राजस्थान का इतिहास —  आमेर का इतिहास  

  राजस्थान का इतिहास —  आमेर का इतिहास  

✦ राजा मानसिंह / 1589 — 1614

• जन्म — 6 दिसम्बर 1550 को मौजमाबाद वर्तमान जयपुर में

• पिता — भगवानदास / भगवंतदास  • माता — भगवती

• जहांगीर भगवानदास को मानसिंह का चाचा व अक्कूदास/भक्कूदास को उसका पिता बताता था।

• अकबरनामा के अनुसार कुॅंवर मानसिंह 10 फरवरी 1562 ई. से ही अर्थात् अपनी 12 वर्ष की अवस्था से ही मुगल सेवा में रहा। उसने लगभग 52 वर्षों तक (1562 से 1614 तक ) मुगलों की सेवा की। इसका लालन पालन अकबर द्वारा ही किया गया।

• मानसिंह अकबर के दत्तक पुत्र के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ।

• अकबरनामा के अनुसार मानसिंह ने 67 युद्धों में भाग लिया।

• मानसिंह ने अकबर व उसके पुत्र सलीम उर्फ जहांगीर दोनों की सेवा की।

• अकबर की मानसिंह से पहली मुलाकात रतनपुरा नामक स्थान पर हुई, जो वर्तमान मे उत्तरप्रदेश के मऊ जिले में स्थित है।

• अकबर ने मानसिंह को ‘मिर्जा राजा व फर्जन्द’ की उपाधि प्रदान की। फर्जन्द का अर्थ बेटा होता है।

• 15 दिसम्बर 1589 को मानसिंह आमेर का शासक बना।

• मानसिंह का पहली बार राज्याभिषेक पटना में किया गया। दूसरी बार आमेर में किया गया।

• मानसिंह, अकबर के नवरत्नों में से एक था। और अकबर का सर्वाधिक विश्वस्त राजपूत शासक था।

• मानसिंह अकबर का सर्वाधिक मनसबदारी था। अकबर ने इसे 1605ई. में 7000 की मनसबदारी प्रदान की।

नोट — मिर्जा अजीज कोका भी 7000 मनसबदारी का शासक था।

✦ 1569 ई. का रणथम्भौर अभियान  —

• यह मानसिंह का प्र​थम सैन्य अभियान था।

• अकबर के रणथम्मभौर अभियान में 1569 ई. में सुर्जन सिंह हाड़ा को मुगल अधीनता स्वीकार करवाने में 

मानसिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें भगवंतदास ने भी मध्यस्था की।

•  अकबर ने रणथम्भौर का दुर्ग मेहतर खां को सौंपा था।

• मानसिंह को काबुल, बंगाल, बिहार इत्यादि जगह का सूबेदार नियुक्त किया गया।

• काबुल में रोशनाइयों के विद्रोह का दमन किया।

• मानसिंह ने सरनाल के युद्ध में भी भाग लिया। गुजरात के सरनाल का युद्ध, 1572 में मुगलों और मुहम्मद 

हुसैन मिर्ज़ा के बीच हुआ था।

• अप्रैल 1573 में डूॅंगरपुर के शासक आसकरण को परास्त किया। इस संघर्ष में आसकरण के दो भतीजे बाघा और दुर्गा वीरगति को प्राप्त हुए।

— इस युद्ध के बाद ​कुॅंवर मानसिंह उदयपुर गया और वहॉं महाराणा प्रताप से मुलाकात की।

• अकबर ने मानसिंह को महाराणा प्र​ताप के पास मुगल अधीनता स्वीकार के प्रस्ताव से साथ दूसरे शिष्टमंडल के रूप में भेजा। जो असफल रहा।

  • हल्दीघाटी के युद्ध में मानसिंह ने मुगल सेना का नेतृत्व किया।
  • हल्दीघाटी युद्ध के परिणाम पर अकबर मानसिंह से नाराज होकर उसकी मनसबदारी छीन ली। और दरबार में उसके आने पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • कुछ समय बाद अकबर ने पुन: मानसिंह की बहाली कर दी। उसे काबुल, बिहार, उड़ीसा, बंगाल, लाहौर प्रांत आदि का सुबेदार नियुक्त किया गया।

✦ मानसिंह की काबूल की सूबेदारी / 1585 से 1587

  • कुंवर मान सिंह को 1585 ई. में काबुल के सूबेदार या वायसराय के रूप में नियुक्त किया गया था।
    नोट — मिर्जा राजा मान सिंह प्रथम (21 दिसंबर 1550 – 6 जुलाई 1614) 1589 से 1614 तक अंबर के 24वें महाराजा थे। उन्होंने 1595 से 1606 तक तीन कार्यकाल के लिए बंगाल के सूबेदार और 1585 से 1586 तक काबुल के सूबेदार के रूप में भी कार्य किया।
  • अकबर ने मानसिंह को सर्वप्रथम काबुल का सूबेदार बनाया था।
    नोट — अकबर ने स्वयं सिंध नदी के किनारे कुछ दिन ठहर कर कुँवर मानसिंह को काबुल का शासनकर्ता नियुक्त किया।
  • अकबर ने शहजादे मुराद को हाकिम मिर्जा को दबाने काबुल भेजा और इसके साथ मानसिंह भी काबूल गया।
  • 1581 में मानसिंह ने काबुल के हाकिम मिर्जा को पराजित किया।
  • हाकिम की लौटती सेना का मानसिंह ने सिन्धु नदी तक पीछा किया और वह पुन: लाहौर चला गया। अकबर ने इस से प्रसन्न होकर मानसिंह का मनसब 5000 सवार व 5000 जात का कर दिया।
  • मानसिंह ने यहां पांच कबीलो / युसुफजई, रोशनिया पर नियंत्रण स्थापित किया। इसी के तहत आमेर का झंड़ा पंचरंगा हुआ।
  • 30 जुलाई 1585 को मिर्जा की मृत्यु के उपरांत मानसिंह के माध्यम से काबुल पर मुगल सत्ता स्थापित हो गई।

✦ मानसिंह की बिहार की सुबेदारी / 1587 से 1594

✯ रोहतास नामक जगह से राजा मान सिंह दोनों प्रदेशों बंगाल व बिहार में शासन करते थे। 1587 ई. में मुगल सम्राट अकबर ने राजा मान सिंह को बिहार व बंगाल का संयुक्त सूबेदार बनाकर रोहतास भेजा था।

❒ एक नजर बिहार के रोहतास जिले के इतिहास पर —

  • रोहतास वर्तमान में बिहार का जिला है। रोहतास से बिहार-बंगाल की शासन-सत्ता की बागडोर संभाली जाती थी। कभी बिहार-बंगाल की संयुक्त राजधानी रोहतास हुआ करती थी। यहीं से राजा मान सिंह दोनों प्रदेशों में शासन करते थे।
  • 1587 ई. में मुगल सम्राट अकबर ने राजा मान सिंह को बिहार व बंगाल का संयुक्त सूबेदार बनाकर रोहतास भेजा था। राजा मान सिंह ने उसी वर्ष रोहतासगढ़ को प्रांतीय राजधानी घोषित किया था।
  • अकबर के शासनकाल में रोहतास सरकार थी जिसमें सात परगना शामिल थे। 1784 में तीन परगना को मिलाकर रोहतास जिला बनाया गया।
  • 22 मार्च 1912 को बंगाल प्रेसिडेंसी से अलग होकर बिहार स्वतंत्र राज्य बना और उसकी राजधानी पटना बनी। हालांकि 1935 में उड़ीसा व 2000 में झारखंड बिहार अलग होकर स्वतंत्र राज्य बने।

✯ 1589 में मानसिंह के पिता की मृत्यु के उपरांत प्रथम बार यहीं बिहार में मानसिंह का राज्याभिषेक हुआ।
नोट — दूसरी बार राज्याभिषेक आमेर में हुआ।
✯ बिहार की सूबेदारी के दौरान मानसिंह ने 1590 ई. में उड़ीसा के शासक कतलु खां और उसके पुत्र नासिर खां को मुगल अ​धीनता स्वीकार करवाई।
✯ मानसिंह ने बिहार के रोहतसगढ़ में कुछ महलों का निर्माण करवाया।

❒ एक नजर सूबेदार शब्द पर —

  • सूबेदार , जिसे नाजिम या अंग्रेजी में ” सूबा ” के नाम से भी जाना जाता है, बंगाल के खिलजी राजवंश , मामलुक राजवंश , खिलजी राजवंश , तुगलक राजवंश और के दौरान एक सूबा (प्रांत) के गवर्नर के पदनामों में से एक था।
  • मुगल काल में जिन्हें बारी-बारी से ‘साहिब-ए-सुबह’ या नाजिम के नाम से जाना जाता था।
  • सूबेदार शब्द फ़ारसी मूल का है।

✦ मानसिंह द्वारा करवाया गया निर्माण कार्य —

  • 1592 में आमेर महल का निर्माण करवाया। और आमेर दुर्ग बनवाना शुरू करवाया।
  • आमेर फोर्ट (आमेर का किला) जिसे आम्बेर का किला भी कहा जाता है। यह राजस्थान की राजधानी जयपुर के आमेर क्षेत्र में एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है।
  • यह जयपुर जिले के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में से एक है। आमेर के विकसित होने से पूर्व यहाँ मीणा जनजाति के लोग निवास करते थे।
  • इन्हें कच्छवाह राजपूतों ने बाद में अपने अधीन कर लिया। इन्हीं कच्छवाह राजपूतों के महान राजा महाराजा मान सिंह ने आमेर के दुर्ग का निर्माण कराया था।
  • यह दुर्ग व महल अपने कलात्मक विशुद्ध हिन्दू वास्तु शैली के घटकों के लिये भी जाना जाता है। दुर्ग की विशाल प्राचीरों, द्वारों की शृंखलाओं एवं पत्थर के बने रास्तों से भरा ये दुर्ग पहाड़ी के ठीक नीचे बने मावठा सरोवर को देखता हुआ प्रतीत होता है।
  • किले का नाम — आमेर फोर्ट • स्थापना —1512
  • स्थापना करने वाले राजा — राजा मान सिंह • नगर — जयपुर •राज्य — राजस्थान
  • प्राचीन नाम — अम्बावती, अमरपुरा तथा अमरगढ़ का किला
  • सन 1600 में जयगढ़ दुर्ग की नींव रखीं।
    नोट — जयगढ़ दुर्ग को ईगल दुर्ग / चिल्ह का टीला भी कहा जाता है।
  • जयगढ़ दुर्ग का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने व मरम्मत का कार्य जयसिंह द्वित्तीय ने करवाया।

आमेर दुर्ग के बारे में विस्तृत जानकारी —

✯ नामकरण —

  • आमेर फोर्ट को यह नाम इसके समीप चील के टीले नाम की पहाड़ी पर स्थित अम्बिकेश्वर मंदिर से मिला है।
  • अम्बिकेश्वर भगवान शिव के अवतार का नाम है। भगवान शिव के इस अवतार की इस मंदिर में पूजा की जाती है।
  • इतिहासकारों का ऐसा भी मानना है कि आमेर के दुर्ग को यह नाम देवी अम्बा के पर्यायवाची शब्द अम्बिका से मिला है।

✯ आमेर का प्राचीन नाम —

  • आमेर फोर्ट को आमेर से पहले तीन प्रसिद्द नामों से जाना जाता था ये तीन प्राचीन नाम आमेर से ही मिलते जुलते थे।
  • ये तीन नाम थे: अम्बावती, अमरपुरा तथा अमरगढ़ का किला।
  • कालान्तर में लोगों के द्वारा इस क्षेत्र को आमेर का किला कहा जाने लगा और इस स्थान का नाम फिर आमेर ही पड़ गया।
  • इस कारण से समय के साथ साथ इस किले का नाम भी आमेर का किला ही पड़ गया।

✯ आमेर का किला किसने बनवाया —

  • आमेर के किले का निर्माण सन 1512 में कच्छप राजपूत राजा / कछवाहा राजा महाराजा मान सिंह ने कराया था। जयसिंह प्रथम ने इसका विस्तार किया।
  • अगले 140 वर्षों में कछवाहा राजपूत राजाओं द्वारा आमेर दुर्ग में बहुत से सुधार एवं प्रसार किये गए और अन्ततः सवाई जयसिंह द्वितीय के शासनकाल में 1727 में इन्होंने अपनी राजधानी नवरचित जयपुर नगर में स्थानांतरित कर ली।

✯ आमेर के किले का निर्माण एवं इसका रोचक इतिहास —

  • वर्तमान का आमेर महल 16वीं शताब्दी में बनवाया गया था जो वहां के राजाओं के निवास के लिए पहले से ही बने महल का एक विस्तृत रूप था।
  • यहाँ का पुराना महल जिसे कादिमी महल के नाम से जाना जाता है, वह भारत के सबसे पुराने मौजूद महलों में से एक है।
  • यह प्राचीन महल आमेर महल के पीछे स्थित घाटी में बना हुआ है। हालांकि इस समय के बहुत से महल और दुर्ग ध्वंस कर दिये गए है। हालांकि 16वीं शताब्दी का आमेर दुर्ग एवं निहित महल परिसर जिसे राजपूत महाराजाओं ने बनवाया था, जो कि भली भांति संरक्षित है।

✯ आमेर के किले की अनूठी वास्तुकला एवं संरचना —

  • भारत में, राजस्थान के किलों को बेहतरीन वास्तुकला के लिए जाना जाता है। युद्धों की पूर्वव्यस्तता के बावजूद राजपूत, कला और वास्तुकला के महान संरक्षक थे।
  • उनके द्वारा बनाए गए कई किलो में से एक, आमेर किला सबसे शानदार हैं।
  • यह किला अरावली पर्वतमाला पर स्थित है, जो किले की बाहरी संरचना के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करता है।
  • आमेर का इतिहास लड़ाइयों से भरा पड़ा है। वर्तमान में क़िले के अंदर रखी तोपों ने घेराबंदी के दौरान इसकी सुरक्षा की थी। इन घेराबंदियों को, ‘आमेर का समामेलन निर्णायक माना जाता है।
  • राजपूत किलों और महलों की बहुत ही जटिल संरचना होती है। आमेर किले की वास्तुकला स्वदेशी और मुगल, दोनों, शैलियों का एक सुंदर समिश्रण है। किले के प्रांगण के अंदर महाराजा मान सिंह के महल का निर्माण स्वदेशी शैली में किया गया था।
  • आमेर के किले के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और सफ़ेद संगममरमर का इस्तेमाल किया गया था।
  • कीमती शीशे, पत्थर और कठिन नक्काशी का इस्तेमाल आमेर के दुर्ग की सुंदरता को अधिक बढ़ाने के लिए किया गया है।

✯ सुख निवास — राजस्थान के इस विशाल किले के अंदर बने दीवान-ए-आम के ठीक सामने बेहद सुंदर सुख निवास बना हुआ है, जो कि इस किले के प्रमुख आर्कषणों में से एक है।

  • सुख निवास के दरवाजे चंदन के हैं, जिसे हाथी के दांतो से सजाया गया है।
  • इतिहासकारों की माने तो इस किले के परिसर में बने सुख निवास में सम्राट अपनी रानियों के साथ अपना कीमती समय बिताते थे। इसी वजह से इसे सुख निवास के रुप में जाना जाता है।

✯ शीश महल —

  • आमेर का किला अपने शीश महल के कारण भी प्रसिद्ध है।
  • इसकी भीतरी दीवारों, गुम्बदों और छतों पर शीशे के टुकड़े इस प्रकार जड़े गए हैं कि केवल कुछ मोमबत्तियाँ जलाते ही शीशों का प्रतिबिम्ब पूरे कमरे को प्रकाश से जगमग कर देता है।
  • सुख महल व किले के बाहर झील बाग का स्थापत्य अपूर्व है।
  • इन्हीं महलों में प्रवेश द्वार के अन्दर डोली महल से पूर्व एक भूल-भूलैया है, जहाँ राजा महाराजा अपनी रानियों और पट्टरानियों के साथ आँख-मिचौनी का खेल खेला करते थे।
  • कहते हैं महाराजा मान सिंह की कई रानियाँ थीं और जब राजा मान सिंह युद्ध से वापस लौटकर आते थे तो यह स्थिति होती थी कि वह किस रानी को सबसे पहले मिलने जाएँ। इसलिए जब भी कोई ऐसा मौका आता था तो राजा मान सिंह इस भूल-भूलैया में इधर-उधर घूमते थे और जो रानी सबसे पहले ढूँढ़ लेती थी उसे ही प्रथम मिलन का सुख प्राप्त होता था।

✯ गणेश पोल —

  • गणेश पोल, भी आमेर के इस विशाल किले में बनी मुख्य ऐतिहासिक संरचनाओं में से एक है।
  • किले के अंदर बने दीवान-ए-आम के दक्षिण की तरफ गणेश पोल स्थित है।
  • गणेश पोल का निर्माण राजा जय सिंह द्धितीय ने करीब 1611 से 1667 ईसवी के बीच करवाया था।
  • गणेश पोल, राजस्थान की शान माने जाने वाले इस विशाल दुर्ग के बने 7 बेहद आर्कषक औऱ सुंदर द्धारों में से एक है।
  • इस शानदार द्धार के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि, जब कोई भी सम्राट किसी युद्द को जीतकर आते हैं, किले के इस मुख्य द्धार से प्रवेश करते थे, जहां फूलों की वर्षा के साथ राजाओं का स्वागत किया जाता था।

✯ दिल आराम बाग —

  • राजस्थान के इस सबसे विशाल दुर्ग के अंदर बना दिल आराम बाग इस किले की शोभा को और अधिक बढा़ रहा है।
  • इस शानदार बाग का निर्माण करीब 18 वीं सदी में किया गया था।
  • इस रमणीय बाग में सुंदर सरोवर, फव्वारे बनाए गए हैं।
  • दिल आराम बाग की सुंदरता को देखकर हर कोई मंत्रुमुग्ध हो जाता है।
  • इसका रमणीय आर्कषण दिल को सुकून देने वाला है, इसलिए इसका नाम दिल आराम बाग रखा गया है।

✯ दीवान-ए-खास —

  • दीवान-ए-खास भी इस भव्य किले के प्रमुख ऐतिहासिक संरचनाओं और आर्कषणों में से एक है। यह मनोरम संरचना मुख्य रुप से सम्राटों के मेहमानों द्धारा बनवाईं गईं थी, इसमें सम्राट अपने खास मेहमानों एवं दूसरे राजाओं के राजदूतों से मिलते थे।

✯ चांद पोल दरवाजा —

  • जयुपर के पास स्थित इस विशाल आमेर दुर्ग में बना चांद पोल दरवाजा भी इस किले की प्रमुख ऐतिहासिक संरचनाओं में से एक माना जाता था।
  • चांद पोल दरवाजा, पहले आम लोगों के प्रवेश के लिए था। यह आर्कषक दरवाजा, इस विशाल किले के पश्चिम की तरफ बना हुआ है।
  • इस दिशा में चंद्रमा उदय की वजह से इसका नाम चांद पोल रखा गया था।

✯ आमेर के किले का भूगोल —

❒ प्रवेश द्वार —

  • यह महल चार मुख्य भागों में बंटा हुआ है जिनके प्रत्येक के प्रवेशद्वार एवं प्रांगण हैं।
  • मुख्य प्रवेश सूरज पोल द्वार से है जिससे जलेब चौक में आते हैं।
  • जलेब चौक प्रथम मुख्य प्रांगण है तथा बहुत बड़ा बना है। इसका विस्तार लगभग 100 मी लम्बा एवं 65 मी. चौड़ा है।
  • प्रांगण में युद्ध में विजय पाने पर सेना का जलूस निकाला जाता था। ये जलूस राजसी परिवार की महिलायें जालीदार झरोखों से देखती थीं इस द्वार पर सन्तरी तैनात रहा करते थे क्योंकि ये द्वार दुर्ग प्रवेश का मुख्य द्वार था।
  • यह द्वार पूर्वाभिमुख था एवं इससे उगते सूर्य की किरणें दुर्ग में प्रवेश पाती थीं, अतः इसे सूरज पोल कहा जाता था। सेना के घुड़सवार आदि एवं शाही गणमान्य व्यक्ति महल में इसी द्वार से प्रवेश पाते थे।

❒ प्रथम प्रांगण —

  • जलेबी / जलेब चौक से एक शानदार सीढ़ीनुमा रास्ता महल के मुख्य प्रांगण को जाता है। यहां प्रवेश करते हुए दायीं ओर शिला देवी मन्दिर का रास्ता है।

❒ द्वितीय प्रांगण —

  • प्रथम प्रांगण से मुख्य सीढ़ी द्वारा द्वितीय प्रांगण में पहुँचते हैं, जहां दीवान-ए-आम बना हुआ है।
  • इसका प्रयोग जनसाधारण के दरबार हेतु किया जाता था। दोहरे स्तंभों की कतार से घिरा दीवान-ए-आम संगमर्मर के एक ऊंचे चबूतरे पर बना लाल बलुआ पत्थर के 27 स्तंभों वाला हॉल है।
  • इसके स्तंभों पर हाथी रूपी स्तंभशीर्ष बने हैं एवं उनके ऊपर चित्रों की श्रेणी बनी है।

❒ तृतीय प्रांगण —

  • तीसरे प्रांगण में महाराजा, उनके परिवार के सदस्यों एवं परिचरों के निजी कक्ष बने हुए हैं।
  • इस प्रांगण का प्रवेश गणेश पोल द्वार से मिलता है। गणेश पोल पर उत्कृष्ट स्तर की चित्रकारी एवं शिल्पकारी है।
  • इस प्रांगण में दो इमारतें एक दूसरे के आमने-सामने बनी हैं। इनके बीच में मुगल उद्यान शैली के बाग बने हुए हैं। प्रवेशद्वार के बायीं ओर की इमारत को जय मन्दिर कहते हैं।

❒ चतुर्थ प्रांगण —

चौथे प्रांगण में राजपरिवार की महिलायें (जनाना) निवास करती थीं।

  • इनके अलावा रानियों की दासियाँ तथा राजा की उपस्त्रियाँ भी यहीं निवास किया करती थीं।
  • सभी कक्ष एक ही गलियारे में खुलते थे।

❒ आमेर के किले पर राज करने वाले राजा —

  • आमेर किले के निर्माण की शुरुआत 16वीं शताब्दी के अंत में राजा मान सिंह ने की थी। हालांकि, जो निर्माण अभी है उसे पूरा सवाई जय सिंह द्वितीय और राजा जय सिंह प्रथम द्वारा पूरा किया गया था।
  • राजा मान सिंह से लेकर सवाई जय सिंह द्वितीय और राजा जयसिंह प्रथम तक के शासन काल में इसे पूरा होने में 100 साल का समय लग गया था।

❒ आमेर के किले पर राज करने वाले प्रमुख शासकों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं —

• राजा मान सिंह
• राजा सवाई जय सिंह द्वितीय
• राजा जय सिंह प्रथम
• राजा मिर्जा जय सिंह

❒ आमेर के किले को यूनेस्को विश्व धरोहर के रूप में घोषित किया जाना

  • राजस्थान सरकार ने जनवरी 2011 में आमेर को विश्व धरोहर में शामिल किए जाने का प्रस्ताव भेजा था।
  • उसके बाद UNESCO के आंकलन समिति के सदस्य जयपुर आए। इन्होंने राजस्थान सरकार के मंत्रियों और अधिकारीयों के साथ बैठक की।
  • इसके बाद मई 2013 को UNESCO द्वारा आमेर फोर्ट को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर लिया गया।

❒ आमेर का इतिहास से जुड़े रोचक तथ्य इस प्रकार है —

  • राजस्थान के इस सबसे विशाल आमेर के किले को 16 वीं शताब्दी में राजा मानसिंह द्धारा बनवाया गया था। इस विशाल किले का नाम अंबा माता के नाम पर रखा गया था।
  • हिन्दू एवं मुगलकालीन वास्तुशैली से निर्मित यह अनूठी संरचना अपनी भव्यता और आर्कषण की वजह से साल 2013 में यूनेस्को द्धारा वर्ल्ड हेरिटेज की साइट में शामिल की गई थी।
  • भारत के सबसे महत्वपूर्ण किलों में से एक इस आमेर के किले के परिसर में बनी महत्वपूर्ण संरचनाओं में शीश महल, दीवान-ए-आम, सुख निवास आदि शामिल हैं।
  • जयपुर के पास स्थित इस विशाल किले का निर्माण विशेष तौर पर राजशाही परिवार के रहने के लिए किया गया था। इस किले के परिसर में बनी ऐतिहासिक संरचनाओं में शीश महल सबसे मुख्य है। जो कि अपनी अद्भुत नक्काशी के लिए जाना जाता है, इसके साथ ही शीश महल दुनिया का सबसे बेहतरीन कांच घर भी माना जाता है।
  • जयपुर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आमेर का किला कई शताब्दी पूर्व कछवाहों की राजधानी हुआ करती थी, लेकिन जयपुर शहर की स्थापना के बाद, नवनिर्मित शहर जयपुर कछवाहों की राजधानी बन गई थी।
  • आमेर के इस विशाल दुर्ग के अंदर 27 कचेहरी नामक एक भव्य इमारत भी बनी हुई है, जो कि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है।
  • भारत के महत्वपूर्ण किलों में शामिल आमेर के किले के सामने माओटा नामक एक बेहद खूबसूरत और आर्कषक झील भी है, जो कि इस किले की शोभा को और अधिक बढ़ा रही है।
  • साल 2007 के आंकड़े के मुताबिक उस साल यहां करीब 15 लाख से ज्यादा पर्यटक आमेर के किले की खूबसूरती को देखने आए थे।
  • इस विशाल दुर्ग के अंदर ही पर्यटकों के लिए एक आर्कषक बाजार भी लगता है, जहां पर सैलानी रंग-बिरंगे पत्थर एवं मोतियों से बनी वस्तुओं के अलावा आर्कषक हस्तशिल्प की वस्तुएं खरीद सकते हैं।

✦ मानसिंह द्वारा करवाये गए निर्माण कार्य —

  • 1592 में आमेर महल (आमेर दुर्ग) बनवाया।
  • 1600 में जयगढ़ दुर्ग / ईगल दुर्ग /चिल्ह का टीला की नींव रखी।
  • नींव मानसिंह ने रखी, निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया और मरम्मत जयसिंह-।। ने करवाई।
  • इस दुर्ग में एक ‘विजयगढ़ी’ नाम का एक छोटा सा दुर्ग और है।
  • आमेर में शिलादेवी का मन्दिर बनवाया, जो कच्छवाह वंश की ईष्टदेवी है।
    ☞ शिला देवी मंदिर भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर नगर में आमेर महल में स्थित एक मंदिर है।
  • जयपुर की प्रसि‌द्ध मानसागर झील का निर्माण करवाया । इस झील का वर्तमान स्वरूप सवाई जयसिंह द्वारा दिया गया।
    ☞ मान सागर झील एक कृत्रिम झील है, जो भारत में राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर में स्थित है ।
    ☞ इसका नाम आमेर के तत्कालीन शासक राजा मान सिंह के नाम पर रखा गया है , जिन्होंने इसे 1610 में द्रव्यवती नदी पर बाँध बनाकर बनवाया।
    ☞ जलमहल इस झील के मध्य में स्थित है।
  • वृन्दावन में श्री गोविन्द देव जी का मन्दिर बनवाया। इसे राधा गोविंद का मंदिर कहते है।
    ☞ राजा मान सिंह ने 1590 में इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

नोट — जयपुर में गोविन्द देव जी का मंदिर 1735 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह द्वितीय द्वारा बनवाया और इसमें भगवान कृष्ण के रूप गोविंद देव जी की मूर्ति है, जो आमेर के कछवाहा राजवंश के मुख्य देवता थे।
☞ मंदिर की अनूठी विशेषताओं में से एक गोविंद देवजी की रंगीन मूर्ति है, जिसे बज्रकृत के नाम से जाना जाता है।

  • भवानीशंकर मन्दिर का निर्माण बैंकटपुर (पटना) में करवाया था।
    ☞ यह मंदिर बिहार की राजधानी पटना से सटे बैकटपुर गांव में स्थित है। इसे प्राचीन और ऐतिहासिक शिव मंदिर जिसे श्री गौरीशंकर बैकुंठ धाम के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां शिवलिंग रूप में भगवान शिव के साथ माता-पार्वती भी विराजमान हैं. शिवलिंग में 112 लिंग कटिंग है जिसे द्वादश शिवलिंग भी कहा जाता है. अगर इस मंदिर के बारे में अब तक आप नहीं जानते हैं तो पढ़ ले यह पूरी स्टोरी.

पटना से सटे खुसरूपुर प्रखंड स्थित बैकटपुर गांव में यह प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर का निर्माण मुगल शासक अकबर के सेनापति मान सिंह ने कराया था.

  • बैराठ के कस्बों में पंचमहलों का निर्माण करवाया।
  • आमेर में जगत शिरोमणि जी का मन्दिर का निर्माण मानसिं​ह की पत्नी कणकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की याद में करवाया। इस मन्दिर में कृष्ण की वही मूर्ति स्थापित है जिसकी पूजा स्वयं मीराबाई करती थी।
  • मानसिंह यह मूर्ति द्वारका (गुजरात) से लाए थे। इसे ‘मीरा मन्दिर’ भी कहते हैं। इसके निर्माण में मुगल शैली का प्रभाव दिखाई देता है।
  • कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह मूर्ति चित्तौड से लाई गई थी।
  • अकबर ने जगतसिंह को ‘रायजादा’की उपाधि दी।
  • मानसिंह के छोटे भाई माधोसिंह ने अलवर व दौसा के बीच 1631 में भानगढ नामक नगर बसाया।

❒ मानसिंह के दरबारी कवि-

✯ हाया बारहठ — यह मानसिंह का प्रमुख दरबारी कवि था।
✯ ​कवि जगन्नाथ — इन्होंने ‘मानसिंह कीर्ति मुक्तावली’ की रचना की।
✯ मुरारीदान — ‘मान—प्रकाश’ की रचना की।
✯ हरिना​थ ✯ सुंदरनाथ

❒ मानसिंह के दरबारी कवि जो मानसिंह के भाई माधोसिंह के आश्रय में रहे —

✯ पुण्वरिक विठ्ठल — रागमंजरी, राग चन्द्रिका, राग चन्द्रोदय, नर्तक निर्णय व दूनी प्रकाश की रचनाएं इन्होंने की।

✯ दलपतराय — इन्होंने पत्र प्रशस्ति व पवन पश्चिम की रचना की।

  • मानसिंह के शासनलाल में दादू दयाल ने वाणी की रचना की थी।
  • मानसिंह के अकबर के कई दरबारी कवियों (दुरसा, होलराय, बरहमभट्ट, गंग) से सम्पर्क थे।
  • मानसिंह ने अकबरनगर (बंगाल में) और मानपुर (बिहार में) के नगरों की स्थापना की।
  • अकबर की मृत्यु (24 अक्टूबर 1605) के बाद जहांगीर व मानसिंह के मध्य अनबन पैदा हो गई।
  • तनावों के कारण 1614 में इलिचपुर (महाराष्ट्र) में मानसिंह की मृत्यु हो गई।
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