राष्ट्रीय आय (National Income)
❖ एक वित्तीय वर्ष में एक देश के सामान्य निवासियों द्वारा अर्जित कारक आय का कुल योग ही राष्ट्रीय आय है। अर्थात् राष्ट्रीय आय में अर्थव्यवस्था के सार्वजनिक तथा निजी दोनों क्षेत्रों की आय सम्मिलित की जाती है।
❖ अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय में केवल कारक आय शामिल की जाती है। अत: स्पष्ट है कि ”देश में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को राष्ट्रीय आय कहते हैं।”
❖ किसी देश में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित समस्त प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को ही सकल राष्ट्रीय आय (GNI) कहते हैं। यह देश में वस्तुओं तथा सेवाओं की उत्पति का वार्षिक योग होता है। इसमें विदेशों से अर्जित आय भी शामिल होती है।
❖ अर्थशास्त्री मार्शल के अनुसार — ”किसी देश में श्रम तथा पूंजी उसके प्राकृतिक साधनों पर प्रयोग करके प्रतिवर्ष भौतिक और अभौतिक वस्तुओं तथा समस्त प्रकार की सेवाओं का एक निश्चित विशुद्ध योग उत्पन्न करते है। यही योग उस देश की सही वार्षिक आय है।”
❖ प्रो. पीगू के अनुसार — ”राष्ट्रीय आय समाज की वस्तु — परक आय का वह भाग है, जिसे मु्द्रा में मापा जा सकता हो और इस आय में विदेशों से प्राप्त आय भी शामिल होती है।”
❖ फिशर के अनुसार — ”राष्ट्रीय आय में केवल वे वस्तुएं एवं सेवाएं आती हैं जो अन्तिम रूप से उपभोक्ताओं को उपयोग के लिए प्राप्त होती है।”
✧ राष्ट्रीय आय की विभिन्न अवधारणाएं –
❖ राष्ट्रीय आय की मूलत: दो धारणाएं हैं—
✧ राष्ट्रीय उत्पाद ✧ घरेलू उत्पाद
❖ समग्र राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित विभिन्न अवधारणाएं निम्नांकित हैं—
1. उद्गम के स्त्रोत के आधार पर ( Origin of Production)-
(a) सकल राष्ट्रीय उत्पाद ( Gross National Product : GNP):— किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित समस्त अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार मूल्यों के कुल योग को सकल राष्ट्रीय उत्पादन कहते है इसमें विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय भी शामिल की जाती है।
दूसरे शब्दों में, सभी प्रकार की अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा को उनके बाजार मूल्यों से गुणा करके बाजार मूल्य का कुल जोड़ ही सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहलाता है। सकल राष्ट्रीय उत्पाद में देशवासियों द्वारा देश के बाहर उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य को भी शामिल किया जाता है।
(b) सकल घरेलू उत्पाद ( Gross Domestic Product : GDP ):— सकल राष्ट्रीय उत्पाद को ज्ञात करने के लिए विदेशों में निवेशों तथा विदेशों में प्रदान की गई अन्य साधन सेवाओं के लिए देश के नागरिकों को विदेशों में प्राप्त हुई आय को सकल घरेलू उत्पाद में जोड़ देना चाहिए। इसी प्रकार देश के अन्दर विदेशियों द्वारा उत्पादित आय को सकल घरेलू उत्पाद में से घटा दिया जाना चाहिए।
2. उत्पाद मूल्य के आधार पर (बाजार मूल्य पर) :—
(a) GNPMP (बाजार मूल्य पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद)
(b) GDPMP (बाजार मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद)
3. उत्पाद मूल्य के आधार पर (साधन लागत पर) –
(a) GNPFC (साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद)
(b) GDPFC (साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद)
4. शुद्ध अवधारणा (Net Concepts) –
सकल मूल्य में से चाहे वह बाजार मूल्य पर हो या साधन लागत पर, ह्रास घटा दें तो शुद्ध अवधारणाएं प्राप्त होंगी —
(a) GNPMP — मूल्य ह्रास = NNPMP
(b) GDPMP — मूल्य ह्रास = NDPMP
(c) GNPFC — मूल्य ह्रास = NNPFC
(d) GDPFC — मूल्य ह्रास = NDPFC
5. व्यय योग्यता के आधार पर आय की धारणा –
(I) राष्ट्रीय व्यय योग्य आय ( National Disposable Income )
= GNPMP.+ शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण
(II) व्यक्तिगत व्यय योग्य आय ( Personall Disposable Income )
= व्यक्तिगत आय.— व्यक्तिगत रूप से दिये गये कर तथा फीस।
❖ राष्ट्रीय उत्पादों की विभिन्न धारणाओं से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाएं —
1. GNPMP — परोक्षकर + सब्सिडी = GNPFC
2. GDPMP — परोक्षकर + सब्सिडी = GDPFC
3. GNPMP — ह्रास = NNPMP
4. GDPMP — ह्रास = NDPMP
5. GNPMP — ह्रास—परोक्षकर + सब्सिडी = NNPFC
6. GDPMP — ह्रास—परोक्षकर + सब्सिडी = NDPFC
7. NNPMP — परोक्षकर + सब्सिडी या शुद्ध परोक्षकर = NNPFC
8. NDPMP — शुद्ध परोक्षकर = NNPFC
9. GNPMP = GDPMP + शुद्ध विदेशी साधन आय हस्तान्तरण
10. GDPMP. = GNPMP — शुद्ध विदेशी साधन आय हस्तान्तरण
11. राष्ट्रीय व्यय योग्य आय( NDI) = .GNPMP + शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण
12. NDI का मूल्य GNPMP से अधिक, कम या बराबर हो सकता है।
13. GDI = कुल अन्तिम उपभोग + कुल बचत
❖ NNPFC को ही राष्ट्रीय आय कहते हैं।
✧ राष्ट्रीय आय मापने की विधियां –
❖ साइमन कुजनेट्स ने राष्ट्रीय आय के मापन की तीन विधियां बताई हैं —
(1) उत्पादन विधि :— इस पद्धति में देश में एक वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। राष्ट्रीय आय की गणना करने के लिए सकल घरेलू उत्पाद के मूल्यों में विदेशों से अर्जित शुद्ध आय को जोड़ा जाता है।
(2) आय विधि :— इस पद्धति में विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यक्तियों तथा व्यावसायिक उपक्रमों की शुद्ध आय का योग प्राप्त किया जाता है। इन सभी आय के योग के आधार पर कुल आय का अनुमान लगाया जाता है।
(3) व्यय विधि :— इसे उपभोग बचत विधि भी कहते हैं। इसके अनुसार आय या तो उपभोग पर व्यय की जाती है या बचत पर। अत: एक वर्ष में देश में किये गये कुल उपभोग व कुल बचतों के योग को राष्ट्रीय आय कहते है।
❖ भारत जैसे देश में राष्ट्रीय आय की गणना उत्पादन विधि व आय विधि को मिलाकर की जाती है।
✧ राष्ट्रीय व्यय योग्य आय ( National Disposable Income ) –
(I) सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय = अंतिम उपभोग व्यय + सकल बचत
(II) निवल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय = अंतिम उपभोग व्यय + निवल बचत
❖ निजी आय — निजी उद्यमों या उत्पादक इकाइयों तथा घरेलू क्षेत्र को प्राप्त आय है, जो कर के पूर्व की है।
= .NNPFC में निजी क्षेत्र का हिस्सा + सरकार के निजी क्षेत्र को प्राप्त निवल चालू हस्तान्तरण + शेष विश्व से चालू हस्तान्तरण।
❖ व्यक्तिगत आय = निजी आय — निजी फर्मों के लाभ पर — निजी फर्मों द्वारा अपने पास रोकी गयी आय + निजी फर्मों से प्राप्त विविध चालू हस्तान्तरण।
❖ व्यक्तिगत व्यय योग्य आय :— यह वह अधिकतम आय है जिसे परिवार क्षेत्र, किसी वर्ष में उपभोग वस्तुओं तथा सेवाओं के क्रय पर ऋण देयता में वृद्धि किये बिना व्यय कर सकता है।
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = व्यक्तिगत आय — व्यक्तिगत कर, फीस अथवा
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = निजी उपभोग व्यय + घरेलू बचत।
✧ भारतीय राष्ट्रीय आय के आंकलन से सम्बद्ध महत्त्वपूर्ण तथ्य ✧
❖ CSO सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय एक भाग है।
❖ इस समय राष्ट्रीय आय को व्यक्त करने के लिए भारत में 2011 — 12 को आधार वर्ष के रूप में प्रयोग में लिया जाता है।
❖ स्वतंत्रता से पूर्व राष्ट्रीय आय के अनुमान का प्रथम प्रयास दारा भाई नौरोजी ने 1868 ई. में किया।
❖ राष्ट्रीय आय का प्रथम वैज्ञानिक अनुमान वी.के.आर.वी. राव ने लगाया।
❖ प्राथमिक क्षेत्र की आय के अनुमान के लिए उत्पाद विधि या मूल्य वर्धन विधि को प्रयोग में लेते हैं।
❖ 1967 में पहली बार विदेशी लेन — देन को राष्ट्रीय आकलन में जोड़ा गया।
❖ 1950 में राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (NSS) की स्थापना की गयी।
❖ 1970 में इसका पुनर्गठन किया गया और जनवरी 1971 में राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Office – NSSO) की स्थापना की गयी।
❖ NSS अब NSSO का एक अंग बन गया तथा इसका कार्य सर्वेक्षण तक सीमित रहा।
❖ राष्ट्रीय आय मापन का सबसे पहला सरकारी अनुमान 1948 — 49 में वाणिज्य मंत्रालय द्वारा दिया गया।
❖ 1949 में पी.सी. महालनोबिस की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आय समिति का गठन किया गया।
❖ भारत में राष्ट्रीय आय का अनुमान केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन द्वारा लगाया जाता है जिसकी स्थापना 1951 में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल के सचिवलय में की गयी।
❖ 1967 में पहली बार राष्ट्रीय आय आकलन के लिए आय तथा उत्पादन विधि के साथ व्यय विधि को जोड़ा गया।
❖ भारत में राष्ट्रीय आय के अनुमान के बारे में उत्पादन, आय तथा व्यय विधि का मिश्रित प्रयोग किया जाता है।
❖ भारत में राष्ट्रीय आय के अनुमान के लिए सांख्यिकीय संगठन (CSO) ने सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को छ: क्षेत्रों तथा 14 उपक्षेत्रों (Sub Sector) में विभाजित किया है। यह है —
(I) प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector) :— कृषि, वानिकी और लट्ठा, मछली पालन, खनन तथा उत्खनन।
(II) द्वितीयक क्षेत्र (Second Sector) :— विनिर्माण, निर्माण, बिजली, गैस और जल — आपूर्ति।
(III) परिवहन, संचार एवं व्यापार (Transport, Communication and Trade) :— परिवहन, भण्डारण और संचार(Transport, storage and communication)।
(IV) वित्त एवं वास्तविक सम्पदा (Finance and Real Estate) :— बैंकिंग तथा बीमा, वास्तविक सम्पदा, भवनों का स्वामित्व तथा व्यावसायिक सेवायें।
(V) सामुदायिक एवं निजी सेवायें (Community and personal Services) :— सार्वजनिक प्रशासन एवं सुरक्षा एवं अन्य सेवायें।
(VI) विदेशी क्षेत्र — विदेशी व्यवहार।
❖ CSO द्वारा एकत्रित एवं प्रकाशित राष्ट्रीय आय सम्बन्धी सामग्री आंकड़ों का प्रयोग रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया भी करता है।