✦ गुर्जर — प्रतिहार वंश ✦
- अग्निकुल के राजकुलों (प्रतिहार, परमार, चालुक्य व चौहानों) में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतिहार वंश था जो गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर — प्रतिहार कहलाये।
✦ एहोल अभिलेख — बादामी/वातापी के चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख सर्वप्रथम हुआ है।
— एहोल (Aihole) भारत के कर्नाटक राज्य के बागलकोट ज़िले में मलप्रभा नदी घाटी में फैले हुए 120 से अधिक शिला और गुफा मन्दिरों का एक समूह है।
— यह जिला उत्तरी कर्नाटक में स्थित है और इसकी सीमा बेलगाम , गडग , कोप्पल , रायचूर और बीजापुर से लगती है। नया बागलकोट जिला 1997 में कर्नाटक सरकार ने विजयपुरा से अलग करके बनाया था। विभाजित बागलकोट जिले में दस तालुके हैं – बादामी, बागलकोट, बिलगी, गुलेदगुड्डा, रबकवि बनहट्टी, हुनागुंड, इलकल, जमखंड ,मुधोल और तेरादल। - उत्तर — पश्चिम भारत में गुर्जर — प्रतिहार वंश का शासन मुख्यत: 6ठी से 12वीं सदी तक रहा।
✦ द्वारपाल की भूमिका— गुर्जर प्रतिहारों ने छठी शताब्दी से बाहरवीं सदी तक विदेशियों के आक्रमण के संकट के समय भारत के द्वारपाल की भूमिका निभाई।
- प्रतिहार शब्द का अर्थ है “द्वारपाल।”
- हर्ष की मृत्यु के पश्चात उत्तरी भारत की जो राजनीतिक एकता छिन्न — भिन्न हो गई थी उसे पुन: स्थापित करने के लिए इस वंश ने सफल प्रयत्न किया।
- ✦ हर्षवर्धन या हर्ष (606ई.-647ई.) — यह राज्यवर्धन के बाद लगभग 606 ई. में थानेश्वर के सिंहासन पर बैठा। हर्ष के विषय में बाणभट्ट के हर्षचरित से व्यापक जानकारी मिलती है। हर्ष ने लगभग 41 वर्ष शासन किया। इन वर्षों में हर्ष ने अपने साम्राज्य का विस्तार जालंधर, पंजाब, कश्मीर, नेपाल एवं बल्लभीपुर तक कर लिया। इसने आर्यावर्त को भी अपने अधीन किया। हर्ष को बादामी के चालुक्यवंशी शासक पुलकेशिन द्वितीय से पराजित होना पड़ा। ऐहोल प्रशस्ति (634 ई.) में इसका उल्लेख मिलता है।
- — पुष्यभूति वंश की राजधानी थानेश्वर (हरियाणा का एक वर्तमान शहर) थी। पुष्यभूति राजवंश, जिसे वर्धन वंश के रूप में भी जाना जाता है, ने छठी और सातवीं शताब्दी के दौरान उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया।
- — इस राजवंश (वर्धन वंश) ने अपने अंतिम शासक हर्षवर्धन (590 – 647 ईस्वी) के अधीन अपने चरम उत्कर्ष को प्राप्त कर लिया था।
- — पुष्यभूति वंश की स्थापना 6वीं और साथ ही 7वीं शताब्दी में उत्तरी भारत में हुई थी। भारत में पुष्यभूति राजवंश को उस समय भारत में बेहद मूल्यवान माना जाता है। राजवंश की स्थापना “नरवर्धन” नामक पहले शासक के साथ हुई थी। “राज्यवर्धन”, “प्रभाकर-वर्धन” का पुत्र था और उसे पुष्यभूति वंश का उल्लेखनीय राजा माना जाता है।
- इसके (गुर्जर — प्रतिहार वंश ) प्रतापी नरेशों ने उत्तरी भारत के अधिकांश भाग को बहुत समय तक अपने अधीन रखा। यही नहीं, दीर्घकाल तक इसने सिन्ध प्रदेश से आगे बढ़ती हुई मुस्लिम शक्ति को रोके रखा और उत्तरी भारत में उसका विस्तार न होने दिया।
- प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चन्द्र मजूमदार के अनुसार गुर्जर — प्रतिहारों ने छठी सदी से बारहवीं सदी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम किया।
- 8 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में गुर्जर-प्रतिहारों का उदय हुआ, जब उन्होंने नागभट्ट प्रथम के समय में अरबों का सफल प्रतिरोध किया।
- भोज प्रतिहार वंश का सबसे महान सम्राट और साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था ।
- जिन प्रतिहारों ने कन्नौज पर लम्बे समय तक शासन किया, उन्हें गुर्जर-प्रतिहार भी कहा जाता है।
नोट — कन्नौज वर्तमान में उत्तर—प्रदेश राज्य का एक जिला है। - राजस्थान के पूर्वी और मध्य भागों में प्रतिहारों ने कई रियासतें स्थापित कीं।
- गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के विस्तार में पाल और राष्ट्रकूट जैसी अन्य समकालीन शक्तियों के साथ लगातार संघर्ष शामिल था।
- गूर्जरों ने मालवा और गुजरात के लिए राष्ट्रकूटों से लड़ाई लड़ी और तत्पश्चात ऊपरी गंगा घाटी पर नियंत्रण अर्थात् कन्नौज के लिए भी लड़ाई लड़ी।
✦ राष्ट्रकूट वंश — यह एक शाही भारतीय राजवंश था जिसने 6ठीं और 10वीं शताब्दी के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से पर शासन किया था। सबसे पहला ज्ञात राष्ट्रकूट शिलालेख 7वीं शताब्दी का एक ताम्रपत्र है जिसमें मध्य या पश्चिम भारत के एक शहर मनापुर से उनके शासन का विवरण दिया गया है।
— दन्तिवर्मन या दन्तिदुर्ग प्रथम (735-756) राष्ट्रकूट साम्राज्य के संस्थापक थे।
— राष्ट्रकूट साम्राज्य सबसे लंबे समय तक चलने वाला साम्राज्य था जो अपने समय में सर्वाधिक शक्तिशाली भी था।
— राष्ट्रकूट साम्राज्य के ध्रुव और गोपाल तृतीय ने मालवा क्षेत्र और ऊपरी गंगा बेसिन पर अपने प्रभुत्व का विस्तार करने के प्रारंभिक प्रतिहार सम्राटों के प्रयासों को विफल कर दिया।
— राष्ट्रकूटों ने 790 ई. में तथा पुनः 806-07 ई. में प्रतिहारों को पराजित किया , जिसके बाद वे दक्कन की ओर चले गये तथा पालों के लिए रास्ता साफ कर दिया ।
✦ पाल वंश — इस वंश की स्थापना गोपाल ने की थी, जो राज्य के पहले सम्राट भी थे। उन्होंने बंगाल को अपने नियंत्रण में एकीकृत किया और यहां तक कि मगध (बिहार) को भी अपने नियंत्रण में ले लिया। बिहार के ओदंतपुरी में मठ की स्थापना गोपाल ने की थी। धर्म परिवर्तन के बाद उन्हें बंगाल का पहला बौद्ध सम्राट माना गया।
✦ (गुर्जर — प्रतिहार वंश ) उत्पत्ति के प्रमाण —
- गुर्जर समुदाय को गुज्जर, गूजर, गोजर, गुर्जर, तथा गूर्जर इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।
- संस्कृत के विद्वानों के अनुसार, गुर्जर शुद्ध संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ‘शत्रु का नाश करने वाला’ अर्थात ‘शत्रु विनाशक’ होता है।
✦ राजशेखर — राजशेखर ने अपने ग्रंथ विद्धशालभंजिका में गुर्जर — प्रतिहार नरेश महेन्द्रपाल को ‘रघुकुल तिलक’ व ‘रघुकुल चूड़ामणि’ तथा महिपाल प्रथम को ‘रघुवंश मुकुटमणि’ तथा ‘रघुकुल मुक्तामणि’ कहा है।
— प्राचीन महाकवि राजशेखर ने गुर्जर नरेश महिपाल को अपने महाकाव्य में दहाड़ता गुर्जर कह कर सम्बोधित किया है।
— कवि राजशेखर , गुर्जर-प्रतिहार राजा महेंद्रपाल और उनके पुत्र महिपाल के दरबार से जुड़े थे । - इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है।
- नीलकुण्ड, राधनपुर (गुजरात), देवली(टोंक) तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
✦ स्कन्ध पुराण — इसमें पंच द्रविड़ों में गुर्जरों का उल्लेख मिलता है।
— भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) के द्वारा कथित होने के कारण इसका नाम ‘स्कन्दपुराण’ है।
नोट — कल्हण ने अपनी राजतरंगिणी (लगभग 12वीं शताब्दी ई.) में पाँच ब्राह्मण समुदायों को पंच द्रविड़ के रूप में वर्गीकृत किया है, जिसमें कहा गया है कि वे विंध्य के दक्षिण में रहते हैं।
- कर्नाटक ( कर्नाटक ब्राह्मण) 2. तैलंगा ( तेलुगु ब्राह्मण ) 3. द्रविड़ ( तमिलनाडु और केरल के ब्राह्मण )
- महाराष्ट्रक ( महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण ) 5. गुर्जर ( गुजराती , मारवाड़ी और मेवाड़ी ब्राह्मण )
✦ अलमसूदी — गुर्जर प्रतिहार को ‘अल गुजर’ (गुर्जर का अपभ्रंश) और राजा को ‘बोरा’ कहकर पुकारता है जो सम्भवत: आदिवराह का विशुद्ध उच्चारण है।
— अल-मसूदी एक प्रमुख अरब भूगोलवेत्ता थे।
— मसूदी का जन्म बगदाद में नवीं सदी के अन्तिम दशक में हुआ था।
— 915-916 ई. में वह भारत की यात्रा करने वाला बग़दाद का विदेशी यात्री था।
- अरब यात्रियों ने गूर्जरों को ‘जुर्ज’ लिखा है।
✦ ग्वालियर प्रशस्ति — मिहिरकुल की ग्वालियर प्रशस्ति एक शिलालेख है जिस पर संस्कृत में मातृछेत द्वारा सूर्य मन्दिर के निर्माण का उल्लेख है।
— महिरभोज के ग्वालियर अभिलेख में नागभट्ट को राम का प्रतिहार एवं विशुद्ध क्षत्रिय कहा है।
✦ ह्वेनसांग — चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने वर्णन में 72 देशों का उल्लेख किया है।
— जब वह भीनमाल आया तो उसने 72 देशों में से एक ‘कू—चे—लो’ (गुर्जर) बताया तथा उसकी राजधानी का नाम ‘पीलोमोलो/भीलामाला (भीनमाल) बताया।
- युवान च्वांग् ने कू—चे—लो नामक प्रदेश का वर्णन किया है जिसका समीकरण गुर्जर प्रदेश से किया गया है।
- भिल्लमलकाचार्य ने अपने ग्रन्थ ‘ ब्रह्मस्फूतसिद्धान्त में भिल्लमल का उल्लेख किया है।
- प्रतिहार नरेशों के जोधपुर और घटियाला शिलालेखों से प्रकट होता है कि गुर्जर प्रतिहारों का मूल निवास स्थान गुर्जरात्र (राजपूताना का एक भाग) था।
- अधिकांश विद्वानों के मतानुसार गुर्जर प्रतिहारों की सत्ता का प्रारंभिक केन्द्र अवन्ति अथवा उज्जैन था।
- जैन ग्रन्थ हरिवंश, प्रतिहार नरेश वत्सराज को ‘अन्ति भूभूत'(अवन्ति का राजा) कहता है।
- राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष के संजन ताम्रपत्र का कथन है कि उसके एक पूर्वज तंतदुर्ग (दन्तिदुर्ग) ने एक महान यज्ञ किया था। इस अवसर पर उसने गुर्जर राज को उज्जैन में प्रतिहार(द्वारपाल) बनाया था।
- इस उल्लेख के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि गुर्जर प्रतिहार उज्जैन अथवा अवन्ति के शासक थे।
- नैणसी ने गुर्जर प्रतिहारों की 26 शाखाओं का वर्णन किया है जिनमें — मण्डौर, जालौर, राजोगढ़, कन्नौज, उज्जैन और भड़ौच (गुजरात) के गुर्जर — प्रतिहार बड़े प्रसिद्ध रहे।
— उज्जैन मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर इन्दौर से 45 कि॰मी॰ पर है। उज्जैन के प्राचीन नाम अवन्तिका, उज्जयिनी, कनकश्रन्गा आदि है।
— मंडोर, जोधपुर नगर में रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक ऐतिहासिक नगर है।
— मंडोर में रावण मंदिर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यह रावण की पत्नी मंदोदरी का पैतृक स्थान है। कुछ स्थानीय ब्राह्मण रावण को दामाद मानते हैं।
— राजोरगढ़ (अलवर) 10वीं सदी में कन्नौज राज के अधीन था। यहां गुर्जर प्रतिहार राजवंश के सावंत मथलदेव राज करते थे।