बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र —
❒ किशोरावस्था
✦ पूर्व/प्राक् किशोरावस्था —
बालक की 11 से 14/15 वर्ष की आयु पूर्व किशोरावस्था कहलाती है।
✯ वय: संधि / 11 से 14 वर्ष / विशेषताएं —
- इस अवधि में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का विकास तीव्र होता है।
- शारीरिक एवं मानसिक विकास बाल्यावस्था की अपेक्षा तीव्र गति से होता है।
- लड़कियों में यह अवस्था 11 से 13 वर्ष की होती है। इस अवस्था में लड़कियों की लम्बाई तीव्रता से बढ़ती है। आवाज कोमल व सुरीली हो जाती है। मासिक धर्म प्रारम्भ हो जाता है।
- लड़को का विकास 12 से 14 वर्ष की अवधि में तीव्र गति से होता है।
- किशोरावस्था विकास की क्रांतिक अवस्था है। यह उच्च आकांक्षाओं का काल है।
- किशोरावस्था पर सबसे पहले शोध हॉल ने किया। इनके अनुसार इस अवस्था को मानव जीवन की अद्वितीय अवस्था कहा जा सकता है।
✦ उत्तर किशोरावस्था —
- बालक की 16 से 18 वर्ष तक की अवधि इस उत्तर किशोरावस्था को दर्शाती है।
✦ किशोरावस्था की विशेषताएं —
- स्टेनली हॉल के अनुसार — नया जन्म का काल
- स्टेनली हॉल के अनुसार — दबाव, संघर्ष एवं तनाव का काल
- किलपैट्रिक के अनुसार — जीवन का सबसे कठिन काल
- देशभक्ति व समाज सेवा की भावना
- विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण
- संवेग अस्थिर
- समायोजन का अभाव
- तार्किक चिंतन व अमूर्त चिंतन की अवस्था
✦ किशोरावस्था की परिभाषाएं —
✯ क्रो एंड क्रो के अनुसार — ‘किशोर ही वर्तमान की शक्ति एवं भावी आशा को प्रस्तुत करता है।’
✯ जीन पियाजे के अनुसार — ‘ किशोरावस्था महान आदर्शों व वास्तविकताओं से अनुकूलन का समय है।’
✯ स्टेनली हॉल के अनुसार — ‘किशोरावस्था बड़े संघर्ष, तनाव, तूफान व विरोध की अवस्था है।’
✯ कॉल व बुश के अनुसार — ‘किशोरावस्था के आगमन का मुख्य चिह्न संवेगात्मक विकास में तीव्र परिवर्तन है।’
✦ महत्वपूर्ण तथ्य —
- शारीरिक विकास में सबसे पहले नाड़ी संस्थान (Nervous System) का विकास होता है।
- वय: संधि में शारीरिक वृद्धि की गति पुन: एक बार तीव्र हो जाती है। इसलिए इसे “Puberty Growth Spurt” कहते हैं।
✦ किशोरावस्था के विकास के सिद्धांत
- आकस्मिक/त्वरित विकास का सिद्धांत — इस सिद्धांत के सर्मथक स्टेनली हॉल है। इसके अनुसार किशोरावस्था में अकस्मात् परिवर्तन आते है।
- क्रमिक विकास का सिद्धांत — इस सिद्धांत के समर्थक थॉर्नडाइक व हॉलिंगवर्थ है। इसके अनुसार किशोरावस्था में परिवर्तन अकस्मात् न होकर क्रमिक व धीरे — धीरे होते है।
✯ बाल विकास व शिक्षा शास्त्र
✦ बालक का शारीरिक विकास
(1) शैशवावस्था में शारीरिक विकास —
- भार — जन्म के समय शिशु का औसत भार 3.6 किग्रां होता है।
- लम्बाई — जन्म के समय शिशु बालक की लम्बाई 51.25 सेमी. होती है।
- सिर — शिशु के सिर का भार 350 ग्राम. होता है।
- हड्डियॉं — जन्म के समय शिशु के शरीर में 270 हड्डियां होती है।
- शिशु की संवेदी योग्यताएं —
- जन्म के लगभग 30 घंटे पश्चात बालक की नैत्रेन्द्रिया काम करने लगती है।
- नवजात शिशु जन्म के ठीक बाद सुन सकते हैं।
- मानव शरीर की सबसे लम्बी हड्डी फीमर है, जो जॉंघ में पायी जाती है। जबकि सबसे छोटी हड्डी का नाम स्टेपीज है, जो कान में पायी जाती है।
- दॉंत — शिशु में दांत बनने की प्रक्रिया गर्भावस्था से प्रारम्भ हो जाती है, जो जन्म के 5—6 महीने बाद बालक में दूध के दांत के रूप में दृष्टिगोचर होती है।
- दूध के दांत अर्थात् अस्थायी दांत
- प्रथम माह में शिशु के ह्रदय की धड़कन 140 प्रति मिनट होती है। 6 वर्ष बाद ये 100 प्रति मिनट हो जाती है।
(2) बाल्यावस्था में शारीरिक विकास —
- भार — उत्तर बाल्यावस्था में बालक का वजन 36 किग्रा. होता है।
- लम्बाई — बाल्यावस्था में लम्बाई कम बढ़ती है। मात्र 2 से 3 इंच
- सिर — 12 वर्ष तक शिशु के मस्तिष्क का भार 1260 ग्राम होता है।
- दांत — 5 से 6 वर्ष में दूध के दांत गिरना प्रारम्भ हो जाते हैं।
- उत्तर किशोरावस्था के समय ह्रदय की धड़कन 72 बार प्रति मिनट होती है।
(3) किशोरावस्था में शारीरिक विकास —
- इस अवस्था में मांसपेशियों का भार, शरीर के भार का 45 से 50 प्रतिशत होता है।
- इस काल में लड़कियों की लम्बाई, लड़कों की तुलना में ज्यादा बढ़ती है।
- किशोरावस्था में हड्डियों की संख्या 206 होती है।
- इस काल में 28 स्थायी दांत आ जाते है।
- इस समय मस्तिष्क का भार 1400 ग्राम होता है।
- इस अवस्था में ह्रदय की धड़कन 72 बार प्रति मिनट होती है।
✦ शारीरिक विकास के प्रकार — इसे 4 भागों में बांटा गया है।
- लसीकाम — इस विकास में बालक के सभी अंग 11 वर्ष से 12 वर्ष तक शीघ्र वृद्धि करते हैं।
- तंत्रिकीय — इस विकास में बालक का विकास 3 से 4 साल तक तीव्र गति से होता है।
- सामान्य — इस विकास में बालक का 3 वर्ष की अवधि में शैशवावस्था के दौरान तीव्र विकास होता है।
- जननिक — इस विकास में बालक का शारीरिक विकास 13 से 14 वर्ष तक मंद गति से होता है, परन्तु 14 वर्ष बाद विकास तीव्र गति से होता है।
✦ अन्त:स्त्रावी ग्रंथियॉं —
- थायरॉइड ग्रंथि — यह ग्रंथि स्वास नलिका सामने होती है। इससे थायरॉक्सिन हार्मोन का स्त्रावण होता है।
- पीयूष ग्रंथि — इसे पिट्यूटरी व मास्टर ग्रंथि भी कहते है।
- पिट्यूटरी ग्रंथि एक मटर के आकार की अंतःस्रावी ग्रंथि है जो खोपड़ी के आधार के बीच में स्थित होती है और सेला टरिका नामक हड्डी की गुहा के भीतर संरक्षित रहती है।
- यह विभिन्न अन्य अंतःस्रावी ग्रंथियों के कार्यों को विनियमित करने और रक्त में समग्र हार्मोन स्तर को बनाए रखने में एक आवश्यक भूमिका निभाता है।
- पिट्यूटरी ग्रंथि को दो भागों में विभाजित किया गया है: पूर्वकाल पिट्यूटरी ग्रंथि और पश्च पिट्यूटरी ग्रंथि।
- पूर्वकाल पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा स्रावित चार हार्मोन होते हैं जो अन्य अंतःस्रावी ग्रंथियों के कार्यों को नियंत्रित करते हैं।
- इन हार्मोनों में थायराइड-उत्तेजक हार्मोन (टीएसएच), एड्रेनोकोर्टिकोट्रोपिक हार्मोन (एसीटीएच), कूप-उत्तेजक हार्मोन (एफएसएच), और ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (एलएच) शामिल हैं।
- इसके अलावा, पूर्वकाल लोब दो और हार्मोन स्रावित करता है जिनका विशिष्ट अंगों पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
- इन हार्मोनों में ग्रोथ हार्मोन (जीएच) या सोमाटोट्रोपिक हार्मोन (एसटीएच) और प्रोलैक्टिन शामिल हैं।
- पश्च पिट्यूटरी ग्रंथि के संबंध में, दो अलग-अलग हार्मोन, अर्थात् ऑक्सीटोसिन और एंटीडाययूरेटिक हार्मोन (एडीएच), वहां संग्रहीत होते हैं।
- ये हार्मोन शरीर की जरूरत के आधार पर स्रावित होते हैं।
- एड्रीनल ग्रंथि — इसके द्वारा एड्रीनलिन नामक हार्मोन स़्त्रावित होता है, जो संवेगों को नियंत्रित करता है। इस स्त्राव की कमी से व्यक्ति चिड़चिड़ा, उदास और निर्बल बन जाता है।
- जनन ग्रंथियॉं — पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन और महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन पाया जाता है।
- थायमस ग्रंथि — यह ग्रंथि गर्दन के निचले हिस्से और छाती के उपर पायी जाती है। इससे थायमस हार्मोन स्त्रावित होता है।
- पैराथाइरॉइड ग्रंन्थि — यह ग्रन्थि रक्त तथा हड्डियों में कैल्शियम के स्तर को नियमित रखती है।
✦ फ्रायड का मनोलैंगिक विकास का सिद्धांत —
- इसके अनुसार किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास पर उसकी काम शक्ति का बहुत प्रभाव पड़ता है।
- फ्रायड ने काम शक्ति को लिबिडों कहा है।
✦ बालका का मानसिक विकास —
- शैशवावस्था में मानसिक विकास —
- सोरेन्सन के अनुसार — ‘जैसे जैसे शिशु प्रतिदिन, प्रतिमाह, प्रतिवर्ष बढ़ता जाता है, वैसे—वैसे उसकी शक्त्यिों में परिवर्तन होता जाता है।’
- जॉन लॉक के अनुसार — ‘ नवजात शिशु का मस्तिष्क कोरे कागज के समान होता है, जिस पर वह अपने अनुभव लिखता है।’
- कल्पना का विकास ढ़ाई वर्ष बाद शुरू होता है।
- बाल्यावस्था में मानसिक विकास —
- क्रो एंड क्रो के अनुसार — ‘ जब बालक लगभग 6 वर्ष का हो जाता है,तब उसकी मानसिक योग्यताओं का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है।’
- बाल्यावस्था में बालक की चिंतनशालता में परिपक्वता आती है।
- किशोरावस्था में मानसिक विकास —
- इस अवस्था में स्मृति का तीव्र विकास होता हे।
- किशोरावस्था में अवधान की क्षमता बढ़ना, तर्क व निर्णय शक्ति में वृद्धि, रूचियों में विकास होना।
✦ बालक का सामाजिक विकास —
- जन्म के समय बालक में सामाजिकता का कोई गुण नहीं होता है।
- प्रत्येक विकासात्मक अवस्था में समाज बच्चों से कुछ उम्मीद करता है, जिसे सामाजिक प्रत्याशा कहा जाता है।
❒ स्कीनर व हैरीसन के अनुसार — ‘खेल का मैदान सामाजिकता का निर्माण स्थल है।’
❒ क्रो एंड क्रो के अनुसार — ‘सामाजिक व संवेगात्मक विकास साथ — साथ चलते हैं।
❒ हरलॉक के अनुसार — ‘सामाजिक विकास का अर्थ सामाजिक संबंधों में परिपक्वता प्राप्त करना है।’
(1) शैशवावस्था में सामाजिक विकास —
❒ क्रो एंड क्रो के अनुसार — ‘ जन्म के समय शिशु न तो सामाजिक प्राणी होता है और न असाताजिक प्राणी पर वह इस स्थिति में अधिक समय तक नहीं रह पाता है।’
(2) बाल्यावस्था में सामाजिक विकास —
- समाजीकरण के कारण बच्चा यह बोध करता है कि वह कौन है और वह अपनी पहचान किसकी तरह बनाना चाहता है।
- खेल भावना का विकास इसी अवस्था में होता है। जैसे — साइकिल चलाना, दौड़ना, स्केटिंग करना इत्यादि।
- विद्यालय में वह नये मित्र बनाता है, जो समाजिकरण का उत्तम उदाहरण है।
(2) किशोरावस्था में सामाजिक विकास —
- किशोरावस्था में बालक समूह बनाना प्रारम्भ कर देता है। जैसे — खेलने हेतु, भ्रमण हेतु इत्यादि।
- समूह में नेतृत्व की भावना का विकास जैसे गुणों का विकास ही सामाजिक विकास है।
- भावी जीवन की चिन्ता जैसे विवाह, व्यवसाय, परीक्षा परिणाम, नौकरी इत्यादि की चिंता प्रारम्भ हो जाती है, ये सामाजिक विकास के ही उदारण है।
अभिकल्प (SK VERMA द्वारा संचालित ) मो. 96028—62091
पता — नजदीक भगतसिंह चौक, हनुमानगढ़ जंक्शन
❒ Website – Abhikalpinstitute.com
मनोसामाजिक विकास का सिद्धांत (Theory of Psychusacial Development)
प्रर्वतक — इरिक इरिक्सन एरिक्सन (Erik Erikson)
- इरिक्सन नव फ्रायडवादी मनोवैज्ञानिक माने जाते हैं और वे फ्रायड के सिद्धांत का काफी सीमा तक समर्थन करते हैं लेकिन इन्होंने फ्रायड की तरह कामुकता को महत्वपूर्ण नहीं माना।
- इनके सिद्धांत में व्यक्तिगत (Personal), सांवेगिक (Emotional) तथा सांस्कृतिक (Cultural) या सामाजिक विकास (Social Development) को समन्वित किया गया है अतः इसे मनोसामाजिक सिद्धांत (Psychosocial Theory) कहा जाता है। इस सिद्धांत की कुछ मनोवैज्ञानिकों ने जीवन अवधि विकास का सिद्धांत भी कहा है।
- इरिक्सन ने अपनी प्रसिद्ध कृति चाइल्ड हुड एण्ड सोसायटी-1963 में यह स्पष्ट किया है कि मनुष्य केवल जैविक और मानसिक प्राणी ही नहीं है. बल्कि वह एक सामाजिक प्राणी भी है।
- इरिक्सन ने इस सिद्धांत में पूरे . जीवन अवधि (Life Spans) को 8 विभिषा अवस्थाओं में चांटा है-
1. विश्वास बनाम् अविश्वास (Trust vs Mistrust)- शैशवावस्था (जन्म से 18 माह 1.5 वर्ष) –
- बच्वों को अपने माता-पिता को देखकर उचित स्नेह व प्रेम मिलता है, जो उनमें विश्वास (Trust) का भाव विकसित करता है तथा जब माता- पिता बच्चों को रोते-बिलखते व चिल्लाते छोड़ जाते हैं, तो उनमें अविश्वास (Mistrust) की भावना विकसित हो जाती है।
2.. स्वतंत्रता बनाम् लीलता तथा शक / आत्मनिर्भरता बनाम् लज्जा (Autonomy vs Shame and Doubt) –
- प्रारम्भिक बाल्यावस्था (1.5 से 3 वर्ष) – इस अवस्था में बालक अपने आप भोजन करना, कपड़े पहनना इत्यादि पर दूसरों पर निर्भर रहना नहीं चाहते। वह स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहते हैं।
- दूसरी तरफ बहुत सख्त माता-पिता बच्चों को साधारण कार्य करने पर भी डाँटते हैं तथा उनको क्षमता पर शक करते हैं, जिसके कारण बच्चे अपने अंदर लज्जा अनुभव करते हैं।
3. पहल शक्ति क्याम् दोषित (Initiative vs Guilt)-(3 में 5 वर्ष) –
- यह बच्चों का प्राकू स्कूली वर्ष (Pre School Years) होता है तथा ये अवधि बालक की पूर्व आरम्भिक बाल्यावस्था की होती है।
- माता-पिता बच्चों को जिंदगी के सभी क्षेत्रों में नये- नये खोज करने की प्रेरणा देते हैं, तो इसे पहल की संज्ञा देते हैं और जब माता-पिता पहल करने पर उनकी आलोचना / दण्ड देते हैं, तो बच्चों में दोष भाव उत्पन्न हो जाता है।
4. परिश्रम बनाम् हीनता उद्यमिता बनाम् हीन भावना (In dustry vs Inferiority) (6 से 12 वर्ष) –
- इस अवधि को उत्तरबाल्यावस्था भी कहा जाता है।
- जब बच्चों को पहल से उत्पन्न नई अनुभूतियों मिलती है। तब वह अपनी ऊर्जा को नये ज्ञान अर्जित करने में लगाते हैं, इसे परिश्रम की संज्ञा दी गई है।
- लेकिन जब स्कूल में आने वाली चुनौतियों से असफलता मिलती है, तब बालक में हीनता का भाव उत्पन्न होता है।
5. अहं पहचान बनाम् भूमिका संभ्रान्ति/ एकात्मकता या तादात्मिकता बनाम् भ्रांति (Identity vs Role coufa
sion) (12 से 18 वर्ष) –
- यह किशोरावस्था की अवस्था होती है।
- इस अवस्था में किशोरों में यह जानने की प्राथमिकता होती है कि वह कौन है, किसलिए है, और अपने जीवन में कहाँ जा रहे हैं?
- इसे पहचान की संज्ञा दी है तथा जब बालक भविष्य का रास्ता सुनिश्चित नहीं कर पाते, तब संभ्रांति की स्थिति उत्पन हो जाती है।
6. घनिष्ठता बनाम् विलग अलगाव एकाकीपन (Intimacy vs Isolation)-(18 से 35 वर्ष) –
- यह आरम्भिक वयस्क अवस्था / युवावस्था की अवस्था होती है।
- इस अवस्था में व्यक्ति दूसरों के साथ धनात्मक संबंध (Positive Relation) बनाता है।
- जब व्यक्ति में दूसरों के साथ घनिष्ठता का भाव विकसित होता है, तो वह दूसरों के लिए अपने आपको समर्पित कर लेता है और जब दूसरों के साथ घनिष्ठता विकसित नहीं कर पाते हैं, तो वे सामाजिक रूप से अलग (Socially Isolated) हो जाते हैं अर्थात् इस अवस्था में घनिष्ठता बनाम अलगाव का संघर्ष होता है।
7. सृजनात्मकता जननात्मकता बनाम् स्थिरता (Generativist vs Stagnation) (35 से 65 वर्ष) –
- यह अवस्था मध्यवयस्कावस्था (Middle Adulthood) भी कहलाती है।
- इस अवस्था में व्यक्ति अगली पीढ़ी के लोगों के कल्याण तथा उस समाज के लिए जननात्मक में उत्पादकता सम्मिलित करता है, लेकिन जब व्यक्ति को जननात्मकता की चिंता उत्पन्न नहीं होती, तो उसमें स्थिरता उत्पन्न हो जाती है।
8. अहं संपूर्णता बनाम् नैराश्य/ सम्पूर्णता बनाम हताशा (Ego Integrity vs Despair) (65 वर्ष के बाद) –
- इस अवस्था में 65 वर्ष के बाद से प्रारम्भ होकर मृत्यु तक की अवधि सम्मिलित होती है, इसे बुढ़ापा की अवस्था कहा जाता है।
- इस अवस्था में व्यक्ति अपने पहले के समय को याद करता है, कि उसने सभी अवस्थाओं की जिम्मेदारी धनात्मक रूप से पूर्ण की है या नहीं।
- अगर परिणाम धनात्मक होता है, तो संपूर्णता का भाव विकसित होता है और अगर परिणाम ऋणात्मक होता है, तो नैराश्य का भाव होता है | {RBSE-Class-11th}
समाजीकरण के साधन (Source of Socialization)
1. परिवार (Family) 2. विद्यालय (School) । 3. समाज (Society)
4. राज्य-(State) 5. खेल तथा मित्र (Games and Friend) 6. समुदाय (Community)
✦ बालक में संवेगात्मक विकास (Emotional Development in Child) –
- संवेग को अंग्रेजी में ‘इमोशन’ (Emotion) कहते हैं।
- इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘इमोवेयर’ (Emovere) से हुई है, जिसका अर्थ है-उत्तेजित होना।
- इस प्रकार ‘संवेग’ को व्यक्ति की ‘उत्तेजित दशा’ कहते हैं।
- मनुष्य अपनी नियमित जिंदगी में सुख, दुःख, भय, क्रोध, प्रेम, ईर्ष्या, घृणा आदि का अनुभव करता है। वह ऐसा व्यवहार किसी उत्तेजनावश करता है। यह अवस्था संवेग कहलाती है।
✦ संवेगात्मक विकास की परिभाषाएं —
❒ गेल्डार्ड के अनुसार – ” संवेग क्रियाओं का उत्तेजक है।”
❒वुडवर्थ के अनुसार – “संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।”
❒ मार्गन व गिलिलेण्ड के अनुसार – ” संवेग मन की उत्तेजित दशा है।”
Note: शिशु एवं उनके माता-पिता (पालनकर्ता) के बीच स्नेह का जो सांवेगिक बंधन विकसित होता है, उसे आसक्ति (Attachment) कहते हैं । [ NCERT कक्षा-11.पु.सं.-73]
उदाहरणार्थ- जब हम भयभीत होते हैं, तो हम भय की वस्तु से दूर भाग जाना चाहते हैं, हमारे सारे शरीर में पसीना आ जाता है, हम काँपने लगते हैं, हमारा हृदय जोर से धड़कने लगता है, हमारी इस उत्तेजित दशा का नाम ही संवेग है। इस दशा में व्यक्ति का बाह्य और आन्तरिक व्यवहार बदल जाता है।
✦ संवेगों के प्रकार (Types of Emotions) –
❒ राबर्ट प्लुटचिक ने संवेगों के 8 प्रकार बताये हैं- डर, आश्चर्य, घृणा, क्रोध, उम्मीद, खुशी, स्वीकृति, उदासी।
❒ जेम्स ड्रेवर ने संवेगों के 2 प्रकार बताये हैं- 1. स्थूल संवेग (प्रेम, भय, दुःख, क्रोध) व 2. सूक्ष्म संवेग (बौद्धिकता, सौन्दर्यमान, नैतिकता)।
❒ जे. एस. रॉस ने संवेगों के 3 प्रकार बताये हैं- ज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक संवेग।
सामान्यतः संवेग के 2 प्रकार हैं-
1. सकारात्मक संवेग (Positive Emotion) – ये सुखकर होते हैं जैसे-प्रेम, हर्ष, आनन्द, स्नेह, उल्लास आदि।
2. नकारात्मक संवेग (Negative Emotion)- ये कष्टकर या दुखदायी होते हैं। जैसे-भय, कोष, चिन्ता, कष्ट, ईर्ष्या आदि।
✦ संवेग के तत्व (Components of Emotions) –
1. दैहिक तत्थ (Physical Component)
2. संज्ञानात्मक तत्व (Cognitive Component)
3. व्यवहारात्मक तत्व (Behavioural Component)
✦ मूल प्रवृत्ति का संवेग से सम्बन्ध –
- संवेग के तुरन्त बाद में होने वाली क्रिया ही मूल प्रवृत्ति (Instinct) कहलाती है अर्थात् पहले संवेग तथा बाद में मूल प्रवृत्ति होती है।
- मूल प्रवृत्ति के जन्मदाता मैक्डूगल हैं।
- प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक विलियम मैक्डूगल एवं गिलफोर्ड ने सर्वाधिक महत्वपूर्ण संवेग भय को बताया है, एक बालक में कुल 14 संवेग बताए हैं।
- ब्रिजेज के अनुसार . ” जन्म के समय केवल उत्तेजना होती है, दो वर्ष तक सभी संवेगों का विकास हो जाता है।”
(क) शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास (Emotional Development in lnfancy)
- शिशु अपने परिवार के बड़े सदस्यों से संवेगात्मक व्यवहार का अनुकरण करता है इसीलिाए, वह उन सभी बातों से डरेगा, जिनसे परिवार के सदस्यों को डर लगता है।
जॉन्स के अनुसार- “2 वर्ष के शिशु को साँप से डर नहीं लगता क्योंकि उसमें भय का विकास नहीं हुआ होता है। 3 वर्ष की आयु में यह अकेले रहने, पशुओं से तथा अंधेरे से डरने लगता है।”
(ख) बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास (Emotional Development in Childhood)
- पूर्व प्राथमिक तथा प्राथमिक विद्यालयों में बालकों के संवेगात्मक विकास के लिए महिला अध्यापक होनी चाहिए क्योंकि इस आयु में बालक के लिए माता की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
- विद्यालय व शिक्षक का व्यवहार शिष्ट व सहयोगात्मक होने पर बालक में मानसिक भ्रान्तियाँ नहीं बनती है एवं संवेगों का उचित विकास होता है।
(ग) किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास (Emotional Development in Adolescence)
- इस अवस्था के आगमन का प्रमुख चिह्न संवेगात्मक विकास में तीव्र परिवर्तन है।
- तीव्र संवेगात्मक विकास किशोरावस्था की प्रमुख विशेषता होती है।
- बी. एन. झा के अनुसार “काम नामक संवेग किशोरावस्था पर असाधारण प्रभाव डालता है।”
- इस अवस्था में संवेगों में परिपक्वता आने लगती है।
✦ संवेग मापन की विधियाँ-
- गैल्वेनिक त्वचा अनुक्रिया (GSR)- सर्वप्रथम 1888 में विगोरोक्स व फैरे द्वारा बताया कि साइको गैल्वेनोमीटर नामक यंत्र की सहायता से त्वचा की अनुक्रिया में होने वाले परिवर्तनों को जाँच की जाती है। इससे साहस, वीरता, कायरता तथा अपराध वृत्ति आदि का पता लगाया जाता है।
- रक्तचाप मापन विधि-इस विधि में रक्तचाप में परिवर्तन के आधार पर मापन होता है। जैसे-झूठ बोलने पर रक्तचाप बढ़ता है, क्योंकि इससे संवेग प्रभावित होते हैं।
- मनोविश्लेषण, प्रश्नावली विधि, रेटिंग मापनी एवं प्रेक्षण विधि का प्रयोग भी संवेगों के मापन में होता है।
✦ संवेग सिद्धांत –
- कैनन बॉर्ड सिद्धांत — इस सिद्धांत के प्रतिपादक वाल्टर व कैनन (1927) हैं।
- संवेग संक्रियकरण सिद्धांत- इस सिद्धांत के प्रतिपादक लिंडस्ले (1951) हैं।
- स्कैक्टर सिंगर सिद्धांत-इस सिद्धांत के प्रतिपादक स्कैक्टर व सिंगर (1962) है। इस सिद्धांत को संज्ञानात्मक शारीरिक सिद्धांत भी कहते हैं।
- संज्ञानात्मक मूल्यांकन सिद्धांत — इस सिद्धांत के प्रतिपादक लेजारस (1970) हैं।
- विरोधी प्रक्रिया सिद्धांत- इस सिद्धांत के प्रतिपादक सोलोमन व कोरबिट (1974) हैं।
- जेम्स लांजे सिद्धांत इस सिद्धांत के प्रतिपादक — विलियम जेम्स व कार्ल लांजे (1880) है।
✦ बालक का क्रियात्मक (गामक) विकास (Motor Development of Child)
- क्रियात्मक विकास को ही गत्यात्मक योग्यता का विकास भी कहते हैं।
- क्रियात्मक विकास द्वारा बालक अपनी मांसपेशियों पर नियंत्रण करना सीख जाता है।
- क्रियात्मक विकास सामान्य से विशिष्ट की ओर होता है।
- शिशु का क्रियात्मक विकास गर्भकालीन अवस्था से ही प्रारम्भ हो जाता है।
- जन्म से लेकर 5 वर्ष की अवस्था तक स्थूल क्रियात्मक कौशल (बैठना, उठना, उछलना, चलना, दौड़ना, फेंकना) में तीव्रता से विकास होता है।
- 5 से 6 वर्ष का बालक दौड़ना, गेंद फेंकना जैसे अनेक क्रियात्मक कौशलों को विकसित करता है। • बालक के गत्यात्मक विकास को गामक विकास / गामक कौशल / यांत्रिक विकास / पेशीय कौशल / लोकोमोटर स्किल / डाइनेमिक स्किल आदि नामों से जाना जाता है।
✦ वाइगोत्स्की का सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास सिद्धांत (Vygotsky’s Social and Cultural Development Theory)
- इस सिद्धांत के प्रतिपादक लिव सिमनोविच वाइगोत्स्की (रूसी मनोवैज्ञानिक) है।
- वाइगोत्स्की कहते हैं कि बालक के संज्ञानात्मक विकास में समाज और संस्कृति का योगदान रहता है।
- यह सोवियत संघ के मनोवैज्ञानिक थे।
- इनका मानना है कि बच्चा कुछ भी सीखता है, तो वह दूसरों की मदद लेकर सीखता है तथा इन्होंने कहा है कि बालक का सबसे ज्यादा विकास खेल के मैदान में ही होता है।
- इन्होंने सांस्कृतिक तथा जैव सामाजिक विकास का सिद्धांत (Socio-Cultural Development Theory) दिया।
- इस सिद्धांत के लिए निम्न मुख्य तीन बातों को विशेष बताया-
- सामाजिक अन्तः क्रिया (Social Interaction) 2. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक (Social-Cultural Factor)
- भाषा (Language)- भाषा को इन्होंने सामाजिक विकास के लिए सबसे बड़ा यंत्र बताया है। इसी के द्वारा समाज में सम्प्रेषण क्रिया पूर्ण होती है।
✦ ZPD-Zone of Proximal Development-निकटतम विकास क्षेत्र/समीपस्थ विकास क्षेत्र —
- इससे तात्पर्य यहाँ जब बालक कोई काम करना चाहता है, परन्तु वह उस काम को करने में सक्षम / able नहीं है, तो अपने से बड़े माता-पिता, अध्यापक आदि का सहारा लेता है, इसे निकटतम विकास का सिद्धांत कहते हैं।
- इसमें बालक किसी कार्य को करने के लिए बाहरी मदद लेता है, तो इस प्रकार हम ZPD की क्रिया के दौरान देखते हैं कि एक बच्चा अपने आप कर रहा है और एक बच्चा जिसे सीखने में बाहरी सहायता मिली।
- वह बाहरी मदद से सीखा हुआ बालक उस कार्य को ज्यादा अच्छे से कर पाएगा।
✦ Scaffolding/मचान-
- जब एक पूर्ण ज्ञान रखने वाला व्यक्ति/वयस्क बच्चे के निष्पादन को सहयोग व निर्देशन द्वारा विस्तारित करता है, तो इसे स्कैफोल्डिंग कहते हैं।
- इसके द्वारा बालक को उच्चतम विकास की ओर ले जाया जाता है।
- यह प्रक्रिया चार स्तर में पूरी होती है-1. सबसे पहले दूसरों से मदद लेना, 2. फिर स्वयं समस्या को समझ लेना, 3. अब बालक अपनी समस्या को स्वयं हल करने लग जाता है तथा 4. निपुणता / दूसरो की मदद करने तक की निपुणता आ जाती है।
✦ MKO (More knowledgeable others)-
- यह एक ऐसा व्यक्ति होगा, जो अपने आप में पूर्ण ज्ञान रखता हो अर्थात् वह उम्र में वयस्क हो या ना हो लेकिन ज्ञान में पूर्णता रखता हो, वह व्यक्ति/ वयस्क MKO कहलाता है।
✦ वंशानुक्रम व वातावरण (Inheritance & Environment) —
मानव का विकास दो कारकों से होता है-
(1) जैविक कारक जैविक विकास का दायित्व ‘माता-पिता/ वंशानुक्रम’ पर होता है।
(2) सामाजिक कारक सामाजिक विकास का दायित्व ‘वातावरण’ पर होता है।
जन्म से सम्बन्धित विकास को ‘वंशक्रम’ तथा समाज से सम्बन्धित विकास को ‘वातावरण’ कहते हैं।
❒ वंशानुक्रम (Inheritance) —
- वे सभी तत्व जो बालक के जन्म के समय से ही नहीं बल्कि उसके गर्भ में आने के समय से ही प्राप्त हो जाते हैं अर्थात् वे सभी तत्व जो बालक को उसके माता-पिता से प्राप्त होते हैं, ‘वंशानुक्रम’ कहलाता हैं।
- बालक को न केवल अपने माता-पिता से वरन् उसे अपने पहले के पूर्वजों से भी अनेक ‘शारीरिक’ और ‘मानसिक’ गुण प्राप्त होते हैं। इसी को हम वंशानुक्रम, वंश-परम्परा, पैतृकता, आनुवांशिकता आदि नामों से पुकारते हैं।
- प्राणिशास्त्रीय या जैविकीय विरासत एक पीढ़ी द्वारा दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किये जाने वाले विशिष्ट गुण अथवा लक्षण।
❒ आर.एस. वुडवर्थ के अनुसार — “वंशानुक्रम में वे सभी बातें आ जाती हैं, जो जीवन का आरंभ करते समय जन्म के समय नहीं वरन् गर्भाधान के जन्म से लगभग 9 माह पूर्व व्यक्ति में उपस्थित थी।”
❒ जेम्स ड्रेवर के अनुसार — ‘माता-पिता की शारीरिक एवं मानसिक विशेषताओं का संतानों में स्थानांतरण होना ही वंशानुक्रम है।’
❒ वातावरण (Environment) —
- वातावरण शब्द बहुत ही विस्तृत शब्द है। वातावरण से अभिप्राय उन परिस्थितियों से है जो बालक पर गर्भाधान (Conception) से लेकर मृत्यु तक अपना प्रभाव डालता है।
- वातावरण के लिए ‘पर्यावरण’ शब्द का भी प्रयोग किया जाता है।
- पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है-परि + आवरण [परि = चारों ओर तथा आवरण ढकने वाला] अर्थात् हम कह सकते हैं कि व्यक्ति के चारों ओर जो कुछ भी है, वह उसका वातावरण है। • इसमें वे सब तत्व सम्मिलित किए जा सकते हैं, जो व्यक्ति के जीवन और व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
- बाह्य वातावरण में वे सभी परिस्थितियाँ आती है, जो सामूहिक या मिश्रित रूप से बालक के विकास और व्यवहार को प्रभावित करती रहती है, वातावरण या पर्यावरण कहलाता है।
❒ एनास्टसी के अनुसार — “वातावरण वह वस्तु है, जो पित्र्येकों के अतिरिक्त प्रत्येक वस्तु को प्रभावित करती है।”
नोट — पित्र्येकों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरण आनुवंशिकता कहलाता है।
❒ स्टीफेन्स के अनुसार, “एक बच्चा जिस वातावरण में अधिक रहता है वह उसी प्रकार का बन जाता है जैसे चतुर माता-पिता की संतान भी चतुर हो जाती है।”
बाल विकास के सिद्धान्त – प्रवर्तक
मनोलैंगिक विकास सिद्धांत – फ्रायड
मनोसामाजिक सिद्धांत – इरिक एरिक्सन
नैतिक विकास सिद्धांत – कोहलबर्ग
सामाजिक-सांवेगिक पारिस्थितिकी सिद्धांत – यूरी ब्रोनफेनब्रेन्नर
भाषायी विकास सिद्धांत – नोम चोमस्की
सामाजिक-सांस्कृतिक विकास सिद्धांत – वाइगोत्स्की
संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत – जीन पियाजे
परिपक्वता का सिद्धांत – गैसेल
✦ कुछ महत्वपूर्ण तथ्य –
- सेमुअल स्माईल – चरित्र आदतों का संगठित पुंज है।
- भाषा का सापेक्षवादी सिद्धांत – व्हार्फ
- थैलेमस-शरीर की साधारण क्रिया पर नियंत्रण पाना थैलेमस कहलाता है।
- हाइपोथैलेमस – भावनाओं / संवेगों की अभिव्यक्ति पर नियंत्रण।
- 3R – लिखना, पढ़ना, गणना करना।
- 4H – मानसिक विकास (Head), भावात्मक विकास (Heart), क्रियात्मक विकास (Hand), शारीरिक विकास (Health)
- 3H का श्रेय/वर्तमान शिक्षा के विकास का श्रेय – पेस्टोलॉजी।
- क्रमबद्ध चरित्र लेखन विधि के प्रवर्तक- प्रेयर है। प्रेयर ने 1882 में इस विधि का प्रयोग क्रमबद्ध तरीके से किया।
- लम्बात्मक विधि के प्रवर्तक — कार्ल सी. गैरीसन
- प्रभाविकता व वियोग का नियम मेंडल ने दिया।
- भाव का त्रिविमीय सिद्धांत विलियम वुन्ट ने दिया।
- रूसो ने अपनी पुस्तक EMILE में बच्चों की शिक्षा का अध्ययन किया है। काल्पनिक शिष्य का नाम भी EMILE है।
- प्रथम बाल निर्देशन केन्द्र विलियम हीली – शिकागो 1909
- हैडो कमेटी रिपोर्ट का संबंध किशोरावस्था से है।
- किशोर की रूचियों में 15 वर्ष तक स्थिरता आ जाती है-के.के. स्ट्रांग।
- वर्ल्ड डाउन सिण्ड्रोम दिवस — 21 मार्च
- प्रभाविकता व वियोग का नियम मेंडल द्वारा दिया गया।
- प्रत्येक विकासात्मक अवस्था में समाज बालकों से कुछ उम्मीदें रखता है, जिसे सामाजिक प्रत्याशा कहते हैं, इसे हेविंगहर्स्ट ने विकासात्मक पाठ कहा है।
- विकासात्मक कार्य सिद्धांत का प्रतिपादन हेविंग हर्स्ट ने किया।
- 4 वर्ष के बालक में कल्पना की सजीवता पाई जाती है-कुप्पूस्वामी
- कोई भी दो बालक समान मानसिक योग्यता के नहीं हो सकते-हरलॉक।
- 15 से 16 वर्ष में शारीरिक विकास की गति का तेज होना, तारूण्य विकास लहर कहलाता है।
- जॉन डीवी के अनुसार स्कूल एक विशिष्ट वातावरण है, जहाँ बालक के वांछित विकास के लिए निश्चित जीवन व क्रियाएँ तथा व्यवहार प्रदान किए जाते हैं।
Nice