का उत्पादन करते हैं, उन्हें पॉलीसेकेराइड कहा जाता है। कुछ सामान्य उदाहरण स्टार्च, सेलूलोज़, ग्लाइकोजन, गोंद आदि हैं। पॉलीसेकेराइड शर्करा की लंबी श्रृंखला हैं लेकिन चूंकि वे स्वाद में मीठे नहीं होते हैं , इसलिए उन्हें गैर-शर्करा भी कहा जाता है।

❒ प्रोटीन —

  • प्रोटीन की खोज गेरार्डस जोहान्स मुल्डर ने 1837 में की थी।
  • प्रोटीन शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जे. ब्रजैलियस ने 10 july 1838 को किया था।
  • प्रोटीन एक नाइ‌ट्रोजन युक्त यौगिक व जटिल कार्बनिक पदार्थ होता है।
  • प्रीटीन कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन व नाइट्रोजन (C, H, O, N) से मिलकर बने होते हैं।
  • इसके अतिरिक्त इसमें सल्फर, फास्फोरस, आयोडीन तथा आयरन (फैरस) के भी अंश पाए जाते हैं।
  • प्रोटीन के स्त्रोत सोयाबीन, दाल, शैवाल, मांस, अंडे, पनीर, मछली, दूध, बादाम आदि है।
  • 1 ग्राम प्रोटीन से 4 किलो कैलोरी उर्जा प्राप्त होती है।
  • प्रोटीन की निर्माणकारी इकाई अमीनों अम्ल होते हैं।
  • प्रोटीन का निर्माण लगभग 20 प्रकार के अमीनों अम्ल से मिलकर होता है।
  • 20 प्रकार के अमीनों अम्ल में से 9 आवश्यक अमीनों अम्ल भोजन के माध्यम से व 11अनावश्यक अमीनों अम्ल का निर्माण शरीर स्वयं करता है।

☞ 9 आवश्यक अमीनों अम्ल — लाइसिन (Lycein), ट्रिप्टोफैन (Tryptophan), हिस्टिडिन (Histidine), फोनिलऐलानिन (Phenylalanine), ल्युसिन (Leucine), आइसौल्युसिन (Isoleucine), थ्रियोनिन (Threonine), वेलिन (Valine) और आरजिनिन (Arginine) आदि

☞ 11 अनावश्यक अमीनों अम्ल — ग्लाइसिन (Glycine), ऐलिनिन (Ala- nine), सेरिन (Serine), नोरल्युसिन (Norlucine), ऐस्पर्टिक अम्ल (Aspartic acid), ग्लूटैमिक अम्ल (Glutamic acid), हाइड्रॉक्सीग्लुटैमिक अम्ल (Hydroxyglutamic acid), प्रोलिन (Pro- line), सिट्रलिन (Citruline), टाइरोसिन (Tyrocine), तथा सिस्टीन(Cystine)।

  • ग्लाइसिन सबसे सरल प्रकार का अमीनों अम्ल है।
  • यह प्रोटीन फाइबर में रेशम कीट के लार्वा द्वारा स्रावित होता है।
  • सल्फर या गंधक में सिस्टोन व मिथियोनिन अमीनों अम्ल होता है।
  • अर्द्ध आवश्यक अमीनों अम्ल आजींनीन व हिस्टीडाइन होते हैं।
  • दो अमीनों अम्लों के बीच पेप्टाइड बंध होता है।
  • प्रोटीन अमीनों अम्ल के बहुलक होते हैं।
  • प्रकृति में लगभग 300 प्रकार के अमीनों अम्ल पाए जाते हैं।
  • मानव शरीर का लगभग 15% भाग प्रोटीन से बना होता हैं।
  • शैवाल (स्पाईरुलिना-65% व क्लोरैला नील हरित शैवाल-60%) से सर्वाधिक प्रोटीन प्राप्त होती है।
  • दाल में सोयाबीन (40-45%) से सर्वाधिक प्रोटीन प्राप्त होती है।
  • सोयाबीन व पशुओं के खाद्य पदार्थ से प्राप्त प्रोटीन में सभी आवश्यक अमीनों अम्ल पाए जाते है इसलिए इन्हें सम्पूर्ण प्रोटीन कहते हैं।

✦ प्रोटीन के प्रकार —

  1. सरल प्रोटीन (simple protein)- इस प्रकार के प्रोटीन केवल अमीनों अन्ल के बने होते हैं, जैसे- जन्तु प्रोटीन, एल्बुमिन, ग्लोब्युलिन एल्ब्यूमिनाइड इत्यादि।
  2. संयुग्मी प्रोटीन — इस प्रकार के प्रोटीन का संयोजन किसी अन्य अणु से रहता है, जैसे- न्युक्लियो न्यूक्लियोप्रोटीन, ग्लाइकोप्रोटीन व फॉस्फोप्रोटीन
  3. व्युत्पन्न प्रोटीन — ये सरल व संयुग्मी प्रोटीन के जलीय अपघटन से प्राप्त होती है तथा ये प्रोटीन के पाचन के दौरान बनती है।
  • प्रोटीन व कैलोरी की कमी से शिशुओं (1 वर्ष से कम आयु में) मैरस्मस या ऊर्जा निःशक्तता (Energy Deficiency) या (हड्रियों का सूखा रोग) अर्थात् शरीर सूख कर दुर्बल और आँखे अन्दर की ओर धॅंस जाती हैं।
  • प्रोटीन की कमी से बच्चों (1 से 3 वर्ष) व क्वाशियोरकोर (पेट में फुलाव, भूख कम लगना, स्वभाव में चिडचिडापन, त्वचा पीली, शुष्क, काली, धब्बेदार होकर फटने लगती है) नामक रोग हो जाता है।
  • सामान्य क्रियाशील महिला के लिए प्रतिदिन प्रोटीन की आवश्यक मात्रा 45 ग्राम व दूध पिलाने वाली माँ को प्रतिदिन 70 ग्राम प्रोटीन की मात्रा की आवश्यकता होती है।
  • कशेरुक जंतुओं के बाल व नाखून, चोंच, खुर, सींग, ऊन, पंख, पंजे कछुओं के कवच आदि किरैटिन (अल्फा किरैटिन) शुद्ध प्रोटीन से बने होते हैं।
  • किरैटिन प्रोटीन एक रेशेदार प्रोटीन है।
  • मकड़ियों के जाले बीटा-किरैटिन प्रोटीन से बनते है।
  • रक्त में हीमोग्लोबिन प्रोटीन होती है।
  • प्लाज्मा में एल्बुमिन व ग्लोब्युलिन प्रोटीन होती है।
  • मांसपेशियों में मायोसीन व एक्टिन प्रोटीन होती है।
  • दांत तथा हड्डियों का निर्माण करने वाली प्रोटीन ओसीन होती है।
  • कैरोटिन नामक वर्णक के कारण गाजर का रंग लाल व गाय के दूध का रंग पीला होता है।
  • दूध में केसीन प्रोटीन पायी जाती है जिसके करण दूध का रंग सफेद होता है।
  • मक्का में जिन, गेहूं में ग्लूटिन, अनाज में ग्लूटेमिन्स, अंडे में – एल्बुमिन, हीमोग्लोबिन में ग्लोबिन (95%), दालों में प्रोलैमिन्स व त्वचा में इलास्टिन प्रोटिन पायी जाती है।
  • अकशेरूक जन्तुओं के रक्त में ‘हीमोसाइनीन’ प्रोटीन पाया जाता है।
  • रक्त का थक्का फाईब्रीन या फाईब्रीनोजन या प्रोथ्रोम्बिन प्रोटीन बनाती है।
  • हिपेरिन को प्रतिस्कंदन प्रोटीन के नाम से भी जाना जाता है।
  • गुणसूत्र व DNA में हिस्टोन प्रोटीन होती है।
  • एंजाइम प्रोटीन के बने होते हैं तथा एंजाइम के प्रोटीन वाले भाग को एपो एंजाइम कहा जाता है
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